सतर्कता बनी रहे
भारत और चीन सीमा पर बीते कई महीने से जारी तनाव को कम करने पर सहमत हो गये हैं. दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मास्को में 10 सितंबर को हुई बैठक में बनी सहमति के आधार पर वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की लंबी बातचीत के बाद तय किया गया है कि दोनों देश अब और टुकडिय़ों की तैनाती नहीं करेंगे. निश्चित रूप से यह एक सराहनीय निर्णय है, किंतु इसकी सफलता चीन के भावी रवैये पर निर्भर है. तनातनी के बीच हुए पहले के फैसलों के प्रति चीन ने प्रतिबद्धता नहीं दिखायी है, इसलिए यह अंदेशा स्वाभाविक है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा से सटे लद्दाख समेत अनेक इलाकों में आगे भी आक्रामक रुख अपना सकता है. ताजा सहमति में यथास्थिति में एकतरफा बदलाव की कोशिश नहीं करने, बातचीत व संपर्क बहाल रखने और शीर्ष सैन्य अधिकारियों की फिर मुलाकात का भी फैसला लिया गया है. भारत ने हमेशा ही कहा है कि दोनों देशों के बीच जो निर्धारित प्रक्रिया और प्रणाली है, उसी के तहत विवादों के निपटारे का प्रयास किया जाना चाहिए तथा ऐसी कोई भी हरकत नहीं होनी चाहिए, जिससे तनाव बढ़े. लेकिन चीन ने अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीति के अनुसार मई से ही अनेक क्षेत्रों में अतिक्रमण करने तथा भारतीय टुकडिय़ों को निगरानी से रोकने की कई कोशिशें की है.
गलवान की हिंसक झड़प इसी प्रवृत्ति का परिणाम थी. पिछले दिनों चीनी सैनिकों ने हवा में गोलियां भी चलायी थीं. नियंत्रित रेखा पर गोलीबारी की यह वारदात 45 सालों के बाद हुई थी. भारतीय क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण कई सालों से जारी है. साल 2015 में ऐसी 428 घटनाएं हुई थीं, जो 2019 में बढ़कर 663 हो गयी थीं. इस अवधि में एक तरफ सीमा पर चीन की आक्रामकता बढ़ती रही है, तो दूसरी तरफ भारत से आर्थिक लाभ हासिल करने के लिए चीनी नेतृत्व सहयोग का नाटक करता रहा है. इस वर्ष उसने वास्तविक नियंत्रण रेखा और यथास्थिति को बदलने का प्रयास किया है, जिसकी वजह से भारत को भी सैनिकों की संख्या बढ़ानी पड़ी है. हाल के दिनों में द्विपक्षीय बातचीत के दौरान भी चीन ने पैंगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर टुकडिय़ों का जुटान किया है. उल्लेखनीय है कि 2017 में हुए दोकलाम प्रकरण से अब तक चीन ने सीमावर्ती क्षेत्रों में हवाई ठिकाने, सुरक्षा और अड्डों की क्षमता को दोगुना बढ़ाया है. भू-राजनीति का अध्ययन करनेवाली प्रख्यात संस्था स्ट्रैटफोर की रिपोर्ट के हवाले से खबरों में रेखांकित किया गया है कि लद्दाख प्रकरण से पहले से ऐसी तैयारियों से साफ इंगित होता है कि चीन योजनाबद्ध तरीके से नियंत्रण रेखा पर अपनी बढ़त की जुगत में है. राजनीतिक, कूटनीतिक और सैनिक स्तर पर पहलकदमी के साथ भारतीय सेना भी चौकस है, लेकिन यह मुस्तैदी बरकरार रहनी चाहिए क्योंकि चीन के आक्रामक इरादों को देखते हुए उसके वादों पर पूरी तरह से ऐतबार करना ठीक नहीं है. चीन योजनाबद्ध तरीके से नियंत्रण रेखा पर अपनी बढ़त की जुगत में है, इसलिए भारतीय सेना की ओर से मुस्तैदी बरकरार रहनी चाहिए.