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भारतीय रेल की इस तकनीक के जरिए बचाई गई 400 हाथियों की जान !

पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) ने हाथियों को तेज गति से आने वाली रेलगाड़ियों की टक्कर से बचाने के लिए अपने दो मंडलों में ध्वनि आधारित प्रौद्योगिकी लगाई है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी. एनएफआर के महाप्रबंधक अंशुल गुप्ता ने बताया कि दुनिया में पहली बार इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल रेलवे ने हाथियों की ट्रेन से टक्कर रोकने के लिए किया है. अधिकारी ने बताया कि लामडिंग डिवीजन में पहली बार उपकरण लगाने के छह महीने के भीतर करीब 400 हाथियों की जान बचाई गई है.

गुप्ता ने बताया, ‘‘हमने निजी कंपनी के साथ मिलकर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर तैयार किया है और लामडिंग में 60 किलोमीटर लंबे हाथी गलियारे में पहली बार इंट्रूजन डिटेक्शन प्रणाली (आईडीएस) स्थापित की है. प्रौद्योगिकी की जानकारी देते हुए वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आईडीएस पटरियों के साथ बिछाए गए ऑप्टिकल फाइबर का इस्तेमाल पटरियों के नजदीक आने वाले हाथियों के भारी-भरकम पैरों की आवाज सुनने के लिए किया जाता है. एक बार केबल के जरिये ध्वनि का पता चलने के बाद संकेत नियंत्रण कक्ष को भेजा जाता है.’’

उन्होंने बताया, ‘‘सॉफ्टवेयर इसके बाद हाथियों के पैरों की आवाज को अन्य आवाज से कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जरिये अलग करता है. इसके बाद उनका विश्लेषण करने के बाद स्टेशन मास्टर को अलर्ट भेज उस स्थान की जानकारी देता है, जहां पर जानवर मौजूद हैं.’’

गुप्ता ने साक्षात्कार में बताया कि पश्चिम बंगाल का अलीपुरद्वार एनएफआर के तहत दूसरा स्थान है जहां पर 60 किलोमीटर के गलियारे में कुछ दिन पहले आईडीएस लगाया गया है. उन्होंने बताया, ‘‘गत छह महीने के दौरान प्रणाली ने 400 से 500 हाथियों के पटरी पर होने का पता लगाया और अंतत: उनकी जान बचाई जा सकी. अब हमारा लक्ष्य एनएफआर के तहत पूरे 400 किलोमीटर लंबे हाथी गलियारे में इस प्रणाली को स्थापित करने की है.’’

गुप्ता ने दावा किया कि इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल दुनिया में कहीं भी रेलवे द्वारा वन्य जीवों को बचाने के लिए नहीं किया जाता और एनएफआर पहला डिवीजन है, जहां प्रायोगिक तौर पर हाथियों को बचाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.

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