अंतराष्ट्रीय

स्वदेशी रेशम ने निकाली चीन का निकाला दिवाला

कोरोनाकाल ने फैक्ट्रियों में बनी चीनी रेशम की पोल खोल कर रख दी. बुनकरों का कहना है कि स्वदेशी रेशम से बनी साड़ियों ज्यादा मजबूत होती है. इस वजह से अब बनारस के बाजारों में चीनी रेशन की जगह बेंगलुरु सिल्क की डिमांड बढ़ गई है.

बनारसी साड़ी के कारोबार ने चीन को बड़ा झटका दिया है. कारोबार में अब चीन का रेशम धीरे धीरे लापता हो रहा है. ऐसा कर दिखाया है वाराणसी के बुनकर और बनारसी साड़ी व्यवसाइयों ने. दरअसल, भारतीय रेशम बाजार में छूट के साथ भरपूर मात्रा में उपलब्ध हो जाने से बुनकरों और कारोबारियों का चीनी रेशम से मोह भंग हो चुका है. इससे बाजार में अब चीनी रेशम की डिमांड लगभग खत्म हो रही है और बेंगलुरु से आने वाले रेशम की डिमांड बढ़ गयी है.

बनारस पूरी दुनिया में अपनी साड़ियों के लिए फेमस है. ये बनारसी साड़ियां रेशम से तैयार होती है. रेशम से ही साड़ियों में मजबूती और चमक आती है. दशकों पहले तो ये साड़ियां स्वदेशी रेशम से ही तैयार होते थे लेकिन फिर इस बाजार में चीन ने अपना कब्जा करना शुरू किया और चीनी रेशम को सस्ते दर में भारत के बाजार में उतारना शुरू किया. सस्ते रेशम के कारण बुनकरों ने चीनी रेशम का उपयोग शुरू किया. नतीजा ये हुआ कि 2019 तक बाजारों में बनारसी साड़ी और सिल्क की साड़ियों में चीनी रेशम ही प्रयोग में आने लगे. लेकिन कोरोना काल में चीनी रेशम की पोल खोल दी और स्वदेशी प्रेम को जागृत कर दिया.

कोरोनाकाल में जब साड़ियां कारखानों में रखी रह गई तो चीनी रेशम से बनी साड़ियों का हाल बुरा हो गया. भारतीय रेशम से बनी साड़ियां मजबूती से अपनी खूबसूरती भिखेरती रही. दरसअल बुनकरों ने इस दरम्यान पाया कि चीनी रेशम की तानी जरूर बेहतर होती है, जबकि बाने में इसका प्रयोग अच्छा नहीं देखा गया. वहीं बेंगलुरु के यानि भारतीय रेशम से तैयार वस्त्र छह महीना या साल भर रख कर भी बेचना पड़े तो गुणवत्ता बनी रहती है और पूरा दाम भी मिल जाता है.

चीन की तरफ बेरुखी का सबसे बड़ा कारण ये भी बना कि चीन ने समय के साथ नकली रेशम देना शुरू किया जो कि खुद उसके कारखानों में बनाया जाने लगा. जबकि प्राकृतिक रेशम ही सबसे ज्यादा मजबूती देती है. इसके साथ ही चीन ने अपने रेशम के दामों में बढ़ोतरी कर दी. आकड़ों की बात करें तो चीन का रेशम इस वक्त बजार में 51 सौ रूपये प्रतिकिलों बिक रहे है जबकि बेंगलुरु का रेशम 42 सौ रूपये और सरकार से स्वदेशी नारे के साथ इस स्वदेशी रेशम पर 10 प्रतिशत की छूट भी दे दी है. ऐसे में बुनकरों को अब उनके साड़ियों में मजबूती तो मिल ही रही है साथ ही रेशम भी सस्ते में मिल रहा है. इस तरह यह चीनी रेशम के मुकाबले प्रति किलोग्राम करीब 1200 रुपये तक सस्ता भी पड़ रहा है.

हिन्दुस्तान रेशम का सबसे ज्यादा कंज्यूम करने वाला देश है. पूर्व की सरकारों के बेरुखी के कारण भारतीय रेशम ने अपने ही बाजारों में दम तोड़ दिया और चीनी रेशम ने अपना जगह बना लिया. इसके कारण भारतीय बाजार में चीन का कारोबार इस व्यवसाय में लगभग 70 फीसदी तक हो गया. लेकिन मोदी सरकार ने जिस तरह से भारतीय रेशम को बढ़ावा दिया और उस पर छूट दी उससे चीन को अच्छी खासी आर्थिक चोट पड़ी

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