शरणार्थियों का जीवन कब सामान्य ( normal)(होगा

इंफाल. वे पिछले चार दिनों से कैंप में रह रहे हैं. हर रोज कई और लोग भी वहां पहुंच ( normal)()रहे हैं. इस तरह के तमाम कैंप घाटियों के साथ साथ पहाड़ों पर भी लगाए गए हैं और वो लोग जिनके घर जल गए हैं उन्हें यहां लाया जा रहा है. पिछले चार दिनों में करीब 23,000 लोग इन कैंपों में लाए गए हैं. जो कि खुले में सोने के लिए मजबूर हैं.
मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग के विरोध में राज्य के 0 पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें हुईं. मेइती समुदाय के लोग जो कि मणिपुर की जनसंख्या में 53 फीसदी है अधिकतर इम्फाल घाटी में ही रहते हैं. आदिवासी-नागा और कुकी बाकी अन्य 40 फीसदी हैं जो कि आमतौर पर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.
एक शरणार्थी से बात की जो कि पिछले चार दिनों से अपने परिवार के आठ सदस्यों के साथ कैंप में रह रहे हैं. उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यहां उनके कैंप का नाम नहीं बता रहा है. उन्होंने बताया, उस दिन काफी ज्यादा संख्या में शरारती तत्व आ गए और हम भाग गए. उन्होंने हमारे घर को जला दिया. मैं अपने परिवार के साथ वहां से भाग आया. हमें सुरक्षाबलों ने बचाया और यहां ले आए.
उन्होंने आगे कहा, सुरक्षाबलों ने इन कैंपों में हमें मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराईं. यहां बहुत सारे लोग हैं. सरकार कोशिश कर रही है लेकिन एक समय पर यहां बहुत ज्यादा खाने के लिए नहीं होता. खाना पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर दिया जाता है.
उन्होंने कहा, मुझे नहीं पता. मेरा घर जला दिया गया है. मैं नहीं जानता कि अब मुझे कहां जाना चाहिए. ऐसे में जब लगातार और लोग आ रहे हैं, मैं उन इलाकों में नहीं जा सकता जहां पर दूसरे समुदाय के लोगों का वर्चस्व है. हम कैंप के बाहर खुले में जगह बना रहे हैं. हमें साथ रहना होगा और मैं आशा करता हूं कि ये दिन जल्दी आए.
कम से कम सेना के 125 कॉलम लोगों को बचाने और उन्हें सुरक्षित जगहों पर ले जाने का काम कर रहे हैं. प्रशासन क्षेत्र में शांति कायम रखने के लिए कदम उठा रहा है. इसके साथ ही शांति के लिए संगठन बनाए गए हैं.
हालांकि शरणार्थियों का जीवन कब सामान्य होगा. कब ये लोग अपने घर जा सकेंगे, ये सवाल अब भी बरकरार है.