‘गुरुनानक देव और कबीर के साहित्य में समानताएंव (‘गुरुनानक देव)
सेवा भाव को मूल धर्म बताने वाले गुरुनानक देव (‘गुरुनानक देव) ने लोक भाषा में कबीर की तरह ही बहुत मूल्यवान साहित्य की रचना भी की.सेवा भाव को मूल धर्म बताने वाले गुरुनानक देव ने लोक भाषा में कबीर की तरह ही बहुत मूल्यवान साहित्य की रचना भी की.
गुरुनानक देव की पुण्यतिथि – समाज में व्याप्त ऊंच-नीच और भेदभाव को समझने के बाद गुरुनानक देव ने कहा- ‘नानक उत्तम-नीच न क ..
मोको कहां ढूंढे बंदे, मैं तो तेरे पास में
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में
ना तो कौनों क्रिया करम में, ना ही योग बैराग में
खोजी होय तो तुरत ही मिलिहौ, पल भर की तलास में
कहै कबीर सुनो भाई साधो, सब सांसों की सांस में…
हर सांस में ईश्वर का वास है. किसी विशेष स्थान या कर्म में नहीं. आडंबर या दिखावे से नहीं मिलेगा और ना ही वैराग से. दिल से खोजने पर पल भर भी नहीं लगेगा और आपको ईश्वर प्राप्त हो जाएगा.
कबीरदास जी जब ये बात कह रहे थे तब समाज में शिक्षा का घोर अभाव था. तैमूर का आतंक दिल्ली ने देखा था. लगातार 15 वर्षों तक लुटेरों ने दिल्ली में लूटपाट की और राजधानी को तहस-नहस कर दिया. समाज में एक ओर गरीबी थी, शोषण था, भ्रष्टाचार था और लुटेरों का आतंक था, वहीं दूसरी और कबीर वाचिक परंपरा में जनजागरण फैलाने में जुटे थे.
कबीर का जन्म काशी में हुआ था. उनके पद और दोहे गंगा से लगे क्षेत्रों में में में जागरूकता फैला रहे थे. वहीं सुदूर उत्तर के पंजाब प्रांत के तलवंडी में बालक नानक का जन्म हुआ. बचपन से ही वे कुशाग्र बुद्धि के थे. स्वभाव से जिज्ञासु होना ही उनकी प्रखरता का परिचायक था. खास कर ईश्वर को कैसे प्राप्त किया जा सकता है? इससे जुड़े सवालों से इनके शिक्षकों ने हार मान ली और सम्मान सहित बालक नानक को घर छोड़ गये. यानी लड़कपन में ही उनका स्कूल छूट गया. दिल ईश्वर में रम गया था तो ऐसे में उनमें सांसारिक विषयों के प्रति अनुराग की भी कमी देखने को मिलती. इसके बाद बालक नानक का पूरा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में बीतने लगा. ज्ञानार्जन भी उन्होंने स्वाध्याय से ही किया.
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जैसे कबीर ने कहा- मोको कहां ढूंढे रे बंदे… वैसे ही नानकदेव जी ने ‘इक ओंकार’ का संदेश दिया. यानी, एक ईश्वर, जो स्वनिर्मित हर रचना में वास करता है, एक ईश्वर जो शाश्वत सत्य का गठन करता है. कहते हैं कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी के गुरुद्वारा बेर साहिब में एक बार गुरुनानक देव जी अपने मित्र मर्दाना के साथ नदी किनारे बैठे थे और अचानक ही उन्होंने पानी में छलांग लगा दी. हालांकि ये भी कहा जाता है कि वे नहाने गए थे और फिर कई दिन तक नहीं लौटे. काफी खोजबीन हुई लेकिन नानकदेव नहीं मिले. लोगों ने उन्हें डूबा हुआ मान लिया. लेकिन तीन दिन बाद अचानक वे वापस लौटे और तभी उन्होंने कहा ‘इक ओंकार सतिनाम’. मान्यता है कि डूबकी के दौरान ही उन्हें ईश्वर से साक्षात्कार हुआ और ज्ञान प्राप्ति वाली जगह पर ही उन्होंने बेर का एक बीज बोया था जो घना और छायादार वृक्ष बन गया.
