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एंड स्टेज मरीजों के लिए जीवन दान से कम नहीं कैडेवरिक अंग दान

 

नई दिल्ली। एक ब्रेन डेड मरीज अंगदान कर आखरी चरण के कई मरीजों को जीवनदान दे सकता है। तेजी से बदलती जीवनशैली के साथ विभिन्न प्रकार की बीमारियों और उनसे ग्रस्त मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। इस स्थिति ने आज अंग प्रत्यारोपण की जरूरत को बढ़ा दिया है।

हाल ही में 41 वर्षीय ब्रेन डेड महिला ने मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, वैशाली में अंग दान कर कई मरीजों को नया जीवन दिया। मरीज न्युरिस्मॉल ब्लीड (मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में ब्लीडिंग) से ग्रस्त थी। मल्टीडिसीप्लीनरी टीम की लाख कोशिशों के बाद भी महिला की हालत लगातार खराब हो रही थी और आखिरकार गुरुवार को उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया।

उसके परिजनों ने यह अहम फैसला लेकर 4 मरीजों को जीवनदान दिया। एक लंबी काउंसलिंग के बाद परिजन मरीज के अंग दान करने के लिए तैयार हो गए। उसकी किडनी, हृदय और लिवर को निकाल कर संरक्षित कर लिया गया। विभिन्न टीमों ने रातभर काम कर अंगो को निकालकर ट्रांसप्लान्ट किया। एंबुलेंस ने हृदय को ग्रीन कॉरिडोर से होते हुए मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, साकेत तक पहुंचाया। किडनी गाज़ियाबाद से क्रोनिक किडनी डिजीज़ से ग्रस्त 37 वर्षीय महिला में ट्रांसप्लान्ट कर दी गई। लिवर दिल्ली से क्रोनिक लिवर डिजीज़ से ग्रस्त 59 वर्षीय महिला में ट्रांसप्लान्ट कर दिया गया। दोनों ट्रांसप्लान्ट मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, वैशाली में किए गए।

वैशाली स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के उपाध्यक्ष, डॉक्टर गौरव अग्रवाल ने बताया कि, “कई मिथ्यों और विभिन्न दृष्टिकोण के कारण भारत में अंगदान आज भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। यहां अंगदान करने वालों की संख्या बेहद कम है। इस मामले में मरीज के परिजनों ने अपने महान फैसले से 4 मरीजों को नई जिंदगी दी। हम डोनर के परिवार का दिल से शुक्रिया करते हैं, जिन्होंने अंग दान जैसे महान काम के लिए सहमति जताई। हम सफल सर्जरी के लिए हमारे डॉक्टरों का भी धन्यवाद करते हैं, जिनके बिना मरीजों को जिंदगी देना बिल्कुल संभव नहीं है।”

हर साल लगभग 5 लाख लोग मुख्य अंगों के खराब होने के कारण मरते हैं। भारत एक बड़ी आबादी वाला देश होने के नाते यहां के आंकड़ों के अनुसार, प्रति मिलियन केवल 0.08 लोग अंगदान के लिए तैयार होते हैं। दुनिया के अन्य देशों की तुलना में ये संख्या बेहद कम है। अमेरिका, यूके, जर्मनी और नीदरलैंड जैसे देशों में यह संख्या प्रति मिलियन 10-30 है। इन देशों में अंगदान से पहले परिवार की अनुमति की जरूरत पड़ती है। वहीं सिंगापुर, स्पेन और बेल्जियम जैसे देशों में अनुमति की यह प्रक्रिया और कड़ी है। इन देशों में अंगदान की दर प्रति मिलियन 20-40 है।

डॉक्टर अग्रवाल ने अधिक जानकारी देते हुए कहा कि, “हालांकि, भारत में अंगदान को लेकर गलत धारणाएं बनी हुई हैं, जो अंगदान की प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। इसलिए लोगों को जीवनदान देने के लिए सार्वजनिक जागरुकता बढ़ाने की सख्त आवश्यकता है। देश में कैडेवरिक अंग दान के मामले में धीरे सही लेकिन निरंतर सुधार हो रहा है। लोग स्वेच्छा से अंग दान के लिए तैयार हो रहे हैं, जिनकी मदद से कई जिंदगियां बचाना संभव हो पाता है।” मेडिकल साइंस में प्रगति के साथ, अंगदान की प्रक्रिया इलाज का एक बड़ा पहलू बन चुकी है, जो घातक बीमारियों में मरीजों की जान बचाने में सहायक साबित होता है। हालांकि, अंग प्रत्यारोपण सर्जरी की सफलतादर के बावजूद आज भी भारत में अंगदान करने वालों की संख्या बेहद कम है। डॉक्टर अग्रवाल ने कहा, “सफल अंगदान के लिए लोगों को कैडेवरिक अंगदान के बारे में शिक्षत करने की आवश्यकता है। ब्रेन डेड मरीज के मामले में उसके परिजनों की सही काउंलिग और अस्पतालों में सही सपोर्ट सिस्टम की आवश्यकता है।”

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