अंतराष्ट्रीय

ये हैं दुनिया के सबसे खुशहाल इंसान( happiest)

तिब्बत:अक्सर कहा जाता है कि पैसों से खुशियां खरीदी नहीं जा सकती है लेकिन एक नए रिसर्च से पता चला है कि ये सोच सही नहीं है. हाल ही में नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्‍त्री डेनियल काह्नमैन ने 33 हजार से ज्यादा अमेरिकी वयस्कों पर शोध के बाद अपने उसी बात से पलट गए हैं जिनमे उन्होंने कहा था कि पैसों से खुशियां खरीदी जा सकती है. लेकिन यहां हम एक ऐसे शख्स की बात करने जा रहे है, जिनके दिमाग पर 12 साल रिसर्च करके वैज्ञानकों ने उन्हें दुनिया के सबसे खुश इंसान बताया है. हम बात कर रहे हैं बौद्ध भिक्षु मैथ्यू रिचर्ड की. फ़्रांस में 1946 में जन्मे मैथ्यू रिचर्ड ख़ुशी की तलाश में तिब्बत आ गए थे, जहां वे दलाई लामा के French ट्रांसलेटर का काम करते थे. उन्होंने ट्रांसलेटर के साथ-साथ वहां मेडिटेशन करना भी शुरू कर दिया था जिसकी वजह से उन्हें अपार खुशियों ( happiest) का अहसास होने लगा और वह हरदम खुश रहने लगे. विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने उनके दिमाग पर 256 सेंसर लगाकर वजन जानने की कोशिश की. फिर बाद वैज्ञानिकों ने उन्हें हैं दुनिया के सबसे खुशहाल इंसान घोषित किया. जांच में ये मालूम चला कि जब वे ध्यान करते हैं तो उनके दिमाग से गमा किरणें निकलती हैं जो उनके ध्यान और याददाश्त बढ़ाने में मदद करती हैं. रिचर्ड ने अपने किताब में भी ‘ध्यान’ को ख़ुशी की वजह बताया है.

मैथ्यू रिचर्ड का जन्म फ्रांस के सुदूर गांव में हुआ था.इनके माता-पिता फिलॉसफी पढ़ाते थे. मैथ्यू बाकी फ्रेंच बच्चों की तरह ही सामान्य स्कूल-कॉलेज गए और मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स में पीएचडी की. ये उनकी सबसे बड़ी डिग्री थी. इस डिग्री के बदौलत उस दौर में वे कोई भी नौकरी हासिल कर सकते थे. लेकिन फिर भी नाखुश रहने लगे थे.
कुछ वर्षों बाद वे फ़्रांस छोड़ तिब्बत पहुंच गए जहां वे दलाई लामा के फ्रेंच ट्रांसलेटर के रूप में काम करने लगे. इसके साथ-साथ वे मेडिटेशन भी किया करते थे और बौद्ध धर्म से जुड़े बाकी चीजे सीखते थे. समय चलता गया और धीरे-धीरे मैथ्यू की तलाश खत्म होते गयी और वे खुश रहने लगे. यहां तक कि उनके करीब आने वाला हर शख्स भी खुश रहने लगा.
मैथ्यू खुद मानने लगे कि उन्हें हरदम खुश रहने की तरीका आ चुका है और कोई भी बदलाव उन्हें उदास नहीं करता. उन्होंने बताया कि मेडिटेशन से उन्हें यादाश्त बढ़ने साथ-साथ खुश रहने में भी मदद मिलती है. मालूम हो कि मैथ्यू न केवल बौद्ध भिक्षु है उसके साथ साथ वे एक स्किल्ड फोटोग्राफर, लेखक और वैज्ञानिक भी हैं
उनकी हमेशा खुश रहने की आदत ने वैज्ञानिक गलियारें को उसके कारण पर सोचने मजबूर कर दिया. तब, विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इसकी जांच की ठानी. वहां के न्यूरोलॉजिस्ट्स ने उनके स्कल (Outer brain) पर 256 सेंसर लगा दिए, जिससे भीतर हो रही हरेक हलचल का पता लग सके. ये रिसर्च 12 सालों तक चली. इसमें दिखा कि जब भी मॉन्क ध्यान करते, उनका मस्तिष्क गामा विकिरणें पैदा करता था. ये ध्यान और याददाश्त को बढ़ाने में मदद करती हैं.
रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया कि उनके ब्रेन का बायां हिस्सा काफी सक्रिय था, जिसे प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स कहते हैं, दाहिने भाग से काफी ज्यादा एक्टिव था. ये हिस्सा क्रिएटिविटी से तो जुड़ा ही है, साथ ही खुशी से भी जुड़ा है. साइंटिस्ट्स के दल ने ऐसा कभी नहीं दिखा था. आखिरकार वैज्ञानिकों ने मान लिया कि मैथ्यू के भीतर नेगेटिविटी के लिए कोई जगह नहीं है
मैथ्यू रिचर्ड ने इंसान को आसानी से खुश रहने का तरीका भी बताया है. उन्होंने अपने किताब हैप्पीनेस: ए गाइड टू डेवलपिंग लाइफ्स मोस्ट इंपॉर्टेंट स्किल में बताया है कि कैसे आम लोग भी दिन के सिर्फ 15 मिनट निकालकर खुश रह सकते हैं. लेकिन इसके लिए ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है. रोज सुबह सबसे पहले कोई खुशी की बात सोचें. रोजाना केवल 10 से 15 मिनट सिर्फ अच्छी बातें सोचना शुरू करें और फिर बदलाव महसूस करें.

 

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