किशोर नानक का विवाह कम उम्र में ही हो गया था. 16 वर्ष की उम्र में गुरदासपुर जिले की सुलक्खनी से उनकी शादी हुई और 16 वर्ष बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. चार साल के बाद दूसरा पुत्र होने के बाद नानक देव जी परिवार की जिम्मेदारी अपने ससुर को सौंप दी और चार साथियों के साथ सन 1507 में तीर्थयात्रा पर निकल पड़े. मरदाना, लहना, बाला और रामदास उनके साथ थे. तब नानकदेव जी की उम्र 38 वर्ष थी. तभी उन्होंने सिख धर्म की शुरुआत की थी. कहा भी जाता है यात्रा से अच्छा ज्ञान किसी किताब में नहीं मिल सकता. ये बात गुरुनानक देव जी युवावस्था में ही समझ गये थे. भ्रमण के दौरान सैकडों-हजारों किलोमीटर की यात्रा उन्होंने की और समाज को बेहद करीब से देखा, समझा.
तब तक लोदी वंश और सल्तनतकाल बीत चुका था. समाज में आक्रांताओं का दुष्प्रभाव साफ परिलक्षित हो रहा था. प्रार्थना के लिए भी बंदिशें लगाई जा रही थीं. अत्याचार बढ़ रहा था. धर्म काफी समय से थोथी रस्मों और रीति-रिवाजों का नाम बनकर रह गया था. उत्तरी भारत के लिए यह कुशासन और अफरातफरी का समय था. सामाजिक जीवन में भारी भ्रष्टाचार था और धार्मिक क्षेत्र में द्वेष और कशमकश का दौर था. हिन्दू और मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि दोनों बड़े धर्मों के अलग-अलग संप्रदायों के बीच भी ये देखने को मिल रहा था.
इसकी वजह से अलग-अलग संप्रदायों के बीच पैदा हो चुकी कट्टरता बढ़ती जा रही थी. प्रतिरोध का भाव प्रबल होता जा रहा था. सामाजिक स्थिति दिनों दिन बिगड़ती जा रही थी. समाज जातियों और वर्गों में बुरी तरह विभक्त हो चुका था. ब्राह्मणवाद का एकाधिकार चहुंओर दिख रहा था जिसकी वजह से गैर-ब्राह्मण को वेद या शास्त्र पढ़ने-पढ़ाने से विमुख किया जाता था. छोटी जातियों के वेद-शास्त्र पढ़ने पर पूर्णत: प्रतिबंध था
समाज में व्याप्त ऊंच-नीच की गंभीर बीमारी को समझने के बाद गुरु नानक ने कहना शुरू किया. ‘जपुजी साहिब’ में वे कहते हैं- ‘नानक उत्तम-नीच न कोई’ यानी ईश्वर के लिए कोई भी बड़ा या छोटा नहीं है, इसके बाद भी अगर कोई इंसान खुद को प्रभु की निगाह में छोटा समझे तो भगवान हमेशा उस इंसान के साथ होता है. और ये सिर्फ तभी हो सकता है जब इंसान भगवद् स्मरण से अपने घमंड पर विजय पा लेता है. तब वो इंसान भगवान के लिए सबसे बड़ा होता है और उस इंसान की बराबरी कोई नहीं कर सकता. तभी गुरुनानक देव ने ‘इक ओंकार’ का संदेश दिया, यानी एक ईश्वर, जो स्वनिर्मित हर रचना में वास करता है. एक ईश्वर जो शाश्वत सत्य का गठन करता है. इसके साथ ही उन्होंने कुछ और चीजों की तरफ समाज का ध्यान आकृष्ट करवाया. कबीर का साहित्य भी इसी ओर ले जाता है.
वंड छको – यानी भगवान ने आपको जो कुछ भी दिया है, उसे दूसरों के साथ बांटो. उन्होंने कहा कि जरूरतमंदों की मदद करना ही सबसे बड़ी नेमत है. इसे सिख धर्म के सिद्धांतों में से एक माना जाता है.
