राजा महमूदाबाद जिन्होंने राजपूत लड़की से प्रेम विवाह किया(राजा महमूदाबाद)
राजा महमूदाबाद :80 साल की उम्र में राजा महमूदाबाद (राजा महमूदाबाद) यानि मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान का निधन हो गया. वो गजब की शख्सियत थे.वर्सेटाइल, लखनऊ और कैंब्रिज में पढ़े. मिस्र और इंग्लैंड पढ़ाने जाते थे. पिता जिन्ना के करीबी थे. बंटवारे के समय वो पाकिस्तान गए लेकिन उन्होंने लखनऊ में ही ताजिंदगी रहना पसंद किया.
राजा महमूदाबाद के बारे में जितना पता चलता जाता है, उतनी ही हैरानी बढ़ती जाती है. अवध के सबसे बड़े राजसी परिवार के वारिस के तौर पर वह बड़े साम्राज्य और संपत्ति के मालिक थे. उन्होंने 40 सालों से कहीं ज्यादा समय तक शत्रु प्रापर्टी में डाल दी गई अपनी संपत्तियों को पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. दो बार उत्तर प्रदेश में विधायक रहे.
वह शानदार शख्सियत थे. उन्होंने एक राजपूत लड़की से प्रेम विवाह किया. उनकी पत्नी राजस्थान के राजपूत घराने से थीं. पिता देश के पूर्व विदेश सचिव थे. ये प्रेम कहानी भी जबरदस्त ही है. शादी के बाद उनकी पत्नी रानी विजया खान के नाम से जानी गईं. उनके दो बेटे हैं-प्रोफेसर अली खान और अमीर हसन खान. दोनों बेटे एकेडमिक फील्ड से ही जुड़े हैं. बड़े बेटे प्रोफेसर अली खान अशोक यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं.
कुल मिलाकर उनका परिवार जेहनियत और नफासत के साथ जितना जुड़ा उतना ही तालिम से. सीतापुर में 22 सालों से पत्रकारिता जीशान अबीर कहते हैं, मैं इस परिवार को लंबे समय से जानता हूं. वह लगातार यही कहते थे कि जिंदगी में सबसे जरूरी चीज पढ़ाई है ना कि लड़ाई. इसीलिए वह जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाई में आर्थिक तौर पर बहुत मदद करते थे. इसके लिए उन्होंने फंड भी बना रखा था.
जीशान बताते हैं, राजा महमूदाबाद इंग्लैंड और मिस्र के विश्वविद्यालयों में पढ़ाने जाते थे और वहां से जो पैसा मिलता था, वो पूरा ही वह जरूरतमंद बच्चों की पढाई के लिए दे देते थे. 18 भाषाओं के जानकार थे. कई किताबें लिखीं थीं. उनकी संपत्ति लखनऊ, सीतापुर, नैनीताल के अलावा राजस्थान में फैली हुई थी.
राजा महमूदाबाद पहले लखनऊ में ला मार्टिनियर में पढ़े और फिर कैंब्रिज में पढ़ने चले गए. बंटवारे के समय उनके पिता मोहम्मद खान जिन्ना के करीब थे. मुस्लिम लीग के बड़े नेताओं में एक. जब पाकिस्तान बना तो वह वहां चले गए. वहां सियासत में भी उनका खूब सिक्का चला लेकिन वह अपनी मां के साथ भारत में ही रह गए. उनकी मां भी राजस्थान के बिल्हौर रियासत से ताल्लुक रखती थीं.
लखनऊ में वह महमूदाबाद पैलेस में रहते थे. जहां प्रवेश करते ही राजसी वैभव अब भी झलकता है. महमूदाबाद एक जमाने में अवध की सबसे धनी रियासत है. हालांकि राजा महमूदाबाद 1985 और 1989 में दो बार उत्तर प्रदेश में विधायक भी रहे. लेकिन पिता की प्रापर्टी एनमी के तौर पर दर्ज होने के बाद खुद को इसका वारिस बताते हुए इसकी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. सुप्रीम कोर्ट ने उनके हक में फैसला भी दिया लेकिन फिर यूपीए सरकार ने एक नया कानून बनाकर ज्यादातर संपत्तियों को वापस हासिल कर लिया.
बताया जाता है कि राजा महमूदा खानपान और पढ़ने-लिखने में लीन रहने वाली शख्सियत थे. खासकर कविता और पश्चिमी दर्शन के साथ एस्ट्रोनॉमी में उनका खास दखल था. वह लंदन के रायल एस्ट्रोनामिकल सोसायटी के फैलो थे. एस्ट्रोफिजिक्स पर उनकी पकड़ थी. उनका कमरा किताबों से भरा रहता था. कुल मिलाकर वह ऐसे शख्स थे जो इतिहास, दर्शन, गणित, खगोल भौतिकी, धर्म, साहित्य, कविता आदि का विद्वान था.
मोहम्मद अमीर मोहम्मद खान को प्यार से सुलेमान भाई कहा जाता था. हालांकि औपचारिक रूप से वह लोगों को महमूदाबाद के राजा, ‘राजा साहब’ ही थे. वह बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन कभी कभी सीतापुर के महमूदाबाद जाया करते थे और अपने किले में रुकते थे. वह समान सहजता से कुरान की आयतें और रामायण के श्लोक भी उद्धृत करते थे. उन्होंने वेदों और उपनिषदों का भी ज्ञाता माना जाता था.
वह जब कैंब्रिज पढ़ने गए, वहीं पर उन्हें विजया सिंह मिलीं जो राजस्थान के उदयपुर शहर के ऐसे परिवार थीं जो जाना माना प्रतिष्ठित राजपूत खानदान है. पिता जगत सिंह मेहता 1976 से लेकर 1979 तक भारत के विदेश सचिव थे. कैंब्रिज में पढ़ने के दौरान ही दोनों में प्रेम हो गया. फिर दोनों से शादी की. हालांकि इस शादी में कुछ उतार चढ़ाव आए लेकिन शादी हुई. उनका छोटा बेटा आमिर भी कैंब्रिज से ही पढ़ा है और वहां से पीएचडी की है.