सोचे विचारें

घातक है ज्यादा दर्दनिवारक दवाओं का उपयोग

डा. विपिन चंद्रा
डाइक्लोफिनेक सोडियम एक नॉनस्टेरॉयडल दर्दनिवारक ड्रग्स है जो किडनी पर अपना घातक दुष्प्रभाव डालती है ।आज आमतौर पर हर जगह हरे पत्ते वाली गोली के नाम से यह प्रचलित है । मेडिकल स्टोर के साथ-साथ जनरल स्टोर पर भी यह दवाई धड़ल्ले से बिक रही है। सिर दर्द हो ,कमर दर्द हो, बदन दर्द हो ,दांत दर्द हो ,पेट दर्द हो यहां तक कि महिलाओं में माहवारी के टाइम जो दर्द होता है उसमें भी यह दवाई अधिक मात्रा में प्रयोग हो रही है जबकि पेट दर्द और महावारी के टाइम पर जो दर्द होता है (डिसमैनरिया) इसमें तो बिल्कुल यूज नहीं करना चाहिए। इस स्थिति में पहले तो आयुर्वेदिक चिकित्सा ही करनी चाहिए नहीं तो यदि उस समय आयुर्वेदिक इलाज उपलब्ध ना हो तो मेफटाल स्पास जो कि एंटीस्पेज्मोडिक है उसे यूज करना चाहिए। लेकिन फिर भी यह डाइक्लोफिनेक सोडियम बिल्कुल यूज नहीं करनी चाहिए। सन 2006 में गवर्नमेंट ने डाइक्लोफिनेक सोडियम को वेटरनरी यूज के लिए बंद कर दिया था क्योंकि एक रिसर्च में सामने आया कि भारत में गिद्ध की प्रजाति विलुप्त हो रही थी तो उसका पोस्टमार्टम किया गया तो उसमें पाया गया कि उनके किडनी डाइक्लोफिनेक सोडियम की वजह से डैमेज हो गए थे क्योंकि गिद्ध ने जिन जानवरों को खाया होगा उनमें डाइक्लोफिनेक सोडियम यूज़ किया गया था। इस प्रकार डाइक्लोफिनेक सोडियम का नेफ्रोटॉक्सिक असर देखने को मिलता है। आज के टाइम में क्रॉनिक डिजीज लाइक_ गठिया, ओस्टियोआर्थराइटिस आदि बीमारियों में तो सालों तक लोग इसका लगातार यूज कर रहे है! जिसका कि निश्चित तौर पर गुर्दों पर बुरा असर पड़ता है और इस वजह से अगर गुर्दा एक बार खराब हो गया तो मरीज डायलिसिस पर चला जाता है और फिर तो आदमी का शारीरिक नुकसान तो होता ही है बल्कि आर्थिक नुकसान भी हो जाता है! कई बार तो पेशेंट रिवर्स हो जाता है लेकिन अधिकांश तो यह देखा गया है कि डायलिसिस पर गया मरीज भले कुछ महीनों सालों तक तो डायलिसिस के सपोर्ट पर ठीक रहता है लेकिन कई बार मरीज की कुछ समय बाद मौत भी हो जाती है! इस प्रकार डाइक्लोफिनेक सोडियम एक खतरनाक नेफ्रोटॉक्सिक मेडिसिन है ,इसलिए इसका यूज बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

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