सुप्रीम कोर्ट गंभीर अपराध में आरोपित के चुनाव लड़ने पर हो सकता है प्रतिबंध?, जाने पूरी खबर
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट गंभीर अपराध में आरोपित के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग पर जल्द सुनवाई पर विचार करने को राजी हो गया है। सोमवार को याचिकाकर्ता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने 2020 से लंबित याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की। कोर्ट ने उनके आग्रह पर कहा कि वह मामले को सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा। भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर रखी है। इसमें हत्या, दुष्कर्म आदि गंभीर अपराधों में आरोपितों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। सोमवार को अश्वनी कुमार उपाध्याय ने प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष याचिका का जिक्र करते हुए मामले पर जल्द सुनवाई की मांग की।
उपाध्याय ने कहा कि यह याचिका 2020 से लंबित है
जिस पर अब तक सुनवाई नहीं हुई है। अब पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण याचिका है। इसलिए इस पर तत्काल सुनवाई की जाए। उपाध्याय ने कहा कि चुनाव में ऐसे लोगों को टिकट दिया जा रहा है, जिनके खिलाफ हत्या, दुष्कर्म, हत्या का प्रयास, उगाही, नशीले पदार्थों की तस्करी और हवाला कारोबार में कोर्ट ने आरोप तय कर दिए हैं। कोर्ट ने उनका आग्रह स्वीकार करते हुए कहा कि वह मामले को सुनवाई के लिए लगाने पर विचार करेगा। गंभीर अपराध उन अपराधों को कहा जाता है, जिनमें सात या उससे अधिक वर्षो के कारावास का प्रविधान है। इसमें हत्या, हत्या का प्रयास, दुष्कर्म आदि सभी गंभीर अपराध आते हैं।
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हर चुनाव के बाद दागियों की संख्या बढ़ती जा रही है। चुनाव सुधार और अपराधीकरण रोकने के लिए 1974 में जयप्रकाश नारायण कमेटी, 1990 में गोस्वामी कमेटी, 1993 में वोहरा कमेटी, 1999 में विधि आयोग, 2002 में वेंकटचलैया आयोग और 2004 में जीवीजी कृष्णमूर्ति आयोग ने अपने सुझाव दिए। इसके बाद 2014 में विधि आयोग ने अपनी 244वीं रिपोर्ट में ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने का सूझाव दिया, जिनके खिलाफ गंभीर मामलों में अदालत से आरोप तय हो चुके हैं। 2016 में चुनाव आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी थी। उसमें भी गंभीर अपराध में आरोप तय होने पर चुनाव लड़ने से रोकने की सिफारिश की गई थी।
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याचिका में कहा गया है कि 25 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन मामले में दिए फैसले में उम्मीदवारों का आपराधिक ब्योरा प्रकाशित करने का आदेश दिया था। याचिका में कहा गया है कि 2004 में 14 प्रतिशत सांसद दागी थे। 2009 में 30 प्रतिशत, 2014 में 34 प्रतिशत और 2019 में 43 प्रतिशत सांसद दागी थे। इससे स्पष्ट है कि राजनीति में अपराधीकरण बढ़ता जा रहा है। यह संख्या जीत कर लोकसभा पहुंचने वालों की है।