क्यों गंभीर होता जा रहा है प्रवसन ( migration)का संकट?

प्रवासी दिवस:साल 2022 जाते जाते बहुत सारी समस्याएं और संकट छोड़ कर जा रहा है. दुनिया के सामने कोविड-19 के उबरने की चुनौती खत्म नहीं हुई है. वहीं इस साल रूस यूक्रेन युद्ध, जलवायु परिवर्तनके प्रचंड प्रभाव भी देखे हैं. इनके साथ ही बहुत से अन्य संकट भी हैं जो खत्म होने या सुलझने का इंतजार कर रहे हैं. 18 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस को प्रवासी संकट पर मंथन करने का दिन है जो इनमें से अधिकांश संकटों का नतीजा भी है. यह एक मौका है कि हम दुनिया में प्रवसन ( migration) की वास्तविकता को समझें और उसे एक बोझ की तरह संकुचित नजरिए से देखना बंद करें.
संघर्ष, असुरक्षा, विवाद हैं वजह
हाल के सालों में युद्ध, असुरक्षा, जलवायु परिवर्तन के भीषण प्रभाव, और अन्य संकटों ने इस समस्या को सीमाओं के भीतर और बाहर बढ़ाने का ही काम किया है. संघर्ष, असुरक्षा, विवादों ने लोगों को अपने आवासों को छोड़ने पर मजबूर किया है, लेकिन जब वे किसी भी वजह और मजबूरी से किसी दूसरी जगह पर पहुंचते हैं तो दूसरे लोग उन्हें बोझ की तरह देखते हैं.
कौन होते हैं प्रवासी
साल 2021 के अंत तक 5.9 करोड़ लोग विस्थापित हो चुके थे. लेकिन यहां यह जानना और समझना जरूरी है कि प्रवासी कौन होते हैं. प्रवासी शब्द की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है. यह उन लोगों को दर्शाता है जो अपने परंपरागत निवास को छोड़ कर या तो अपने ही देश में या फिर किसी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार चले जाते हैं.
कई होते हैं इसके कारण
प्रवसन जिसे कई बार विस्थापन भी कहते हैं, स्थायी भी हो सकता है, अस्थायी भी हो सकता है और इसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं. युद्ध और जलवायु परिवर्तन ऐसे कारण हैं जो आजकल प्रवसन की प्रमुख वजह बने हुए हैं, लेकिन इनके अलावा भी अन्य बहुत से कारणों से लोग अपने आवासों को छोड़ देते हैं. प्रवासियों में कई तरह के लोग, जैसे कि प्रवासी मजदूर, मानव तस्करी के तहत विस्थापित लोग, गैरकानूनी ढंग से प्रवसन के जरिए गए लोग, आदि भी शामिल होते हैं.
हर तीस में से एक
अंतरराष्ट्रीय प्रवसन संगठन के मुताबिक हर 30 में से एक व्यक्ति प्रवासी होता है. प्रवसन पर होने वाले अधिकांश चर्चाओं में शुरुआत संख्या से होती है. कितने लोग कहां जा रहे हैं, किस तरह का चलन है, कैसे बदलाव हो रहे हैं, ये सब जानकारी दुनिया के जनसांख्यकीय परिवर्तनों के बारे में बताती है जिससे भविष्य में नियोजन आसान हो जाता है.
बढ़ते ही जा रहे हैं प्रवासी
वैश्विक अनुमानों के अनुसार दुनिया भर में 2020 में 281 अंतरराष्ट्रीय प्रवासी थे जो दुनिया की जनसंख्या का 3.6 फीसद हिस्सा था. पिछले पांच दशकों में अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों की संख्या बढती ही रही है. लेकिन ज्यादातर यही देखा गया है कि विस्थापित या प्रवासी लोगों को समाज में अलग थलग कर दिया जाता है. या फिर उनका शोषण होता है. लेकिन उन्हें स्थानीय स्तर पर सामाजिक रूप से समावेशित नहीं किया जाता है.
प्रवासी कामगार या मजदूर
ज्यादातर प्रवसन का कारण बेहतर रोजगार या काम की तलाश होती है. फिर भी प्रवासी मजदूरों के साथ बर्ताव सही नहीं होता है. उनकी नौकरी या उनका काम अस्थायी होता है, उन्हें ज्यादा असुरक्षा झेलनी होती है और उनके काम करने के हालात भी अक्सर अच्छे नहीं होते हैं. दुनिया में हर जगह आर्थिक संकट गहरा रहा है ऐसे में जहां लोग पहले से ही आर्थिक समस्याओं और चुनौतियों से जूझ रहे हों, वहां प्रवसन होना स्थानीय लोगों में असुरक्षा का भाव बढ़ा देता है जिसका खामियाजा प्रवासियों को भुगतना पड़ता है.
कराण चाहे जो भी हो इस समय दुनिया में यही हो रहा है. म्यांमार से रोहिंग्या मुस्लिमों का भारी संख्या में बांग्लादेश जाना खुद बांग्लादेशियों के लिए एक चुनौती या समस्या का रूप बन रहा है. दक्षिण यूरोपीय देश खुद अफ्रीका से आने वाले लोगों से परेशान हैं और उन्हें शरण नहीं दे पा रहे हैं, खुद भारत में भी महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश बिहार के लोगों का जाना एक राजनैतिक मुद्दा बना हुआ है. अंतरराष्ट्रीय प्रवसन दिवस ऐसे कई तरह के प्रवसन में लोगों को स्थितियों को सही परिपेक्ष्य में देखने का नजरिया विकसित करने के उद्देश्य से मनाया जाता है.