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समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाएगी या नहीं?(समलैंगिक विवाह)

नई दिल्ली. समलैंगिक विवाह  (समलैंगिक विवाह) को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को फैसला सुनाएगा. पांच जजों की संविधान पीठ का फैसला यह तय करेगा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है या नहीं. इससे पहले, दस दिन तक सुनवाई करने के बाद 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस संबंध में 20 याचिकाएं दायर की गईं हैं, जिसपर शीर्ष अदालत अपना निर्णय देगी.

पांच जजों की संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा शामिल हैं.
केंद्र सरकार शुरू से आखिर तक समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग का विरोध करती रही है. सरकार ने कहा है कि ये न केवल देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है, बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 158 प्रावधानों में बदलाव करते हुए पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी होगी.

सुनवाई के दौरान पीठ ने एक बार यहां तक कहा कि बिना कानूनी मान्यता के सरकार इन लोगों को राहत देने के लिए क्या कर सकती है? यानी बैंक अकाउंट, विरासत, बीमा, बच्चा गोद लेने आदि के लिए सरकार संसद में क्या कर सकती है? इस पर सरकार ने भी कहा था कि वो कैबिनेट सचिव की निगरानी में विशेषज्ञों की समिति बनाकर समलैंगिकों की समस्याओं पर विचार करने को तैयार है.

केंद्र की क्या-क्या दलीलें दीं
* सेम-सेक्स शादी एक शहरी संभ्रांत अवधारणा है जो देश के सामाजिक लोकाचार से बहुत दूर है.
* विषम लैंगिक संघ से परे विवाह की अवधारणा का विस्तार एक नई सामाजिक संस्था बनाने के समान है.
* अदालत नहीं, बल्कि केवल संसद ही व्यापक विचारों और सभी ग्रामीण, अर्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी की आवाज, धार्मिक संप्रदायों के विचारों और व्यक्तिगत कानूनों के साथ-साथ विवाह के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सकती है.
* विवाह एक संस्था है जिसे बनाया जा सकता है, मान्यता दी जा सकती है, कानूनी पवित्रता प्रदान की जा सकती है और इसे केवल सक्षम विधायिका द्वारा तैयार किया जा सकता है.
* समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने वाली संवैधानिक घोषणा इतनी आसान नहीं है.
* इन शादियों को मान्यता देने के लिए संविधान, IPC, CrPC, CPC और 28 अन्य कानूनों के 158 प्रावधानों में संशोधन करने होंगे.
* संविधान पीठ ने माना कि केंद्र की इन दलीलों में खासा दम है कि समलैंगिक शादी को मान्यता देने संबंधी कानून पर विचार करने का अधिकार विधायिका का है, लेकिन अदालत ये जानना चाहती है कि सरकार ऐसे जोड़ों की समस्याओं के मानवीय पहलुओं पर क्या कर सकती है?
* सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानूनों के प्रावधानों की लिस्ट सामने रखी
* उन्होंने अदालत को बताया कि अगर संविधान पीठ समान लिंग विवाहों को मान्यता देते हुए स्पेशल मैरिज एक्ट में ‘पुरुष और महिला’ के स्थान पर ‘व्यक्ति’ और पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी करता है तो गोद लेने, उत्तराधिकार आदि के कानूनों में भी बदलाव करना होगा.
* साथ ही फिर ये मामला पर्सनल लॉ तक जा पहुंचेगा कि इन सभी कानूनों के तहत लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से एक समान लिंग वाले जोड़े में पुरुष और महिला कौन होंगे.
* फिर गोद लेने, भरण- पोषण, घरेलू हिंसा से सुरक्षा, तलाक आदि के अधिकारों के सवाल भी उठेंगे.

पांच जजों के संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने माना कि इससे तीन दिक्कतें होंगी
1. इसमें कानून को पूरी तरह फिर से लिखना शामिल होगा.
2. यह सार्वजनिक नीति के मामलों में हस्तक्षेप के समान होगा.
3. यह पर्सनल लॉ के दायरे में भी हस्तक्षेप करेगा और अदालत स्पेशल मैरिज एक्ट और पर्सनल लॉ के बीच परस्पर क्रिया से बच नहीं सकती है.

* तुषार मेहता ने कहा कि एक और दिक्कत है कि अदालत विषमलैंगिक विवाहित जोड़ों और समान-लिंग वाले जोड़ों पर अलग तरह से लागू होने वाला कानून नहीं बना सकती.
* दुनिया भर में केवल 34 देशों ने समान-लिंग विवाहों को वैध बनाया है, जिनमें से 24 देशों ने इसे विधायी प्रक्रिया के माध्यम से, जबकि 9 ने विधायिका और न्यायपालिका की मिश्रित प्रक्रिया के माध्यम से किया. वहीं, दक्षिण अफ्रीका अकेला देश है जहां इस प्रकार के विवाहों को न्यायपालिका द्वारा वैध किया गया है.
* केंद्र के मुताबिक अमेरिका और ब्राजील प्रमुख देश हैं जहां मिश्रित प्रक्रिया को अपनाया गया था, विधायी प्रक्रिया के माध्यम से समान-लिंग विवाह को वैध बनाने वाले महत्वपूर्ण देश यूके, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, स्पेन, नॉर्वे, नीदरलैंड, फिनलैंड, डेनमार्क, क्यूबा और बेल्जियम हैं.
* केंद्र ने ये भी कहा है कि 16 देशों ने LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों के बीच सिविल यूनियन को वैध कर दिया है, जिनमें से 13 देशों ने इसे विधायी प्रक्रिया के माध्यम से और तीन ने मिश्रित प्रक्रिया के माध्यम से किया है.
* तुषार मेहता ने दलील दी कि अगर समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता देने की दलील स्वीकार की जाती है तो कल होकर कोई कौटुम्बिक व्यभिचार के खिलाफ अदालत में यह कहते हुए आ सकता है कि यदि दो वयस्कों ने निषिद्ध यौन संबंध बनाने का फैसला किया है तो राज्य को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.
* मेहता ने कहा कि सरकार कुछ ऐसे मुद्दों से निपटने पर विचार कर सकती है जो समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता दिए बिना सामना कर रहे हैं.

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