कीरत करो– यानी ईमानदारी से जीवन यापन करो. आत्म सुख का आनंद लेने के लिए दूसरों का शोषण नहीं करना चाहिए. उन्होंने बिना धोखे के कमाई और लगन से काम करने का उपदेश दिया.
नाम जपो- सच्चे भगवान के नाम का जाप करें, गुरु नानकदेव जी ने 5 बुराइयों पर काबू पाने के लिए प्रभु के नाम का स्मरण करने पर जोर दिया. वे हैं काम, क्रोध, लोभ मोह और अहंकार.
सरबत दा भला – जब भी प्रार्थना करो, भगवान से सबकी खुशी मांगो. उन्होंने सार्वभौमिक भाईचारे की अवधारणा पर जोर दिया. गुरु नानकदेव जी कहा कि धर्म, जाति और लिंग के बावजूद सभी को दूसरों का भला करना चाहिए और तभी बदले में वह अच्छाई वापस मिल सकती है.
बिना डरे सच बोलो – झूठ को दबाकर जीत हासिल करना अस्थाई है. सत्य पर दृढ़ रहना स्थायी है. सत्य पर अडिग रहना भी गुरु के हुकुम (आदेश) में से एक है.
थोड़े दिनों के अंतराल पर ही भ्रमण के दौरान गुरु नानकदेव जी ने भी ऐसी ही बात कही-
नीचा अंदर नीच जात, नीची हूं अति नीच
नानक तिन के संगी साथ, वडिया सिऊ कियां रीस..
इसी तरह से समाज में फैले जातीय भेदभाव को खत्म करने के लिए कबीर ने कहा है-
कबीर जाति न पूछो साधु की,
पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तलवार का,
पड़ा रहन दो म्यान
समाज में समानता का नारा देने के लिए गुरु नानकदेव जी कहते हैं- ‘प्रभु हमारा पिता है और हम सब उसके बच्चे हैं. पिता के लिए कोई भी बच्चा कम या ज्यादा नहीं होता, सभी बच्चे एक समान होते हैं. ईश्वर ही हमें पैदा करता है और हमारे पेट भरने के लिए भोजन का प्रबंध करता है.’
गुरुनानक देव जी जाति-पाति का विरोध करना शुरू कर देते हैं. वे समाज से ही पूछते हुए जवाब भी देते चलते हैं. नानकदेव जी बताते हैं कि मानव जाति एक ही है इसीलिए जाति की वजह से ऊंच-नीच क्यों है? उनका मानना था कि मानव की जाति नहीं पूछनी चाहिए, जब व्यक्ति ईश्वर की शरण में जाता है तो क्या वहां जति पूछी जाती है? वहां जाति नहीं पूछी जाती, सिर्फ आपके कर्म ही देखे जाते हैं. गुरुनानक देव जी ने मुखवाणी ‘जपुजी साहिब’कही. इसमें वे एक जगह कहते हैं-
नानक जंत उपाइके, संभालै सभनाह.
जिन करते करना कीया, चिंताभिकरणी ताहर..
अर्थात – जब हम सब एक पिता के वारिस बन जाते हैं तो पिता की निगाह में जात-पात का कोई सवाल पैदा नहीं होता.
गुरुनानक देव जी ने समाज में व्याप्त कई बुराइयों की आलोचना की है. छुआ-छूत और तंत्र-मंत्र उनके निशाने पर रहे. उनकी बातें समाज को आज भी रास्ता दिखाती हैं, लेकिन कौन कितना स्वीकार करता है, ये व्यक्ति विशेष पर निर्भर है. पंजाब में सिख धर्म की शुरुआत करने वाले गुरु नानकदेव जी को हिन्दू भी मानते हैं और मुसलमान भी. इस बात से एकदम अलग कि उन्होंने इन दोनों धर्मों से अलग एक भिन्न धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू किया. जिसके सेवा भाव का उदाहरण आज दुनिया देती है.