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बालकथा: दादाजी, गोलू और पेड़-पौधे

गोलू जब तीसरी कक्षा में आया था तभी उसके माता-पिता परिवार सहित गांव से शहर में शिफ्ट हो गए थे। शहर में पढ़ाई-लिखाई करते हुए गोलू अब आठवीं कक्षा में आ गया था। उसके स्कूल में छुट्टियां चल रही थीं। एक दिन जब दरवाजे की घंटी बजी तो गोलू ने दरवाजा खोला। दरवाजे पर गोलू ने अपने दादाजी को देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। गोलू के दादाजी आज बहुत दिनों बाद उसके घर पर आए थे। गोलू ने दादाजी के पैर छूकर आदर के साथ उनका स्वागत किया।

दादाजी के साथ बैठकर गपशप करने में गोलू की छुट्टियों का आनन्द दोगुना हो गया। एक दिन गोलू सुबह-सुबह अपने दादाजी के साथ अपने घर के आस-पास घूम रहा था तभी उसने देखा कि दादाजी का चेहरा अचानक मायूस हो गया है। गोलू ने दादाजी से पूछा-क्या हुआ दादाजी आप अचानक उदास क्यों हो गए। गोलू के दादाजी ने कहा-गोलू जब तुम बहुत छोटे थे तब हम यहां शहर में घूमने आए थे, उस समय यहां बहुत सारे पेड़-पौधे थे और इन पेड़ों पर रस्सी बांधकर हम इनकी छांव तले खूब झूला-झूला करते थे। और इन पेड़ों पर लगने वाले ताजे मीठे फलों का तो आनंद ही कुछ और था किन्तु आज शहरीकरण होने से यहां से पेड़-पौधे सब गायब हो चुके हैं और पक्की कंकरीट की सड़कों और बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों की वजह से यहां से वो पुरानी वाली आबोहवा और खुशी अब गायब हो चुकी है।

गोलू ने दादाजी से कहा-हां! दादाजी वह समय तो वाकई बहुत मजेदार होता होगा। कहते-कहते गोलू भी कुछ उदास हो गया था किन्तु जल्दी ही वह सहज होते हुए बोला-दादाजी! क्यों न हम अपने घर के पिछवाड़े में पड़ी खाली जमीन पर पेड़-पौधे उगाएं।

गोलू की बात सुनकर दादाजी खुश हो गए। गोलू और दादाजी ने उस दिन ही अपने घर के पिछवाड़ें की जमीन को ठीक कर नर्सरी से कुछ पौधे लाकर वहां लगा दिए। दादाजी जब तक गोलू के पास रहे तब तक वे गोलू के साथ मिलकर उन पेड़-पौधों की देखरेख करते रहे और जब दादाजी वापस गांव जाने लगे तो गोलू ने दादाजी से वादा किया कि वह इन पेड़-पौधों की नियमित देखभाल करेगा।

गोलू ने दादाजी के गांव जाने के बाद उन पेड़-पौधों को दी जाने वाली खाद-पानी का पूरा ख्याल रखा और अगली बार जब उसके दादाजी शहर आए तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। गोलू के साथ मिलकर उनके लगाए पौधे अब काफी बड़े हो गए थे। गोलू के घर के पिछवाड़े की बेकार पड़ी सूखी जमीन अब हरी-भरी बगिया बन गई थी जिसमें आम, जामुन, और अमरूद के फलों के पेड़ों के अलावा कई सारे छोटे-छोटे फूलों तथा सब्जियों के पौधे भी थे।

गोलू के दादाजी ने गोलू की बनाई बगिया की बहुत प्रशंसा की और इसके लिए उसे बहुत आशीर्वाद भी दिया। गोलू ने देखा कि पिछली बार दादाजी के शहर आने पर उनके चेहरे पर जो मायूसी छा गई थी वह अब खुशी में बदल गई है।

अपने दादाजी को खुश देखकर गोलू जहां बहुत हर्षित था वहीं उसके दादाजी भी आज के बच्चों की पर्यावरण के प्रति जागरूकता देखकर आनंदित हुए।

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