राष्ट्रीय

हिमाचल में भी होगी कैंसर से बचाने वाले काले गेहूं की खेती, ट्रायल सफल

गोहर (मंडी)
कैंसर, शुगर और हृदय रोग से बचाने में सहायक काले गेहूं की खेती भी हिमाचल में हो सकेगी। ऊना जैसे मैदानी इलाके में काले गेहूं को उगाने का प्रयोग सफल रहा है। अब मंडी के गोहर के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में इसका ट्रायल शुरू किया गया है। इसके प्रारंभिक परिणाम बेहद सकारात्मक रहे हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रो फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट चंडीगढ़ हिमाचल में इस बीज पर शोध कर रहा है। इसमें जोगिंद्रनगर स्थित आयुर्वेदिक क्षेत्रीय संस्थान भी अहम भूमिका निभा रहा है।

इससे पहले  ऊना जिले के बेहड़ जसवां की किसान रीवा सूद ने काले गेहूं की सफल खेती की है। संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. सौरभ शर्मा ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि किसान काले गेहूं की खेती कर ज्यादा उत्पादन तो ले ही सकते हैं, इसके अलावा लोग काला गेहूं खाकर तमाम बीमारियों से बच भी सकते हैं। किसान अगर काले गेहूं की खेती करते हैं तो उन्हें इसके दाम ज्यादा मिलेंगे। बाजार में सामान्य गेहूं की कीमत 1800 से 1900 रुपये प्रति क्विंटल है। किसानों को बाजार में काले गेहूं के 3500 रुपये प्रति क्विंटल दाम मिल जाएंगे। सं
काले गेहूं पर रिसर्च नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट नाबी मोहाली पंजाब ने रिसर्च की है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. मोनिका गर्ग 2010 से शोध कर रही हैं। इसके बाद काला गेहूं तैयार किया है। इसलिए इस गेहूं का नाम भी नाबी एमजी रखा है।

वैज्ञानिकों के अनुसार काला गेहूं साधारण से ज्यादा पौष्टिक है। यह गेहूं कैंसर, शुगर, मोटापा, कॉलस्ट्रोल, दिल की बीमारी, तनाव सहित 12 बीमारियों में मददगार साबित होगा। खाना खाने के बाद जब हमारे शरीर में ऑक्सीजन किसी अन्य पदार्थ के साथ मिलकर फ्री रेडिकल्स बनाते हैं, इससे त्वचा को नुकसान होता है। त्वचा सुकुड़ने लगती है और लोग जल्द बुजुर्ग हो जाते हैं। कई बार लोग कैंसर जैसी बीमारी के शिकार हो जाते हैं। अगर यह गेहूं इस्तेमाल करते हैं तो इन बीमारियों से बच सकेंगे।

काले गेहूं में सामान्य की तुलना में एनथोसायनिन की मात्रा अधिक होती है। सामान्य गेहूं में पिगमेंट की मात्रा पांच से 15 पीपीएम होती है, जबकि काले गेहूं में पिगमेंट की मात्रा 40 से 140 पीपीएम होती है। एनथोसायनिन एंटी ऑक्सीडेंट का काम करती है। इसमें जिंक की मात्रा भी अधिक होती है।

 

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