राष्ट्रीय

3500 करोड़ के पैकेज पर बोले किसान, अच्छा असल राहत मिल मालिकों को!

 

नई दिल्ली ,गन्ना किसानों के बकाया के भुगतान के लिए पैकेज का ऐलानमोदी सरकार ने चीनी मिल मालिकों का 3500 करोड़ दियागन्ना किसानों के बकाया का मोदी सरकार करेगी भुगतान
नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के बीच मोदी सरकार ने गन्ना किसानों के बकाया भुगतान के लिए एक पैकेज को मंजूरी दी है. सरकार ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक में चीनी के अतिरिक्‍त स्‍टॉक को शून्‍य करने के लिए 60 लाख टन चीनी निर्यात करने का फैसला लिया है. मोदी सरकार 3500 करोड़ रूपये की सहायता राशि (सब्सिडी) के जरिए चीनी मिलों पर बकाया के भुगतान के तौर पर सीधे पांच करोड़ किसानों के खातों में जमा कराएगी.

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने बताया कि देश में करीब पांच करोड़ गन्‍ना किसान और उनके परिवार हैं. किसान अपना गन्‍ना चीनी मिलों को बेचते हैं, लेकिन चीनी मिल मालिकों से उन्‍हें उनका भुगतान प्राप्‍त नहीं होता है, क्‍योंकि उनके पास चीनी का अतिरिक्‍त स्‍टॉक होता है. इस साल देश में चीनी का उत्पादन 310 लाख टन होगा जबकि देश की खपत 260 लाख टन है. अंतरराष्ट्रीय मार्केट में चीनी दाम कम होने की वजह से किसान और उद्योग संकट में हैं. ऐसे में सरकार चीनी के अतिरिक्‍त स्‍टॉक को शून्‍य पर लाने के प्रयास कर रही है. इससे गन्‍ना किसानों के बकाया का भुगतान करने में सहूलियत होगी.

मोदी सरकार इसे गन्ना किसानों को राहत देने का कदम बता रही है, लेकिन किसान संगठन इसे किसानों के ज्यादा चीनी मिल मालिकों को देने राहत पैकेज बता रहे हैं. भारतीय किसान यूनियन के महासचिव धर्मेंद्र मलिक कहते हैं कि मोदी सरकार ने चीनी निर्यात पर जो सब्सिडी दी है, उससे गन्ना किसानों को कोई अतिरिक्त फायदा नहीं होना जा रहा है. इससे देश की चीनी मिल मालिकों को ही आर्थिक रूप से मदद गई है. हम सरकार से यही मांग कर रहे हैं कि कॉरपोरेट को मदद करने के बजाय किसानों की मदद करें.

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुषेंद्र सिंह भी मानते हैं कि ये गन्ना किसानों के नाम पर चीनी मिल मालिकों को मोदी सरकार मदद कर रही है. यूपी के करीब गन्ना किसानों का पिछले साल और मौजूदा सत्र का मिलाकर करीब दस हजार करोड़ रुपये बकाया है, जिसकी भुगतान की जिम्मेदारी सरकार की नहीं बल्कि चीनी मिल मालिकों की है. मोदी सरकार ने चीनी निर्यात पर 3500 करोड़ रुपये की सब्सिडी इसीलिए दी है ताकि गन्ना किसान अपने बकाये की भुगतान की मांग को लेकर कहीं सड़क पर आंदोलन के लिए न उतर जाएं.

वहीं, भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी कहते हैं कि मोदी सरकार का कदम गन्ना किसानों के हित में लिया गया है. अंतरराष्ट्रीय मार्केट में चीनी के दाम बहुत कम हैं, ऐसे में चीनी मिल मालिक घाटे पर निर्यात कर रहे हैं. इसके चलते गन्ना किसानों की अच्छा खासा पैसा चीनी मिलों पर बकाया है. ऐसे में सरकार ने 3500 करोड़ की सब्सिडी चीनी निर्यात पर देकर किसानों के भुगतान का रास्ता खोल दिया है. इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता गन्ना किसानों के भुगतान का नहीं था. ऐसे में सरकार के इस कदम को गन्ना किसानों को सकारात्मक तरीके से लेना चाहिए, क्योंकि सरकार ने बकाये के भुगतान का समय भी निर्धारित कर दिया है. इसका सबसे बड़ा फायदा यूपी के गन्ना किसानों को होगा.

बता दें कि देश के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर कुल 12,994 करोड़ रुपए बकाया है. राज्यों की बात करें तो गन्ना उत्पादन में सबसे आगे उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का करीब 10,000 करोड़ रुपए का भुगतान चीनी मिल मालिकों पर बकाया है. इसके अलावा तमिलनाडु के किसानों का 1834 करोड़ और गुजरात के 924 करोड़ सहित देश के बाकी राज्यों के किसानों का भुगतान बाकी है. खाद्य व उपभोक्‍ता मामलों के केंद्रीय राज्‍यमंत्री डीआर दादाराव ने लोकसभा में इसी साल सिंतबर में एक सवाल के जवाब में ये जानकारी दी थी, लेकिन इसके बाद कुछ राज्यों में गन्ना किसानों को कुछ भुगतान हुआ है.

