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ट्रेन में (train)क्यों होते हैं नीले, लाल और हरे रंग के डिब्बे?

नई दिल्‍ली. भारतीय रेल नेटवर्क दुनिया का चौथा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. हर रोज लाखों लोग ट्रेन (train) से सफर करते हैं. अमीर हो या गरीब, लंबी यात्रा के लिए तो हर कोई ट्रेन को ही चुनता है. ट्रेन में यात्रा सुविधाजनक तो है ही साथ ही बस और हवाई जहाज के मुकाबले सस्‍ती भी है. आपने भी रेल में सफर जरूर करते होंगे. रेल यात्रा के दौरान ट्रेनों के डिब्‍बों के रंग ने आपका ध्‍यान जरूर अपनी और खींचा होगा. आपके मन में सवाल उठा होगा कि कोचों का रंग अलग-अलग करने के पीछे कोई खास वजह है या फिर रेलवे ने ट्रेनों को खूबसूरत बनाने के लिए डिब्‍बों अलग लुक दिया है.

दरअसल, ट्रेन के डिब्‍बों के रंग और डिजाइन के भी अलग मायने होते हैं. इनकी विशेषता को ध्यान में रखकर ही कोच के रंग और डिजाइन तय होते हैं. रेलवे अलग-अलग रंगों के डिब्‍बे भिन्‍न-भिन्‍न श्रेणियों की ट्रेनों में इस्‍तेमाल करता है. साथ ही डिब्‍बों का रंग ट्रेन की स्‍पीड के बारे में भी हमें बताता है. अलग रंग से रेलगाड़ी की पहचान में थोड़ी आसान हो जाती है. जैसे लाल रंग के कोच अधिकतर शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों में लगे दिखाई देंगे. रंग डिब्‍बों के बनने की जगह और उनकी क्‍वालिटी के बारे में भी बताते हैं.

लाल रंग
शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों में ज्‍यादातर लाल रंग के डिब्‍बे लगाए जाते हैं. ये अल्युमिनियम से बने होने की वजह से दूसरे डिब्बों की तुलना में काफी हल्के होते हैं. इसी वजह से इन्‍हें हाई स्‍पीड ट्रेनों में लगाया जाता है. जर्मनी से वर्ष 2000 में लाए गए ये कोच 160 से लेकर 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं. डिस्क ब्रेक की वजह से इमरजेंसी में इन्‍हें जल्‍द रोका जा सकता है.

नीला रंग
भारतीय रेलवे में सबसे ज्यादा डिब्बे नीले रंग के होते हैं. इन डिब्बों को इंटीग्रल कोच कहते हैं. ये डिब्बे एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनों में लगाए जाते हैं. ये लोहे के बने होते हैं. ज्यादा वजन होने की वजह से इन डिब्बों को केवल 70 से 140 किमी प्रति घंटे की स्पीड से ही चलाया जा सकता है. इन्‍हें रोकने के लिए एयरब्रेक का इस्तेमाल किया जाता है

हरे और भूरे रंग के कोच
हरे रंग के कोचों का इस्तेमाल गरीबरथ ट्रेनों में ज्‍यादा किया जाता है. विविधता लाने के लिए रेलवे (Indian Railways) ने यह रंग ईजाद किया. इस हरे रंग पर कई तरह की चित्रकारी भी की जाती है, जिससे वह कोच देखने में और भी मनमोहक हो जाता है. वहीं भूरे रंग के कोचों का इस्तेमाल छोटी लाइनों पर चलने वाली मीटर गेज ट्रेनों में होता है.

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