बीस साल पुराने मामले में तत्कालीन एसओ समेत सात पर रिपोर्ट
उरई/जालौन। पुलिस किस तरह बेकसूर लोगों को फर्जी मामले में फंसाती है, इसका प्रमाण बीस साल बाद सामने आया है। रामपुरा थाना पुलिस ने बीस साल पहले युवक को एनडीपीएस के मामले में जेल भेजा था। परिजनों की गुहार पर शासन ने मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंपी थी। जांच पूरी होने के बाद पांच अक्तूबर को सीबीसीआईडी कानपुर की एसपी रवीना त्यागी के आदेश पर रामपुरा थाने में सात अक्तूबर को तत्कालीन एसओ समेत सात लोगों के खिलाफ युवक को फर्जी फंसाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है। इसमें तत्कालीन तीन सिपाही भी शामिल हैं। इंस्पेक्टर रामपुरा संजय मिश्रा ने बताया कि सीबीसीआईडी के इंस्पेक्टर योगेंद्र नाथ की तहरीर पर तत्कालीन एसओ समेत सात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। तत्कालीन एसओ वर्तमान में लखनऊ सीबीसीआईडी में सीओ के पद पर कार्यरत बताए जा रहे हैं। पुलिस ने बताया कि औरैया के अजीतमल थाना क्षेत्र के विद्यानगर, बाबरपुर निवासी मुकेश उर्फ बबलू पुत्र हरदयाल को 31 मार्च 2000 की रात रामपुरा पुलिस घर से पकड़कर थाने लाई थी। अगले दिन मुकेश को एनडीपीएस में पुलिस ने जेल भेज दिया था। करीब दो दिन बाद परिजनों को जानकारी हुई। इस पर उन्होंने थाने पर संपर्क किया। पुलिस ने बताया कि मुकेश के पास से 300 ग्राम चरस बरामद हुई थी। इससे उसे जेल भेज दिया गया। परिजनों के मुताबिक वह रामपुरा पुलिस से गुहार लगाते रहे कि मुकेश बेकसूर है। पुलिस ने एक नहीं सुनी। इसके बाद परिजनों ने राजनीति से जुड़े कुछ लोगों की मदद से शासन तक अपनी पीड़ा पहुंचाई। इस पर तत्कालीन प्रदेश सरकार ने मुकेश की चाची कटोरी देवी पत्नी बाबूराम के प्रार्थना पत्र पर मामले की सीबीसीआईडी जांच के निर्देश दिए। लंबे समय तक चली जांच पड़ताल के बाद सामने आया कि मुकेश निर्दोष था। तत्कालीन रामपुरा एसओ शैलेंद्र सिंह, सिपाही तिलक सिंह, बृजेश कुमार, ब्रजेश्वर दयाल व पब्लिक के लोगों में रामकरन, अरुण कुमार, सुरेश चंद्र निवासी अजीतमल ने फर्जीवाड़ा कर झूठे मामले में जेल भेजा है। वर्तमान रामपुरा थाना प्रभारी संजय मिश्रा ने बताया कि शैलेंद्र सिंह समेत सभी आरोपियों के खिलाफ एनडीपीएस, बंधक बनाने और फर्जीवाड़ा कर युवक को जेल भेजने का मामला दर्ज किया गया है। मामले से उच्चाधिकारियों को अवगत करा दिया गया है।