आल इंडिया किसान संघर्ष कमेटी में राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक किसान नेता सरदार बीएम सिंह कहते हैं सरकार ने गन्ने का रेट तय करने के बजाय चीनी मिल मालिकों को आर्थिक मदद करने के लिए कदम उठाया है. मोदी सरकार किसान आंदोलन के बीच यह कदम उठाकर किसानों की हितैषी बनने का ढोंग कर रही है. वह कहते हैं कि गन्ना किसानों के नाम पर केंद्र सरकार ऐसे ही चीनी मिल मालिकों को आर्थिक मदद करती रहती है. इससे पहले मोदी सरकार ने 44 हजार करोड़ रूपये की मदद दो साल पहले की थी और उससे पहले मनमोहन सरकार ने जाते-जाते 66 हजार करोड़ की मदद की है, लेकिन गन्ना किसानों की हालत जस की तस है. किसानों के नाम पर सिर्फ चीनी मिल मालिक की मदद की जा रही है जबकि गन्ना किसानों की भुगतान की जिम्मेदारी मिल मालिकों की है.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत बताते हैं उत्तर प्रदेश में पिछले तीन साल से गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ा है. किसान की लागत लगातार बढ़ रही है. कोरोना काल में किसानों ने ही देश की जीडीपी को बचाकर रखा है, लेकिन सरकार पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने में लगी है. पिछले साल का गन्ना भुगतान भी नहीं हुआ है. इससे किसान परेशान है. सरकार चीनी मिल मालिकों पर दबाव बनाने के बजाय किसानों के नाम पर उनकी मदद कर रही है. हां यह बात जरूर है कि किसानों के बकाया का कुछ हिस्सा जरूर मिल जाएगा, लेकिन असल राहत तो चीनी मिल मालिकों को दी गई है.

देश का सर्वाधिक गन्ना उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है. देश के गन्ने के कुल रकबे का 51 फीसद और उत्पादन का 50 और चीनी उत्पादन का 38 फीसद उत्तर प्रदेश में होता है. भारत में कुल 520 चीनी मिलों से 119 उत्तर प्रदेश में हैं. देश के करीब 48 लाख गन्ना किसानों में से 46 लाख से अधिक किसान चीन मिलों को अपने गन्ने की आपूर्ति करते हैं. यहां का चीनी उद्योग करीब 6.50 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार देता है. उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का बकाया एक बड़ा मुद्दा है, जिसके लिए मोदी सरकार ने चीनी निर्यात पर सब्सिडी के जरिए राहत देने का अहम कदम उठाया है.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के बीच मोदी सरकार ने गन्ना किसानों के बकाया भुगतान के लिए एक पैकेज को मंजूरी दी है. सरकार ने बुधवार को कैबिनेट की बैठक में चीनी के अतिरिक्‍त स्‍टॉक को शून्‍य करने के लिए 60 लाख टन चीनी निर्यात करने का फैसला लिया है. मोदी सरकार 3500 करोड़ रूपये की सहायता राशि (सब्सिडी) के जरिए चीनी मिलों पर बकाया के भुगतान के तौर पर सीधे पांच करोड़ किसानों के खातों में जमा कराएगी.

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने बताया कि देश में करीब पांच करोड़ गन्‍ना किसान और उनके परिवार हैं. किसान अपना गन्‍ना चीनी मिलों को बेचते हैं, लेकिन चीनी मिल मालिकों से उन्‍हें उनका भुगतान प्राप्‍त नहीं होता है, क्‍योंकि उनके पास चीनी का अतिरिक्‍त स्‍टॉक होता है. इस साल देश में चीनी का उत्पादन 310 लाख टन होगा जबकि देश की खपत 260 लाख टन है. अंतरराष्ट्रीय मार्केट में चीनी दाम कम होने की वजह से किसान और उद्योग संकट में हैं. ऐसे में सरकार चीनी के अतिरिक्‍त स्‍टॉक को शून्‍य पर लाने के प्रयास कर रही है. इससे गन्‍ना किसानों के बकाया का भुगतान करने में सहूलियत होगी.

मोदी सरकार इसे गन्ना किसानों को राहत देने का कदम बता रही है, लेकिन किसान संगठन इसे किसानों के ज्यादा चीनी मिल मालिकों को देने राहत पैकेज बता रहे हैं. भारतीय किसान यूनियन के महासचिव धर्मेंद्र मलिक कहते हैं कि मोदी सरकार ने चीनी निर्यात पर जो सब्सिडी दी है, उससे गन्ना किसानों को कोई अतिरिक्त फायदा नहीं होना जा रहा है. इससे देश की चीनी मिल मालिकों को ही आर्थिक रूप से मदद गई है. हम सरकार से यही मांग कर रहे हैं कि कॉरपोरेट को मदद करने के बजाय किसानों की मदद करें.

