8 महीने खामोशी- बच्चे भी शोर नहीं मचाते

राजधानी (Noise) काठमांडू से महज 8 किलोमीटर दूर ललितपुर के ठेंचो में इन दिनों खास तरह की शांति या कहें खामोशी (Noise) छाई हुई है। सड़कों पर गाड़ियों के हॉर्न नहीं बज रहे। घरों के बाहर शोर मचाते-खेलते बच्चे नहीं दिख रहे।
मां इंद्रायणी का रूप धरने वाले कलाकारों ने हर बार अंत में उनकी मृत्यु का प्रदर्शन किया। इसलिए धीरे-धीरे वे बाहर होती गईं। इस बार वे कार्यक्रम का हिस्सा नहींं हैं। लोग ऊंची आवाज में बातचीत नहीं कर रहे। मंदिरों के दरवाजे बंद हैं।
घंटे-घड़ियाल बंधे पड़े हैं। बाजार में भी खामोशी है। गलियों में ठेलेवाला भी हांक नहीं लगा रहा। शहर में शांति इसलिए है ताकि देवी मां सुकून से सो सकें । तब तक शादी, मुंडन, बर्थडे पार्टी जैसे आयोजन पर प्रतिबंध है।
यहां तक कि घरों में पैर लटकाकर भी नहीं बैठ सकते। कोई बाहरी यहां के किसी घर में रात में नहीं ठहर सकता। स्थानीय केदारनाथ नौपेन बताते हैं, काठमांडू घाटी में 158 ईस्वी तक राज करने वाले किराती राजा पर लिच्छवी नरेश की जीत के उपलक्ष्य में यह त्योहार शुरू हुआ।
मान्यता है कि इस समय नवदुर्गा समेत 13 देव-देवियां लिच्छवी से काठमांडू घाटी चली आईं। ठेंचो में 12 साल बाद नवदुर्गा आई हैं। 8 महीने यहां रहेंगी। मां को सोने में कोई परेशानी न हो। इसलिए ठेंचो ने मौन धारण कर लिया है। इस साल 26 जुलाई से शुरू हुए त्योहार का फरवरी-मार्च तक समापन हो जाएगा।