धर्म - अध्यात्म
पांडवों ने द्रौपदी के लिए ये 1 नियम बनाया था , किसने तोड़ा था इसे?
महाभारत की कथा जितनी बड़ी है, उतनी ही रोचक भी है। कौरव व पांडवों के अलावा भी इसमें अनेक राजाओं की रोचक व प्रेरणादायी कहानियां पढ़ने को मिलती हैं। इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास हैं। इस ग्रंथ में कुल एक लाख श्लोक हैं, इसलिए इसे शतसाहस्त्री संहिता भी कहते हैं। आज हम आपको इस ग्रंथ की कुछ रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-
1. ये नियम बनाया था पांडवों ने
द्रौपदी से विवाह के बाद एक दिन नारद मुनि पांडवों से मिलने आए। उन्होंने पांडवों को बताया – प्राचीन समय में सुंद-उपसुंद नामक दो राक्षस भाई थे। उन्होंने अपने पराक्रम से देवताओं को भी जीत लिया था, लेकिन एक स्त्री के कारण दोनों में फूट पड़ गई और उन दोनों ने एक-दूसरे का वध कर दिया। ऐसी स्थिति तुम्हारे साथ न हो, ऐसा नियम बनाओ।
तब पांडवों ने द्रौपदी के लिए एक नियम बनाया कि एक नियमित समय तक हर एक भाई के पास द्रौपदी रहेगी। जब एक भाई द्रौपदी के साथ एकांत में होगा तो वहां दूसरा भाई नहीं जाएगा। यदि कोई भाई इस नियम का उल्लंघन करता है तो उसे ब्रह्मचारी होकर 12 साल तक वन में रहना होगा। परिस्थितियों वश अर्जुन ने इस नियम को तोड़ दिया था, जिसके कारण उन्हें 12 वर्ष वनवास जाना पड़ा था।
तब पांडवों ने द्रौपदी के लिए एक नियम बनाया कि एक नियमित समय तक हर एक भाई के पास द्रौपदी रहेगी। जब एक भाई द्रौपदी के साथ एकांत में होगा तो वहां दूसरा भाई नहीं जाएगा। यदि कोई भाई इस नियम का उल्लंघन करता है तो उसे ब्रह्मचारी होकर 12 साल तक वन में रहना होगा। परिस्थितियों वश अर्जुन ने इस नियम को तोड़ दिया था, जिसके कारण उन्हें 12 वर्ष वनवास जाना पड़ा था।
2. अर्जुन ने तोड़ा था नियम
एक बार एक ब्राह्मण रोता हुआ अर्जुन के पास आया, उसने बताया कि उसकी गायों की डाकू ले जा रहे हैं। अर्जुन के अस्त्र-शस्त्र उस समय युधिष्ठिर के महल में थे और वे द्रौपदी के साथ एकांत में थे। नियम के अनुसार अर्जुन युधिष्ठिर के महल में नहीं जा सकते थे, लेकिन उन्होंने ब्राह्मण की सहायता के लिए वह नियम तोड़ दिया और अपने अस्त्र-शस्त्र लेकर डाकुओं से गाएं वापस ले आए। नियम तोड़ने के कारण अर्जुन 12 वर्ष के वनवास पर चले गए।
वनवास के दौरान जब एक दिन अर्जुन सौभद्रतीर्थ में स्नान कर रहे थे तभी उनका पैर एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया। अर्जुन उसे उठाकर ऊपर ले आए। उसी समय वह मगरमच्छ एक सुंदर अप्सरा बन गई। उसने अर्जुन को बताया कि- एक तपस्वी ने मुझे और मेरी सखियों को श्राप देकर मगर बना दिया था। अब आप मेरी सखियों का भी उद्धार कर दीजिए। इस तरह अर्जुन ने उस अप्सरा की सखियों का भी उद्धार कर दिया।
वनवास के दौरान जब एक दिन अर्जुन सौभद्रतीर्थ में स्नान कर रहे थे तभी उनका पैर एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया। अर्जुन उसे उठाकर ऊपर ले आए। उसी समय वह मगरमच्छ एक सुंदर अप्सरा बन गई। उसने अर्जुन को बताया कि- एक तपस्वी ने मुझे और मेरी सखियों को श्राप देकर मगर बना दिया था। अब आप मेरी सखियों का भी उद्धार कर दीजिए। इस तरह अर्जुन ने उस अप्सरा की सखियों का भी उद्धार कर दिया।
3. जानिए पांडवों की पत्नी व पुत्रों के बारे में