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुषेंद्र सिंह भी मानते हैं कि ये गन्ना किसानों के नाम पर चीनी मिल मालिकों को मोदी सरकार मदद कर रही है. यूपी के करीब गन्ना किसानों का पिछले साल और मौजूदा सत्र का मिलाकर करीब दस हजार करोड़ रुपये बकाया है, जिसकी भुगतान की जिम्मेदारी सरकार की नहीं बल्कि चीनी मिल मालिकों की है. मोदी सरकार ने चीनी निर्यात पर 3500 करोड़ रुपये की सब्सिडी इसीलिए दी है ताकि गन्ना किसान अपने बकाये की भुगतान की मांग को लेकर कहीं सड़क पर आंदोलन के लिए न उतर जाएं.

वहीं, भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी कहते हैं कि मोदी सरकार का कदम गन्ना किसानों के हित में लिया गया है. अंतरराष्ट्रीय मार्केट में चीनी के दाम बहुत कम हैं, ऐसे में चीनी मिल मालिक घाटे पर निर्यात कर रहे हैं. इसके चलते गन्ना किसानों की अच्छा खासा पैसा चीनी मिलों पर बकाया है. ऐसे में सरकार ने 3500 करोड़ की सब्सिडी चीनी निर्यात पर देकर किसानों के भुगतान का रास्ता खोल दिया है. इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता गन्ना किसानों के भुगतान का नहीं था. ऐसे में सरकार के इस कदम को गन्ना किसानों को सकारात्मक तरीके से लेना चाहिए, क्योंकि सरकार ने बकाये के भुगतान का समय भी निर्धारित कर दिया है. इसका सबसे बड़ा फायदा यूपी के गन्ना किसानों को होगा.

बता दें कि देश के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर कुल 12,994 करोड़ रुपए बकाया है. राज्यों की बात करें तो गन्ना उत्पादन में सबसे आगे उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का करीब 10,000 करोड़ रुपए का भुगतान चीनी मिल मालिकों पर बकाया है. इसके अलावा तमिलनाडु के किसानों का 1834 करोड़ और गुजरात के 924 करोड़ सहित देश के बाकी राज्यों के किसानों का भुगतान बाकी है. खाद्य व उपभोक्‍ता मामलों के केंद्रीय राज्‍यमंत्री डीआर दादाराव ने लोकसभा में इसी साल सिंतबर में एक सवाल के जवाब में ये जानकारी दी थी, लेकिन इसके बाद कुछ राज्यों में गन्ना किसानों को कुछ भुगतान हुआ है.

आल इंडिया किसान संघर्ष कमेटी में राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक किसान नेता सरदार बीएम सिंह कहते हैं सरकार ने गन्ने का रेट तय करने के बजाय चीनी मिल मालिकों को आर्थिक मदद करने के लिए कदम उठाया है. मोदी सरकार किसान आंदोलन के बीच यह कदम उठाकर किसानों की हितैषी बनने का ढोंग कर रही है. वह कहते हैं कि गन्ना किसानों के नाम पर केंद्र सरकार ऐसे ही चीनी मिल मालिकों को आर्थिक मदद करती रहती है. इससे पहले मोदी सरकार ने 44 हजार करोड़ रूपये की मदद दो साल पहले की थी और उससे पहले मनमोहन सरकार ने जाते-जाते 66 हजार करोड़ की मदद की है, लेकिन गन्ना किसानों की हालत जस की तस है. किसानों के नाम पर सिर्फ चीनी मिल मालिक की मदद की जा रही है जबकि गन्ना किसानों की भुगतान की जिम्मेदारी मिल मालिकों की है.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत बताते हैं उत्तर प्रदेश में पिछले तीन साल से गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ा है. किसान की लागत लगातार बढ़ रही है. कोरोना काल में किसानों ने ही देश की जीडीपी को बचाकर रखा है, लेकिन सरकार पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने में लगी है. पिछले साल का गन्ना भुगतान भी नहीं हुआ है. इससे किसान परेशान है. सरकार चीनी मिल मालिकों पर दबाव बनाने के बजाय किसानों के नाम पर उनकी मदद कर रही है. हां यह बात जरूर है कि किसानों के बकाया का कुछ हिस्सा जरूर मिल जाएगा, लेकिन असल राहत तो चीनी मिल मालिकों को दी गई है.

देश का सर्वाधिक गन्ना उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है. देश के गन्ने के कुल रकबे का 51 फीसद और उत्पादन का 50 और चीनी उत्पादन का 38 फीसद उत्तर प्रदेश में होता है. भारत में कुल 520 चीनी मिलों से 119 उत्तर प्रदेश में हैं. देश के करीब 48 लाख गन्ना किसानों में से 46 लाख से अधिक किसान चीन मिलों को अपने गन्ने की आपूर्ति करते हैं. यहां का चीनी उद्योग करीब 6.50 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार देता है. उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का बकाया एक बड़ा मुद्दा है, जिसके लिए मोदी सरकार ने चीनी निर्यात पर सब्सिडी के जरिए राहत देने का अहम कदम उठाया है.

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