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आपराधिक (criminal ) और दीवानी मानहानि में क्या है अंतर?

नई दिल्ली. ‘मोदी सरनेम’ मामले में सूरत कोर्ट के फैसले का आज सबको इंतजार था. कांग्रेस के साथ-साथ पूरे देश की नजर इस मामले पर थी. कोर्ट ने इस मामले में राहुल गांधी को दोषी करार दिया और 2 साल की सजा सुनाई. लेकिन इसके ठीक बाद कोर्ट ने कांग्रेस सांसद को 15 हजार के मुचलके पर जमानत दे दी. मामले में पिछले चार साल से राहुल गांधी पर मानहानि का केस चल रहा था. बता दें कि उन पर आपराधिक मानहानि का मामला चल रहा था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मानहानि(criminal )  के मामले कितने तरह के होते हैं. क्या होता है जब इन मामलों में केस दर्ज होता है.

आइए सबसे पहले यह जानते हैं कि राहुल को जिस मामले में दोषी करार दिया गया था वह आखिर था क्या. वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एक कथित टिप्पणी की थी. उन्होंने अपनी रैली के एक भाषण में कथित तौर पर कहा था, ‘क्यों सभी चोरों का समान उपनाम मोदी ही होता है?’ इसी टिप्पणी के बाद भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ मानहानी का मामला दर्ज कराया था. उन्होंने राहुल पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपनी टिप्पणी से समूचे मोदी समुदाय का मान घटाया है.

पढ़ें- आखिर क्या था ‘मोदी सरनेम’ वाला 4 साल पुराना वह मामला, जिसमें राहुल गांधी को हुई 2 साल की सजा

क्या होता है मानहानि
किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी माध्यम से किसी के मान सम्मान और उसकी ख्याति को ठेस पहुंचाना या हानि पहुंचाने को मानहानि कहा जाता है. हालांकि किसी व्यक्ति के बारे में अगर सच्ची टिप्पणी की गई हो तो उसे मानहानि नहीं माना जाता है. साथ ही यदि टिप्पणी सार्वजनिक हित में की गई हो तो वह मानहानि की श्रेणी में नहीं आती है. भारत में मानहानि को लेकर कानून बनाए गए हैं. लाइव लॉ के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 499 से 502 तक मानहानि के कानून के विषय में प्रावधान किया गया है.

आपराधिक और दीवानी मानहानि में अंतर
मानहानि दो तरह की होती है. एक सिविल (दीवानी) और आपराधिक (क्रिमिनल) सिविल मानहानि के मामले में दोषी व्यक्ति को आर्थिक दंड (मुआवजा) देना पड़ता है, जबकि आपराधिक मानहानि के लिए कारावास की सजा का भी प्रावधान है. राहुल गांधी आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी पाए गए हैं. हालांकि आपराधिक मामले में सांसद के सदस्यता जाने का खतरा होता है.
दोषी व्यक्ति की सजा अगर ऊपरी अदालत सस्पेंड ना करे तो दोषी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता. कई बार अदालत सजा सस्पेंड कर देती है, लेकिन कन्विक्शन नहीं. ऐसे मामले में चुनाव नहीं लड़ सकते. हालांकि जो कोर्ट फैसला सुनाती है वह दोषी को तीन साल से कम की सजा किसी भी मामले में जमानत दे देती है. भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत मानहानि के लिए दो वर्ष तक का सादा कारावास और जुर्माना का भी प्रावधान किया गया है. यदि कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करता है तो उसे दो साल का कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकता है.

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