नवरात्रि के तीसरे दिन कैसे करें माँ चंद्रघंटा की पूजा

शिवाकान्त पाठक
दुर्गा का नवरात्रि में विशेष महत्व है माँ ने असुरों के संघार हेतु विभिन्न रूप प्रकट किये ! संसार की जन्म दाता माँ भगवती देवी अपने भक्तों की पुकार सुनकर प्रत्यक्ष प्रकट होकर असुरों का विनाश करती हैं व सभी जीव उनकी ही संताने हैं किन्तु जो भी अहंकार वश संसार के नियमों का उलंघन करते हुए मानव व अन्य जीवों के लिए संकट या खतरा साबित होते हैं उनका विनाश माँ को स्वयं करना पड़ता है सुकर्मों से तमाम सिध्दियां जैसे धन, पद, शक्ति आदि प्राप्त होने का अर्थ है कि आप जन कल्याण करें ना कि अभिमान वश जन साधारण के लिए खतरा साबित हों ? यदि ऐसा करते हैं तो मानव कहलाने के लायक नहीं रहते व माँ आदि शक्ति व्दारा किसी ना किसी रूप से ऐसे लोग विनाश को प्राप्त हो जाते हैं!
नवरात्र के तीसरे दिन यानी तृतीया को मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है और भोग लगाया जा सकता है। मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए आप सबसे पहले सुबह स्नान करें और फिर सूर्य देवता को अर्घ्य देने के बाद अपने व्रत की शुरुआत करें। आइए हम आपको बताते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा का विधिविधान, कथा और स्वरूप…
!तीसरे दिन का महत्व !
नवरात्र में तीसरे दिन की पूजा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन मां के विग्रह का पूजन और अराधना की जाती है। मान्यता है कि मां चंद्रघंटा के घंटे की ध्वनि से अत्याचारी, दानव, दैत्य और राक्षस कांपते हैं। माता की कृपा से भक्तों को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन मिलते हैं। धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि मां चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों में वीरता और निर्भीकता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है।
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ऐसा है मां का स्वरूप जिसके दर्शन मात्र से जन्म सफल हो जाता है, मां के मस्तक पर घंटे के आधा चंद्रमा शोभायमान है, इसलिए मां दुर्गा के इस स्वरूप को चंद्रघंटा कहा गया है। देवी का यह स्वरूप कल्याणकारी है। इनके शरीर का रंग सोने जैसा चमकता है। मां की 10 भुजाएं हैं। वह खड़ग और खपरधारी हैं। मां चंद्रघंटा के गले में सफेद फूलों की माला है।
पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।।