अंतराष्ट्रीय

इमरान खान से उठ चुका है पाकिस्तानी सेना( Imran Khan)  का भरोसा

नई दिल्ली. पाकिस्तानी सेना के शीर्ष नेतृत्व को लगता है कि पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान संस्था के लिए एक ‘अस्तित्व के लिए खतरा’ हैं.एक शीर्ष सैन्य सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर यह बात कही. सूत्र के मुताबिक, ‘अगर इमरान खान सत्ता में वापस आते हैं, तो वह सिस्टम में कई चीजें बदल देंगे, जो संस्थान (सेना) ( Imran Khan)  के लिए सही नहीं होगा.’

सूत्र ने साथ ही कहा, ‘सेना के शीर्ष नेतृत्व को लगता है कि इमरान खान पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से बदला लेंगे और इस वजह से सेना खान को एक संभावित खतरा मानती है.’

इमरान खान के करीबी सहयोगियों का हवाला देते हुए सूत्र ने कहा, ‘खान संसद की मदद से पाकिस्तानी सेना में बड़े संरचनात्मक बदलाव की योजना बना रहे हैं. सत्ता में वापस आने पर वह पाकिस्तानी सेना के ढांचे को बदल देंगे. ग्रेड 21 और 22 वाले संघीय सरकारी अधिकारियों की तरह ही मेजर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरलों की नियुक्ति और पदोन्नती का अधिकार भी प्रधानमंत्री अपने हाथ में ले लेंगे.’

दोस्ती और वादों पर यू-टर्न
इस शीर्ष सूत्र ने खुलासा किया कि इमरान खान और कमर जावेद बाजवा कभी बेहतरीन दोस्त हुआ करते थे, लेकिन पाकिस्तान के इंटर-स्टेट इंटेलिजेंस (आईएसआई) के महानिदेशक के रूप में जनरल फैज को हटाने के मुद्दों पर दोनों के बीच मतभेद हो गया.

सूत्र ने कहा कि इमरान खान जनरल फैज को सेना प्रमुख बनाना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तानी सेना के फॉर्मेशन कमांडरों ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा, ‘खान ने अपने वादों और प्रतिबद्धताओं पर बहुत सारे यू-टर्न लिए. उन्होंने सेना से किए अपने वादों को भी कभी पूरा नहीं किया और हमेशा टालमटोल करते रहे. इसलिए सैन्य नेतृत्व अब उनपर भरोसा करने को तैयार नहीं है.’

दूसरे देशों के साथ रिश्तें और डिफ़ॉल्ट का जोखिम
सूत्र ने दावा किया, ‘प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए इमरान खान ने अपने शीर्ष सुरक्षा भागीदारों चीन और अमेरिका के अलावा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे गारंटरों के साथ पाकिस्तान रिश्ते खराब कर दिए.’

सूत्र ने खुलासा किया कि बाजवा ने इमरान खान को रूस नहीं जाने की सलाह दी थी, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान खान अपने तय प्लान पर आगे बढ़े और अमेरिका के खिलाफ बात की. पाकिस्तान की राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया.

सूत्र ने कहा कि पिछले साल रूस यात्रा के बाद दुनिया में बढ़ती महंगाई के बावजूद इमरान खान ने अधिकतम सब्सिडी देते हुए पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत कम कर दी. सूत्र ने कहा कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) सौदे को भी रोक दिया, जिसने पाकिस्तान को ‘डिफ़ॉल्ट जोखिम’ में डाल दिया.
भारत के साथ रिश्तें और चुनाव का सवाल
संघीय और प्रांतीय चुनावों को लेकर सवाल पर सूत्र ने कहा कि पाकिस्तान अभी चुनाव कराने की स्थिति में नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अगर इस साल चुनाव होते हैं, तो यहां फिर से त्रिशंकु संसद होगी, जो उन्हीं मसलों को जन्म देगी. पाकिस्तान को पहले राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता चाहिए.’

सूत्र ने कहा, ‘इस्लामाबाद को बलूच अलगाववादियों, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), इस्लामिक स्टेट- खुरासान प्रोविंस और पश्चिमी सीमा पर कई पक्षों से सुरक्षा खतरे हैं और इन खतरों का मुकाबला करने के लिए सेना के पास पर्याप्त ताकत नहीं है.

वहीं दूसरा कारण यह था कि बाजवा भारत के साथ दोस्ती चाहते थे, लेकिन इमरान खान ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाने का हवाला देते हुए मना कर दिया था.

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