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क्या है राजस्थान ( Rajasthan)की बिंदौली परंपरा?

बाड़मेर. सतरंगी राजस्थान ( Rajasthan) में शादी के समय निकाले जानी वाली खास परंपरा है बिंदौली. कभी दलितों के द्वारा बिंदौली निकालने पर इसका विरोध अक्सर पथराव और मारपीट के बाद थानों तक पहुंच जाता था. सामाजिक समानता के तर्कों के बाद सवर्णों की सोच बदली है. खुद मेघवाल समाज के दूल्हों को कई बार दबंगों की तानाशाही का शिकार होना पड़ा है. लेकिन, अब इसी समाज की पंचायत अपने तुगलकी फरमान के कारण सुर्खियों में है.

दरअसल, बाड़मेर जिले के मेली गांव में मेघवाल समाज के पंच घोड़ी पर बहनों की बिंदौली निकालने से खफा हो गए हैं. जातीय पंचों ने समाज के बहिष्कृत करने के साथ ही 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है.
यह है राजस्थान की बिंदौली या निकासी परंपरा
पहले यह जानते हैं कि बिंदौली परंपरा के मायने क्या हैं? विवाह से पूर्व वर को घोड़ी पर बैठाकर गाजे-बाजे के साथ गांव या कस्बे में घुमाया जाता है. इसे निकासी या बिंदौली कहते हैं. इसमें वर के रिश्तेदार, मित्र और परिचित सम्मिलित होते हैं. वर घोड़ी पर सवार होकर मंदिर में जाकर अपने देवी-देवताओं की पूजा करता है. इसके बाद दूल्‍हे को किसी परिचित या मित्र के घर ठहराते हैं. निकासी के बाद वर-वधु को लेकर ही वापस अपने घर लौटता है. बिंदौली में एक और रिवाज प्रचलित है, जिसके अनुसार जिस रास्ते से यह निकलती है, उसी रास्ते से वर वापस नहीं लौटता है. निकासी के समय जब वर घोड़ी पर बैठता है तो रिश्तेदार उसे रुपये देते हैं और वर की बहनें घोड़ी को चने की दाल खिलाती हैं. इस परंपरा को घुड़चढ़ी कहते हैं.
कभी बिंदौली के लिए लड़ते थे, अब इसी के खिलाफ
दरअसल, बाड़मेर के सिवाना थाना क्षेत्र के निवासी थानाराम मेघवाल ने अपनी दो लाडली बहनों की शादी में नई परंपरा के साथ कदमताल मिलाए. सामाजिक लिंग-भेद को खत्म करने के लिए उन्होंने दूल्हे की तरह दुल्हनों की भी फरवरी में घोड़ी पर बिंदौली निकाली. जो मेघवाल समाज कभी खुद बिंदौली निकालने के लिए दबंगों से संघर्ष लेता रहा. उसके पंचों के ही दुल्हनों की बिंदौली गले नहीं उतरी.गांव के दबंगों ने तो इसका कोई विरोध नहीं किया, उल्टे मेघवाल समाज के पंच ही संकीर्ण सोच वाले हो गए.

मेघवाल खाप पंचायत ने बेतुका तर्क गढ़ जुर्मान लगाया
दुल्हनों की बिंदौली के विरोध में करीब दो माह बाद पंचों ने सिवाना में पंचायत बुलाई, जिसमें बहनों के भाई और परिवार को समाज से बहिष्कृत करने का तुगलकी फरमान सुना दिया. पंचों ने 50 हजार रुपए का आर्थिक दंड भी लगाया. इसके लिए इस खाप पंचायत ने यह बेतुका तर्क गढ़ा कि समाज में नई परंपराए डालने से इसकी होड़ मचेगी. इससे गरीब अपने आप को उपेक्षित महसूस करेगा. इसलिए इस तरह की परंपरा नई समाज में नहीं डालनी चाहिए.

बारां-पाली-झुंझुनूं में निकलीं हैं दुल्हनों की बिंदौली
हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि राजस्थान में दुल्हन की बिंदौली निकाली गई हो. राजस्थान ब्याह-शादियां में बदलाव के दौर से गुजर रहा है. बदलते जमाने में दुल्हनें भी दूल्हे वाली रस्में करने से नहीं हिचकिचा रही हैं. बराबरी का दर्जा देने के लिए दुल्हनों की भी दूल्हे के समान घोड़ी पर बिठाकर बिंदौली निकाली जाने लगी है. पिछले साल ही दिसंबर में बारां जिले में यह नजारा देखने को मिला. छबड़ा निवासी शिक्षक गोविंद जांगिड़ की बेटी कामेक्षा जांगिड़ की घोड़ी पर बिंदौरी निकाली गई. इससे पहले पाली जिले के गुढ़ा दुर्जन गांव में भी दुल्हन की बिंदौली निकाली गई थी. हालांकि यह आशंकाओं के चलते पुलिस पहरे में निकली थी. करीब दो साल पहले झुंझुनूं जिले के चिरानी गांव में एक साथ छह बहनों की शादी में उनकी बिंदौली निकाली गई थी. जो पूरे राजस्थान में चर्चित रही.

खाप पंचायतें चला रही अत्याचार के चाबुक…

भीलवाड़ा में दो साल पहले खाप पंचायत के तुगलकी फरमान से एक बुजुर्ग विधवा महिला अपनी जमीन और घर से बेदखल की गयी. उस पर 40 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. 80 साल की बुजुर्ग विधवा को खाप पंचायत के फरमान के खिलाफ भीलवाड़ा के एसपी विकास शर्मा के समक्ष न्‍याय की गुहार लगानी पड़ी थी.
बूंदी जिले में दबंगों द्वारा सरकारी भूमि पर किये जा रहे अतिक्रमण की शिकायत पुलिस से करना भारी पड़ गया. दबंगों ने 12 गांवों की खाप पंचायत बुलाकर शिकायत करने वाले पांच परिवारों को समाज से बहिष्कृत कर उनका हुक्का-पानी बंद करवा दिया. पंचायत के फैसले के खिलाफ जाने पर 51 हजार रुपये का जुर्माना भरने का भी फैसला हुआ.
सवाईमाधोपुर में दो साल पहले खाप पंचायत ने एक डॉक्टर के माता-पिता पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया. राजस्थान में संभवत: खाप पंचायत के फैसले में यह सबसे बड़ी जुर्माना राशि थी. जुर्माना नहीं भरने पर पंच पटेलों ने सार्वजनिक मंदिर में प्रवेश पर रोक लगा दी और उस परिवार की मदद करने वाले पर भी 51 हजार रुपए के जुर्माने का फरमान सुनाया.
भीलवाड़ा जिले के धामनिया गांव में एक खाप पंचायत ने दलित परिवार को तुगलकी फरमान सुनाया है और पंचायत के फरमान की अवहेलना करने पर 11 हजार रुपये का जुर्माना करने का नियम लागू किया है. इस पर ग्रामीणों ने दलित परिवार को गांव से बहिष्कृत कर उसका हुक्का पानी और राशन तक बंद कर दिया.

 

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