दिल्ली से भी रहे दूर महात्मा गांधी(र महात्मा गांधी)
आजादी का जश्न: भारत के इतिहास में 15 अगस्त 1947 का दिन बहुत ही अहम तारीख के तौर पर दर्ज है. इस दिन भारत और भारतीयों को 200 साल लंबी ब्रिटिश गुलामी और उनके अत्याचारों से मुक्ति मिली थी. देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए अनगिनत क्रांतिवीरों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी. वहीं, कुछ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आखिरी सांस तक और कुछ ने आजादी मिलने तक बिना थके, बिना रुके, बिना झुके संघर्ष किया.
भारत की आजादी के संघर्ष को उस दिन नई दिशा मिली, जब 1915 में महात्मा गांधी (र महात्मा गांधी) दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत भ्रमण पर निकल गए थे. महात्मा गांधी ने साल 1919 में बिहार के चंपारण में किसानों के लिए जमीन पर आंदोलन शुरू किया. राष्ट्रपिता ने आजादी की लड़ाई को सविनय अवज्ञा आंदोलन, 1930 में नमक के कानून को तोड़ने के लिए दांडी यात्रा जैसे अपने अहिंसक आंदोलनों से नई दिशा दी.
पंडित नेहरू के भाषण में भी नहीं पहुंचे राष्ट्रपिता
राष्ट्रपिता के अथक प्रयासों और अहिंसावादी आंदोलनों के कारण जब देश को आजादी मिली और पूरा देश स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहा था तो उन्होंने उत्सव में शामिल होने से इनकार कर दिया. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर अपना सर्वस्व देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर देने वाले महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता दिवस का जश्न क्यों नहीं मनाया? आपको जानकार आश्चर्य होगा कि महात्मा गांधी अपने शिष्य पंडित जवाहर लाल नेहरू के ऐतिहासिक भाषण में भी शामिल नहीं हुए थे.
मंजूर नहीं थी बंटवारे की कीमत पर मिली आजादी
सबसे बड़ी बात ये है कि वह इस 15 अगस्त 1947 को दिल्ली में ही नहीं थे. अगर वह दिल्ली में नहीं थे तो फिर कहां थे? क्या था ऐसा, जो उन्हें देश की आजादी के जश्न से भी ज्यादा महत्वपूर्ण लगा था? देश-दुनिया में आज तक याद किए जाने वाले महात्मा गांधी क्यों देश की इतनी बड़ी उपलब्धि से दूर रहे? आइए आपके मन में उठे इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं. बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत के बंटवारे के आधार पर मिली आजादी गांधीजी को मंजूर नहीं थी.
राष्ट्रपिता ने आजादी का जश्न क्यों नहीं मनाया
15 अगस्त 1947 को जब देश ब्रिटिशराज से आजादी का जश्न मना रहा था, तब देश का एक हिस्सा हिंदू-मुस्लिम दंगों की आग में जल रहा था. महात्मा गांधी ने आजादी के जश्न में शामिल होने के ऊपर बंगाल के नोआखली में भड़की दंगों की आग बुझाने को तरजीह दी. गांधी जी नोआखाली में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सौहार्द्र कायम करने के लिए गांव-गांव घूम रहे थे. जब पूरा देश आजादी की खुशी में मिठाइयां खा रहा था, तब बापू कोलकाता में उपवास रख रहे थे ताकि दंगे रुक जाएं. गांव-गांव घूमने के दौरान उनके पास धार्मिक पुस्तकें थीं. उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों से शांति बनाए रखने की अपील की. साथ ही उन्हें शपथ दिलाई कि वे एक-दूसरे की हत्या नहीं करेंगे.
ऐसा नहीं था कि महात्मा गांधी को स्वतंत्रता दिवस के महोत्सव में शामिल होने के लिए बुलाया नहीं गया था. आजादी मिलने की तारीख से एक हफ्ते पहले ही सरदार वल्लभ भाई पटेल और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बापू को निमंत्रण के तौर पर एक पत्र भेजा था. हालांकि, महात्मा गांधी ने पत्र लेकर पहुंचे दूत को यह कहकर लौटा दिया कि देश में हिंदू और मुसलमान फिर झगड़ रहे हैं. ऐसे में मेरा आजादी के जश्न में शामिल होने से ज्यादा जरूरी है कि मैं उनके बीच रहूं. इतना कहकर बापू कुछ दिन बाद बंगाल के लिए रवाना हो गए थे. इसके बाद वह काफी समय तक बंगाल में ही रहे.