1.पांडवों की द्रौपदी के अलावा दूसरी पत्नियां भी थीं। युधिष्ठिर की पत्नी का नाम देविका था, उसके पुत्र का नाम यौधेय था। नकुल की पत्नी करेणुमती से निरमित्र और सहदेव की पत्नी विजया के गर्भ से सुहोत्र नामक पुत्र का जन्म हुआ।
2. भीमसेन की दो पत्नियां और थी। पहली हिडिंबा और दूसरी काशीराज की पुत्री बलंधरा। हिडिंबा का पुत्र घटोत्कच व बलंधरा के पुत्र का नाम सर्वग था।
3. अर्जुन ने श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा, नागकन्या उलूपी व मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से विवाह किया था। अर्जुन से सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इडावान् और चित्रांगदा से बभ्रूवाहन नामक पुत्र था।
4. द्रौपदी को पांचों पांडवों से एक-एक पुत्र था। युधिष्ठिर के पुत्र का नाम प्रतिविन्ध्य, भीम के पुत्र का नाम सुतसोम, अर्जुन के पुत्र का नाम श्रुतकर्मा, नकुल के पुत्र का नाम शतानीक तथा सहदेव के पुत्र का नाम श्रुतसेन था।
2. भीमसेन की दो पत्नियां और थी। पहली हिडिंबा और दूसरी काशीराज की पुत्री बलंधरा। हिडिंबा का पुत्र घटोत्कच व बलंधरा के पुत्र का नाम सर्वग था।
3. अर्जुन ने श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा, नागकन्या उलूपी व मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से विवाह किया था। अर्जुन से सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इडावान् और चित्रांगदा से बभ्रूवाहन नामक पुत्र था।
4. द्रौपदी को पांचों पांडवों से एक-एक पुत्र था। युधिष्ठिर के पुत्र का नाम प्रतिविन्ध्य, भीम के पुत्र का नाम सुतसोम, अर्जुन के पुत्र का नाम श्रुतकर्मा, नकुल के पुत्र का नाम शतानीक तथा सहदेव के पुत्र का नाम श्रुतसेन था।
4. अग्निदेव ने अर्जुन को दिया था गांडीव धनुष
एक बार भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन यमुना तट पर बैठे थे। उसी समय वहां ब्राह्मण के रूप में अग्निदेव आए और उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि- मैं खाण्डव वन को भस्म करना चाहता हूं, लेकिन इस वन में देवराज इंद्र का मित्र तक्षक नाग अपने परिवार के साथ रहता है इसलिए इंद्र मुझे खाण्डव वन नहीं जलाने देते।
तब अर्जुन ने उनसे दिव्य अस्त्र-शस्त्र की मांग की। अग्निदेव ने अर्जुन को एक अक्षय तरकश, गांडीव धनुष और वानरचिह्नयुक्त ध्वजा से सुसज्जित एक रथ प्रदान किया। अग्निदेव ने भगवान श्रीकृष्ण को एक दिव्य चक्र और आग्नेयास्त्र प्रदान किया।
अग्निदेव जब खाण्डव वन जलाने लगे तो देवराज इंद्र वहां आ गए और मूसलाधार बारिश करने लगे, लेकिन अर्जुन ने अपने शस्त्रों से बारीश को बीच में ही रोक दिया। तभी आकाशवाणी हुई कि- अर्जुन और श्रीकृष्ण साक्षात नर-नारायण के अवतार हैं, तुम इनसे नहीं जीत सकते। यह सुनकर इंद्र वहां से चले गए।
तब अर्जुन ने उनसे दिव्य अस्त्र-शस्त्र की मांग की। अग्निदेव ने अर्जुन को एक अक्षय तरकश, गांडीव धनुष और वानरचिह्नयुक्त ध्वजा से सुसज्जित एक रथ प्रदान किया। अग्निदेव ने भगवान श्रीकृष्ण को एक दिव्य चक्र और आग्नेयास्त्र प्रदान किया।
अग्निदेव जब खाण्डव वन जलाने लगे तो देवराज इंद्र वहां आ गए और मूसलाधार बारिश करने लगे, लेकिन अर्जुन ने अपने शस्त्रों से बारीश को बीच में ही रोक दिया। तभी आकाशवाणी हुई कि- अर्जुन और श्रीकृष्ण साक्षात नर-नारायण के अवतार हैं, तुम इनसे नहीं जीत सकते। यह सुनकर इंद्र वहां से चले गए।