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25 मई तक पूरी हो जाएगी चुनावी प्रक्रिया…

बदायूं। हाई कोर्ट के फैसला के बाद पंचायत चुनाव समाज की जुबानों पर छा गया, सबसे ज्यादा चर्चा का विषय आरक्षण रहा है। हाई कोर्ट के फैसला कह दिया गया है कि जो आरक्षण बनाया है वह नहीं रहेगा, वर्ष 2015 के आरक्षण को आधार बनाकर फिर से आरक्षण जारी किया जाएगा। कोर्ट के इस फैसले ने लोगों के बीच हल्ला मचा दिया है, लोग चुनाव को लेकर तमाम खुश हुये हैं और तमाम मायूस हो गये हैं। अब सोशल मीडिया पर जानकारी पाने के बाद प्रशासन की गाइड लाइन पढ़ने को तलाश रहे हैं। प्रशासन के अधिकारी भी शासन की गाइड लाइन का इंतजार कर रहे हैं कि जिस तरह की गाइड लाइन आये उसी प्रकार आगे की प्रक्रिया को शुरू किया जाए।

तय हुआ यह शेड्यूल : 

हाईकोर्ट  की लखनऊ बेंच में सुनवाई  के दौरान महाधिवक्ता व  चुनाव आयोग के वकील अनुराग कुमार सिंह ने कहा कि  वर्ष  2015  को मूल  वर्ष मानते हुए आरक्षण प्रक्रिया पूरा करने में और वक्त लग सकता है लिहाजा  पहले दी गई  समय सीमा  को  17 मार्च से बढ़ाकर  27  मार्च कर दिया जाए, साथ ही यह भी मांग  की गई कि चुनाव  प्रकिया पूरी करने के लिए पूर्व में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा तय की गई  समय सीमा  को भी  15  मई से बढ़ाकर  25  मई  किया जाए। सरकार व आयोग के अनुरोध को न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। बदायूं के जिला पंचायत राज अधिकारी डॉ. सरनजीत सिंह कौर कहते हैं कि शासन से जैसी गाइडलाइन आएगी उन्हीं निर्देशों के क्रम में आरक्षण को लेकर आगे की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

कोर्ट ने यह कहा था : 

न्यायमूर्ति  रितुराज अवस्थी व  न्यायमूर्ति  मनीष माथुर की  खंडपीठ ने अजय कुमार की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर आदेश पारित किया था। याचिका में 11  फरवरी  2021 के शासनादेश  को  चुनौती दी गई थी, साथ ही आरक्षण लागू करने के रोटेशन  के लिए  वर्ष 1995 को आधार  वर्ष मानने  को  मनमाना व  अविधिक  करार  दिये जाने की बात कही गई थी। न्यायालय  ने  12  मार्च को अंतरिम आदेश  में आरक्षण व्यवस्था लागू करने को अंतिम रूप देने पर रोक लगा दी थी।  सोमवार को  महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए माना कि सरकार ने  वर्ष  1995  को  मूल  वर्ष मानकर गलती की।  उन्होंने  कहा कि सरकार  को वर्ष  2015  को  मूल वर्ष मानते हुए सीटों पर आरक्षण लागू करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। याची के अधिवक्ता मोहम्मद अल्ताफ मंसूर ने  दलील दी कि  11  फरवरी  2021  का  शासनादेश भी असंवैधानिक है  क्योंकि इससे आरक्षण का कुल अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक  हो  रहा है। सुप्रीम कोर्ट  द्वारा पारित एक निर्णय की नजीर देते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रकार के एक मामले में शीर्ष अदालत  महाराष्ट्र सरकार के  शासनादेश को रद्द कर चुकी है।  न्यायालय ने मामले के सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद  11 फरवरी  2021 के शासनादेश  को  रद्द  कर दिया।

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