अंतराष्ट्रीय

एस जयशंकर ने चीन और पाकिस्तान पर क्या कहा? भारत और पाकिस्तान के बीच UNSC की मीटिंग में क्या तकरार हुई?

14 दिसंबर को. यूएन सिक्योरिटी काउंसिल की स्पेशल मीटिंग में. ये सलाह भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने दी थी. दरअसल, पाकिस्तान ने मीटिंग में कश्मीर का मुद्दा उठाकर भारत पर निशाना साधने की कोशिश की थी. जयशंकर ने इसपर जवाब देते हुए पाकिस्तान के साथ-साथ चीन को भी लपेटे में लिया. संयोग देखिए कि ये मीटिंग उस समय हुई है, जब चीन भारत की सीमा पर बखेड़ा खड़ा करने की कोशिश कर रहा है. और, उसकी पिछलग्गू पाकिस्तान सरकार हाफिज़ सईद के घर पर हुए बम ब्लास्ट में भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (R&AW) को ज़िम्मेदार बता रही है.

सिक्योरिटी काउंसिल, यूनाइटेड नेशंस का सबसे ताक़तवर अंग है. इसमें कुल 15 मेंबर्स होते हैं. अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, रूस और चीन इसके स्थायी सदस्य हैं. इनके पास काउंसिल के समक्ष रखे गए किसी भी प्रस्ताव पर वीटो का अधिकार है. बाकी के 10 सदस्य अस्थायी होते हैं. इनका कार्यकाल दो बरस का होता है. यूएन जनरल असेंबली (UNGA) वोटिंग के जरिए नए अस्थायी सदस्यों का चुनाव करती है. हर साल जनवरी में 05 मेंबर्स रिटायर हो जाते हैं. उनकी जगह नए मेंबर्स लेते हैं.

जैसे मेंबर्स बदलते हैं, उसी तरह सिक्योरिटी काउंसिल की अध्यक्षता भी बदलती है. ये बदलाव हर महीने होता है. सदस्य देशों के नाम के पहले अक्षर के आधार पर. अध्यक्ष की कुर्सी स्थायी और अस्थायी, दोनों तरह के मेंबर्स को मिलती हैं.

भारत को जनवरी 2020 में UNSC में नॉन-परमानेंट मेंबरशिप मिली थी. उसका इस बार का कार्यकाल 31 दिसंबर 2022 को खत्म हो रहा है. और, जाते-जाते इसी महीने भारत को UNSC प्रेसिडेंट की कुर्सी भी हासिल हुई है.

अध्यक्ष होने के नाते भारत को मीटिंग्स बुलाने और मीटिंग का एजेंडा तय करने समेत कई विशेष अधिकार मिले हैं. इसी के तहत, भारत ने 14 दिसंबर को एकओपेन डिबेट बुलाई गई थी. विषय था, मेंटनेंस ऑफ़ इंटरनैशनल पीस एंड सिक्योरिटी: न्यू ओरिएंटेशन फ़ॉर रिफ़ॉर्म्ड मल्टी-लेटरलिज़्म. यानी, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का अनुरक्षण: बहुपक्षवाद को लेकर नया नज़रिया.

आमतौर पर सिक्योरिटी काउंसिल की डिबेट में सिर्फ़ वही देश हिस्सा लेते हैं, जो या तो सिक्योरिटी काउंसिल के मेंबर स्टेट्स हैं या जिन्हें बुलावा भेजा गया है. ओपेन डिबेट में यूएन का कोई भी मेंबर हिस्सा ले सकता है. बशर्ते उसकी उपस्थिति पर किसी तरह की आपत्ति ना हो.

फिलहाल, पाकिस्तान UNSC का सदस्य नहीं है. इसके बावजूद वो इस ओपेन डिबेट में आया था. उसकी तरफ़ से पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने हिस्सा लिया. इस दौरान बिलावल ने कश्मीर का मुद्दा उठाया. जबकि कश्मीर का टॉपिक डिबेट के एजेंडे में शामिल नहीं था. ये डिबेट अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार और सिक्योरिटी काउंसिल में बदलाव के मुद्दे पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी. इसमें भारत समेत कुछ दूसरे विकासशील देशों को परमानेंट मेंबरशिप का विषय भी शामिल था.

