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विरोध प्रदर्शनों के बाद भी नहीं बदला ईरान!( ईरान!)

तेहरान: हिजाब को लेकर हिरासत में ली गई छात्रा महसा अमीनी की मौत को 1 साल होने वाले हैं. महसा की मौत 16 सितंबर को हुई थी. हिजाब ठीक ढंग से न पहनने पर अमीनी को पुलिस ने हिरासत में लिया था और टॉर्चर से उसकी मौत हो गई थी. इसके बाद देशभर में हिजाब को लेकर बवाल मच गया था और महीनों तक हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे. महिलाओं ने सार्वजनिक रूप से अपने बाल काटे और हिजाब जलाया. अब जब महसा अमीनी की मौत को 1 साल होने वाले हैं, तब ईरानी ( ईरान!) अधिकारी हिजाब को लेकर एक नया विधेयक तैयार करने में लगे हैं.

विशेषज्ञों ने कहा कि यह विधेयक, ईरानियों के लिए एक चेतावनी है कि पिछले साल देशभर में भारी विरोध प्रदर्शन के बावजूद ईरान हिजाब रूल पर अपने रुख से पीछे नहीं हटेगा. 70-अनुच्छेद का मसौदा कानून कई प्रस्तावों को निर्धारित करता है, जिसमें घूंघट पहनने से इनकार करने वाली महिलाओं के लिए लंबी जेल की सजा, नियमों का उल्लंघन करने वाले मशहूर हस्तियों और व्यवसायों के लिए कठोर नए दंड और उन महिलाओं की आर्टिफीसियल इंटेलिजेन्स की मदद से पहचान की जाएगी जो ड्रेस कोड का उल्लंघन करेगी.

विधेयक को इस वर्ष की शुरुआत में न्यायपालिका द्वारा विचार के लिए सरकार के पास प्रस्तुत किया गया था, फिर संसद में भेजा गया और बाद में कानूनी और न्यायिक आयोग द्वारा अनुमोदित किया गया. राज्य-संबद्ध समाचार एजेंसी मेहर ने मंगलवार को बताया कि इसे संसद के पटल पर पेश करने से पहले इस रविवार को गवर्नर्स बोर्ड को प्रस्तुत किया जाएगा.

ईरान में हिजाब लंबे समय से विवाद का मुद्दा रहा है. 1936 में नेता रेजा शाह के शासन में महिलाएं आजाद थीं. शाह के उत्तराधिकारियों ने भी महिलाओं को आजाद रखा लेकिन 1979 की इस्लामी क्रांति में आखिरी शाह को उखाड़ फेंकने के बाद 1983 में हिजाब अनिवार्य हो गया. ईरान पारंपरिक रूप से अपने इस्लामी दंड संहिता के अनुच्छेद 368 को हिजाब कानून मानता है, जिसमें कहा गया है कि ड्रेस कोड का उल्लंघन करने वालों को 10 दिन से लेकर दो महीने तक की जेल या 50,000 से 500,000 ईरानी रियाल के बीच जुर्माना हो सकता है.

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