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दमदार है विजय सलगांवकर की कहानी, क्‍लाइमेक्‍स उड़ा देगा होश

2 अक्टूबर और 3 अक्टूबर की कहानी आझ तक लोगों को याद है. 2015 में आई फिल्म दृश्यम ने इन दो दिनों को इस तरह से दिखाया की लोगों के दिलों दिमाग पर ये पूरी तरह से उतर गया है. 2 और 3 अक्टूबर को विजय सलगांवकर की फैमिली पणजी में सत्संग सुनने गई थी. 2 अक्टूबर को विजय की फैमिली ने पाव भाजी खाई थी, 2 अक्टूबर को विजय की फैमिली ने फिल्म देखी थी. ये कोई नहीं भूलता है. ऐसे में एक बार फिर से इस कहानी को आगे बढ़ाया जा रहा है और दूसरे भाग के आने से फैंस में उत्सुकता और बढ़ गई है. फिल्म भले 2013 में आई दृश्यम नाम ही मलयालम फिल्म का रीमेक थी लेकिन जबरदस्त कामयाब रही थी और लोगों के दिलों में अब भी ताजा है.

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कैसी है फिल्म

जब आप कहानी देखने बैंठेगी तो शुरूआत में आपको थोड़ी देर के लिए बोर करती है या यूं कहे की समा बांधती है और विजय के पूरे परिवार की जिंदगी के आस पास ले जाती है. लेकिन कुछ आधे घंटे के बाद फिल्म पेस पकड़ती है और फिर कहानी में रोमांचक औऱ नए मोड़ आने लहते हैं. फिल्म आपको सीट से उठने का मौका नहीं देती है.

एक के बाद एक चौंकाने वाली चीजें होती हैं और क्लाइमैक्स इतना जबरदस्त है कि आपके रौंगटे खड़े हो जाते हैं. कहानी में मोड़ आने तब शुरू होते हैं जब मीरा अपने पति रजत कपूर के साथ लंदन से वापस गोवा आती हैं बेटे की पुण्य तिथि पर और इसी दौरान उन्हें गोवा में नए आईजी तरुण अहलावत (अक्षय खन्ना) मिलते हैं जो उनके दोस्त रह चुके हैं. ऐसे में अब मीरा ने ठान ली है कि तरुण की मदद से वो विजय के राज से पर्दा उठाएंगी.

सीट से बांध कर रखेगी फिल्म

अजय देवगन फिल्म की जान हैं. अजय की एक्टिंग ने फिल्म को अलग ही लेवल पर पहुंचा दिया है. विजय के किरदार में इस बार फिर वो जबरदस्त लगे हैं.अक्षय खन्ना फिल्म में नई एंट्री हैं और वो जबरदस्त लगे हैं. वही फिल्म में नया ट्विस्ट लेकर आते हैं. तबू और रजत कपूर का काम अच्छा है. अजय की पत्नी के किरदार में श्रिया सरन भी पिछले पार्ट की तरह जमी हैं.

अजय के बच्चों के किरदार में इशिता दत्ता और मृणाल जाधव का काम भी अच्छा है. निशिकांत कामत की मौत के बाद अभिषेक पाठक ने फिल्म के सीक्वल की कमान अपने हाथों में ली. दृश्यम की सुपरसक्सेस के बाद लॉकडाउन में खाली बैठे कई सिनेमालवर्स ने मलयालम वर्जन देखी है, तो जाहिर है डायरेक्टर पर प्रेशर जरूर रहा होगा. थ्रिल और सस्पेंस से भरा आखिर का बीस मिनट बहुत ही दमदार गुजरता है.

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