भुज जलजले का वह चमत्कारी (miracle) बच्चा अब

अहमदाबाद. 30 जनवरी, 2001 का वह दिन 84 घंटे हो चुके थे, जब भुज में शक्तिशाली भूकंप आया था. शहर समतल हो गया था, इस विनाशकारी भूकंप में 13,000 लोग मारे गए थे. जिस स्थान पर कभी तीन मंजिला घर हुआ करता था, वहां बचावकर्मी तेजी से किसी के जीवित होने की उम्मीद खो रहे थे. अचानक, किसी ने कंक्रीट के ढेर के नीचे रोने की आवाज सुनी. घंटों बाद, आठ महीने के मुर्तजा अली वेजलानी को मलबे से बाहर निकाला गया… वह भी चमत्कारिक(miracle) रूप से जिंदा.
पिछले हफ्ते भुज कस्बे की एक मस्जिद के हॉल में एक बार फिर मुस्कुराहट और आंसू थे. क्योंकि मुर्तजा, जो अब 22 साल के हैं, उनकी राजकोट की एक लड़की से सगाई हो गई. जब 26 जनवरी को भुज में 7.6 तीव्रता का भूकंप आया, तो मुर्तजा की दादी फातिमा मोरबी में अपनी बीमार मां से मिलने गई थीं. भुज के कंसारा बाजार इलाके में रहने वाले दाऊदी बोहरा व्यवसायी वेजलानी परिवार का तीन मंजिला घर भूकंप में धूल और मलबे का ढेर बन जमींदोज हो गया.
भूकंप के कारण ढह चुके मकान में मुर्तजा के अलावा परिवार के आठ सदस्य, उसके माता-पिता मुफद्दल और जैनब, दादा मोहम्मद, चाचा अली असगर, चाची जैनब और उनकी दो बेटियां, नफीशा और सकीना मलबे में फंस गए थे. लेकिन भूकंप के तीन दिन बाद और मुर्तजा के दादा के शव को मलबे से बाहर निकालने के एक दिन बाद, दादी फातिमा, जिन्हें कच्छ जिले के मांडवी शहर में दाऊदी बोहरा समुदाय द्वारा खोले गए राहत शिविर में भेजा गया था, को कुछ अविश्वसनीय खबर मिली. वह खबर थी कि बेबी मुर्तजा जिंदा था. हालांकि अन्य में से किसी को भी नहीं बचाया जा सका.
उस समय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बचाव कार्यों में शामिल सीमा सुरक्षा बल के कर्मियों के हवाले से कहा गया था कि बचाव दल ने मुर्तजा को उसकी मृत मां जैनब की गोद से बाहर निकाला था. मुर्तजा, जिनके सिर, माथे, गाल और पीठ पर गहरे घाव थे, उन्हें भुज जुबली ग्राउंड में भारतीय सेना के कैंप अस्पताल ले जाया गया और बाद में उन्हें मुंबई के लीलावती अस्पताल ले जाया गया. मुर्तजा की बुआ नफीशा और उनके पति जाहिद लकड़ावाला, जो कच्छ के अंजार शहर में एक लकड़ी के व्यापारी हैं, ने अपना व्यवसाय बंद कर दिया और भुज की मेहंदी कॉलोनी में फातेमा के पास एक घर में चले गए और मुर्तजा को पालने में मदद की.
मुर्तजा के सगाई समारोह में रिश्तेदारों और मेहमानों से घिरे उनके नाना जमाली उस दिन को याद करते हैं जब मुर्तजा को बचाया गया था. वह कहते हैं ‘मैं विश्वास नहीं कर सकता कि यह समारोह वास्तव में हो रहा है. मैं उन दिनों को नहीं भूल सकता. लेकिन यहां हम आज जिंदा हैं, अपने खूबसूरत बेटे की सगाई होते हुए देख रहे हैं. मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि उनकी खुशी हमेशा बनी रहे.’ उनके बगल में खड़ी मंगेतर अलेफिया हथियारी, जो बीएससी की डिग्री ले रही हैं, कहती हैं ‘जब हम पहली बार मिले थे तो मुर्तजा ने मुझे अपनी कहानी के बारे में बताया था. उनका जीवन एक चमत्कार है… ऐसी कहानियां बहुत कम घटित होती हैं.’