सोचे विचारें
जिसने सत्य को आत्मसात नहीं किया वह लेखक या पत्ररकार कैसे हो सकता है | ??? स संपादक शिवाकांत पाठक!
गीता या रामायण ही नहीं अपितु सभी धार्मिक ग्रंथो में वर्णित है कि ईश्वर एक है और उसकी बिना मर्जी के पत्ता नहीं हिलता,, बताओ यह बात सच है या झूठ,,,? तो फिर जो भी इस संसार में हो रहा है वह सब उस परम पिता परमात्मा की मर्जी से हो रहा है,, उसका नियंत्रण प्रत्येक प्राणी के मन और बुद्धि पर है,, साथ ही प्रत्येक मनुष्य या जीव के द्वारा किये गए कार्यों की ध्यान में रखते हुये वह दंड या सम्मान देने का अधिकार रखता है,, वह उसी तरह की बुद्धि कर देता है जैसा चाहता है,, आप सोचते है कि मैं कर रहा हूँ लेकिन उसके द्वारा आप वही करते हैं जो वह चाहता है|
खनन हो या फिर कोई अपराधिक या अच्छे कार्य,, बिना ईश्वर की इक्षा के संभव नहीं हो सकते
तो फिर अवैध खनन पर वेवज़ह आप खुद अपने आप से नियंत्रण खोकर बेकाबू हो जाते हैं,, उत्तेजित हो कर लेखनी का दुरूपयोग करते हैं, जैसे कि,, हरिद्वार में अवैध खनन जोरो पर,,, अवैध सट्टे या अवैध शराब आदि लेकिन क्यों,,? क्या आपके द्वारा यह सब लिखने के सारे अवैध कार्य समाप्त हो जाते हैं ,?
तो फिर ये भी लिखो कि सूरज शाम ढलते ही अचानक गायब क्यों,,, मानव जीवन में अचानक दुख क्यों,,? बीमारियां क्यों,,
जो कल राजा आज सड़कों पर क्यों,,? जब गुड़ था तो मिर्ची क्यों,,,? वेवजह बिना अध्यात्म या विवेक का इस्तेमाल किये यह साधारण मनुष्यों कि तरह छिछोड़ी हरकतें लेखनी के धनी व्यक्ति को शोभा नहीं देती, वैसे यदि सत्य कहा जाये तो यह सब कुछ लिखने के पीछे का स्वार्थ राष्ट्र या समाज हित को नहीं दर्शाता इसमें निजी स्वार्थ कि गन्दगी समाहित होती है, अब आप कहेँगे कि तो फिर क्या लिखा जाये,लिखो कि हर बुरे कार्य करने वाले व्यक्ति को ऊपर नहीं यहीं इसी जीवन में नर्क,( दोजक ) भोगना होता है,,
उदाहरण -: यदि हमने बीज जमीन पर बोये हैं तो फसल क्या आसमान में जाकर काटेंगे ? एक बार माँ पार्वती शंकर भगवान से पूछती हैं कि कि संसार में कौन ज्ञानी है कौन मूर्ख है,तो महाकाल भगवान शिव मुकरा कर कहते हैं, बोले विहस महेश तब ज्ञानी मूड़ न कोय ,जस क्षण रघुपति जस करै तस क्षण तस मति होय | इस संसार में ना तो कोई ज्ञानी है ना मूर्ख,, जिस समय ईश्वर जैसा चाहता है उसी तरह उसकी बुद्धि कर देता है |