पुश्तैनी जमीन बचाने की गुहार लेकर चंदौली के ग्रामीण पहुंचे अखिलेश यादव के पास, जबरन अधिग्रहण का लगाया आरोप
लखनऊ/चंदौली. चंदौली जनपद के मुगलसराय तहसील स्थित ग्राम ताहिरपुर मिल्कीपुर और आसपास के ग्रामीणों ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ज्ञापन सौंपकर अपने गांवों की पुश्तैनी जमीन को बंदरगाह और फ्रंट विलेज परियोजना के नाम पर किए जा रहे जबरन अधिग्रहण से बचाने की मार्मिक अपील की है। ग्रामीणों ने कहा कि यह भूमि उनकी आजीविका और अस्मिता से जुड़ी है, जिसे बलपूर्वक छीनने का प्रयास हो रहा है।ग्राम ताहिरपुर मिल्कीपुर निवासी गांधीवादी शिक्षक और लेखक विद्याधर ने बताया कि सरकार द्वारा प्रस्तावित औद्योगिक परियोजना की आड़ में ताहिरपुर, मिल्कीपुर, रसूलागंज और छोटा मिर्जापुर जैसे गांवों की जमीन को जबरन अधिग्रहित कर गरीब जनता को उजाड़ने की साजिशें चल रही हैं।
यह भूमि अधिकांश माझी समुदाय की है, जिनकी आजीविका सदियों से मछली पकड़ने और नाव चलाने पर निर्भर है।विद्याधर के अनुसार, 20 मई को बिना किसी पूर्व सूचना के मुगलसराय के उपजिलाधिकारी तीन बुलडोजर और भारी पुलिस बल के साथ गांव में पहुंचे, जिसका स्थानीय जनता ने विरोध किया। ज्ञापन में ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि यह कार्यवाही न तो पारदर्शी है, न ही लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुरूप।ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में ईशान मिल्की, नफीस अहमद, विनय मौर्य, वीरेन्द्र कुमार साहनी, आस मोहम्मद, अखिलेश सिंह, चंद्र प्रकाश मौर्य और अरविन्द कुमार साहनी शामिल रहे। इन सभी ने अखिलेश यादव से मुलाक़ात कर अपनी पीड़ा साझा की।इस मसले पर समाजवादी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी ग्रामीणों के समर्थन में आवाज उठाई है। चंदौली के सांसद वीरेन्द्र सिंह, समाजवादी महिला सभा की प्रदेश अध्यक्ष रीबू श्रीवास्तव, जिलाध्यक्ष सत्यनारायण राजभर, सकलडीहा विधायक प्रभु नारायण यादव और प्रवक्ता मनोज काका ने भी इस जबरन अधिग्रहण का विरोध किया है।
शिक्षक विद्याधर ने कहा कि वह और उनके साथी अहिंसक प्रतिरोध करेंगे — “मारेंगे नहीं, पर मानेंगे भी नहीं।” उन्होंने अपनी लिखित दो पुस्तकें अखिलेश यादव को भेंट करते हुए उम्मीद जताई कि समाजवादी पार्टी इस जनविरोधी कार्रवाई के खिलाफ आवाज बुलंद करेगी और गरीबों की जमीन को बचाने में आगे आएगी।ग्रामीणों ने मांग की है कि सरकार इस परियोजना को किसी अन्य उपयुक्त स्थान पर स्थानांतरित करे, जिससे न केवल हजारों लोगों का विस्थापन टाला जा सके, बल्कि गंगा किनारे सदियों से बसे माझी समाज की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान भी सुरक्षित रह सके।