लेकिन बिलावल भुट्टो मुद्दे से भटक गए. वो जान-बूझकर कश्मीर की बात करने लगे. उन्होंने कश्मीर के मुद्दे को बहुपक्षवाद से जोड़ दिया. बिलावल ने कहा,
‘हमें लगता है कि ये कई अलग-अलग पक्षों से जुड़ा एजेंडा है, सिक्योरिटी काउंसिल से जुड़ा एजेंडा है. और, अगर आप इस बहुपक्षीय संस्था या बहुपक्षवाद और इस काउंसिल को सफ़ल होते देखना चाहते हैं तो आप भी इसमें मदद कर सकते हैं. आपको करना ये है कि आप कश्मीर पर UNSC के संकल्प को को लागू करने की इजाज़त दे दीजिए. साबित करिए कि बहुपक्षवाद सफ़ल हो सकता है. ये भी साबित करिए कि UNSC एक सफ़ल संस्था है और ये हमारी तरफ़ शांति ला सकती है.’

बिलावल ने परमानेंट मेंबरशिप पर भी अपनी बात रखी. भारत, दक्षिण अफ़्रीका, जर्मनी और जापान जैसे देश सिक्योरिटी काउंसिल में स्थायी सदस्यता की मुहिम चला रहे हैं. बिलावल ने भारत का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इतना ज़रूर कहा कि परमानेंट मेंबर्स की संख्या बढ़ाने से UNSC अपंग हो जाएगी. उन्होंने कहा कि समस्या से समाधान नहीं निकल सकता. और, जो देश काउंसिल के प्रस्तावों पर अमल नहीं करते, उन्हें किसी भी तरह की सदस्यता के काबिल नहीं समझा जाना चाहिए.

ये तो हुई बिलावल की बात. उनके बाद भारतीय विदेशमंत्री एस जयशंकर ने अपना संबोधन दिया. इसमें उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर बिलावल की हर बात का जवाब दिया. उन्होंने कहा,

‘जिस समय हम आतंकवाद और दूसरी वैश्विक समस्याओं का समाधान तलाश रहे हैं, हमें इस तरह के ख़तरों को नॉर्मल समझकर टालना नहीं चाहिए. जिस विषय को ये दुनिया स्वीकार नहीं करती, उसे जस्टिफ़ाई करने का सवाल भी नहीं उठना चाहिए. ये आतंकवाद को स्पॉन्सर करने वाले देशों पर भी लागू होता है. हमें ये भी मानना होगा कि ओसामा बिन लादेन को पनाह देने वाले और पड़ोसी देश की संसद पर हमला कराने वाले इस काउंसिल में उपदेश देने के हक़दार नहीं हो सकते.’

ये बात पब्लिक डोमेन में दर्ज है कि, 9/11 अटैक्स का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के एब्टाबाद में मारा गया था. और, दिसंबर 2002 में भारत की संसद पर पाकिस्तान-समर्थित आतंकियों ने हमला किया था. 2008 में मुंबई पर हुए वीभत्स आतंकी हमले में भी पाकिस्तान का ही हाथ था. इन सबके अलावा, पाकिस्तान लंबे समय से भारत की सीमा पर घुसपैठ भी कराता रहता है. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI पर भारत में आतंक फैलाने के आरोप लगते रहे हैं.

एस जयशंकर ने अपने संबोधन में चीन को भी निशाने पर लिया. चीन पाकिस्तानी आतंकियों पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्तावों पर लगातार वीटो करता रहा है. जयशंकर बोले,
‘पूरी दुनिया आतंकवाद की चुनौती का साझा सामना कर रही है. लेकिन कुछ देश अंतरराष्ट्रीय फ़ोरम्स का इस्तेमाल आतंकियों को बचाने और उनके कुकृत्य को सही ठहराने के लिए कर रहे हैं.’

एस जयशंकर का इशारा चीन की तरफ़ था. चीन ने सिर्फ 2022 में चार पाकिस्तानी आतंकियों पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव को यूएन में ब्लॉक किया है. इसमें मसूद अज़हर, शाहिद महमूद, अब्दुल रहमान मक्की और सज्जाद मीर जैसे कुख्यात आतंकियों के नाम हैं.

विदेशमंत्री जयशंकर ने अपने भाषण में सिक्योरिटी काउंसिल के सदस्यों की संख्या बढ़ाने और एशिया, अफ़्रीका और साउथ अमेरिका के विकासशील देशों को ज़्यादा से ज़्यादा प्रतिनिधित्व देने की बात भी की.

एस जयशंकर 13 से 15 दिसंबर तक अमेरिका के दौरे पर गए हैं. 14 दिसंबर को उन्होंने न्यू यॉर्क में यूएन के मुख्यालय में महात्मा गांधी की एक प्रतिमा का अनावरण भी किया. इस मौके पर यूएन के सेक्रेटरी-जनरल अंतोनियो गुतेरेस भी मौजूद थे.

इसके अलावा, एस जयशंकर कुछ और मीटिंग्स और समारोहों में हिस्सा लेने वाले हैं.

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