सुकन्या समृद्धि योजनाः प्रदेश योजना के तहत खाता खोलने में देश में शीर्ष पर
लखनऊ। समाज में लड़कियों को बोझ समझा जाने लगा। लोग गर्भ में पल रहे शिशु का अल्ट्रासाउंड के जरिये पता लगाने लगे और लड़की होने पर उन्हे गर्भ में ही ‘भ्रुण हत्या’ के जरिये खत्म किया जाने लगा। मजबूरन संसद को ‘गर्भादान पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन रोकथाम) अधिनियम-1994’ को पारित करना पड़ा। यह अधिनियम एक जनवरी 1996 से प्रभावी हुआ। सन् 2002 में इसे संशोधित किया गया।
इस कानून के बनने के बाद बालिका जन्म दर में मामूली वद्धि हुई क्योंकि अभी भी समाज के कई वर्गों ने लड़कियों के पालन-पोषण और उनकी शिक्षा-दीक्षा को सिर्फ धन की बर्बादी समझा था। 2014 में केन्द्र में सत्ता परिवर्तन हुआ। नई सरकार ने नये सिरे से महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया। परिणाम स्वरूप केन्द्र सरकार की कई योजनाएं सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के लिए सृजित की गई। इनके माध्यम से देश की करोड़ों महिलाओं को फायदा हो रहा है। ‘प्रधानमंत्री उज्जवला योजना’, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना, सुरक्षित मातृत्व आश्वासन सुमन योजना, मुफ्त सिलाई मशीन, महिला शक्ति केन्द्र और सुकन्या समृद्धि योजना आदि कुछ ऐसी ही योजनाएं है। इन योजनाओं ने भारतीय नारियों को हर प्रकार से सशक्त किया है।
महिला आधारित सभी योजनाओं की कुछ न कुछ विशेषताएं हैं लेकिन प्रधानमंत्री सुकन्या समृद्धि योजना छोटी बच्चियों के भविष्य को ध्यान में रखकर बनायी गई है। योजना के तहत जन्म से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं के खाते डाकघर या बैंकों में खोले जाते हैं। बालिका की शादी या खाता खोलने की अवधि से 21 वर्ष पूर्ण होने पर परिपक्वता राशि महिला लाभार्थी को दी जाती है। बीच में बालिका के दसवीं पास करने के बाद भी 50 प्रतिशत राशि निकाली जा सकती है। प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिये ब्याज का निर्धारण भारत सरकार द्वारा किया जाता है। वर्तमान में भारत सरकार द्वारा ब्याज दर 7.6 प्रतिशत निर्धारित किया गया है, जो कि किसी भी प्रकार के खाते पर मिलने वाली सबसे अधिक ब्याज दर है।
इस योजना के क्रांतिकारी परिणाम देखने को मिले। योजना से पहले जहां बालिका जन्म दर कम थी वह साल दर साल बढ़ने लगी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एन.एफ.एच.एस.) के पांचवे सर्वेक्षण के अनुसार भारत में प्रति 1000 पुरूषों पर 1020 महिलाएं हैं। इतने अच्छे आंकड़े इससे पहले कभी भी देखने को नहीं मिले। अगर हम जनगणना के आंकड़ों की बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 1000 पुरुषों पर सिर्फ 933 महिलाएं थी।
एन.एफ.एच.एस. के जिस पांचवे सर्वेक्षण के आंकड़े उपर दिये गए हैं, वो दो चरणों में हुआ। पहला चरण कोविड महामारी आने से पूर्व 17 जून 2019 से 1 जनवरी 2020 तक चला और दूसरा चरण 2 जनवरी 2020 से 30 अप्रैल 2021 तक चला। इससे पहले एन.एफ.एच.एस. ने चार सर्वेक्षण किये। ये सर्वेक्षण 1992 से लेकर 2016 तक किये गए।
1000 पुरुषों पर 1020 महिलाओं का होना इस बात को दर्शाता है कि अब समाज में बच्चियों के प्रति लोगों की सोच में परिवर्तन हो रहा है। विशेषज्ञों की माने तो 2015 के बाद से लोगों की सोच बदली है। पहले पुत्रियों को इसलिए प्राथमिकता नहीं दी जाती थी क्योंकि उनके पालन और शादी में काफी पैसा खर्च होता था। 2015 में सुकन्या समृद्धि योजना शुरू होने से अभिभावकों को काफी राहत मिली है और उनका बोझ कम हुआ है।
इस योजना के तहत माता-पिता छोटी-छोटी बचतों को खाते में डालते हैं। इस जमा राशि पर सबसे अधिक ब्याज दिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 में इस योजना की शुरूआत हरियाणा के पानीपत में की थी।
सुकन्या समृद्धि योजना की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 31 अक्टूबर 2021 तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रधानमंत्री सुकन्या समृद्धि योजना के तहत 2,67,02,820 खाते खुल चुके हैं। इन खातों में कुल जमा धनराशि की बात की जाये तो यह 1,17,626.53 करोड़ रुपए है।
उत्तर प्रदेश में 31 मार्च 2015 तक इस योजना के तहत कुल 25,766 खाते खोले गए और इन खातों में 6.52 करोड़ रुपए जमा किये गए। ठीक एक साल बाद यह संख्या 7,66,888 हो गई जमा राशि में भी सौ गुने से अधिक का इजाफा हुआ। और यह राशि 694.74 करोड़ रुपए हो गयी। साल 2017 में प्रदेश में नई सरकार बन गई। केन्द्र और राज्य की डबल इंजन की सरकार ने इस योजना को और अधिक गति दी और सरकार गठन के लगभग एक साल बाद 31 मार्च 2018 को सुकन्या समृद्धि योजना के तहत खुलने वाले खातों की संख्या 13,03,910 हो गई। मार्च 2018 के अंत तक 3,387 करोड़ रुपए से अधिक की रकम जमा हो चुकी थी। प्रदेश और केन्द्र की सरकारों ने मिलकर इसके लिए जागरुकता अभियान चलाये। गांव की पंचायतों के माध्यम से भी जनता को सुकन्या समृद्धि योजना के फायदे बताये गए। सरकार की मुहिम रंग लाई, लोग अब न सिर्फ बेटियों को बचा रहे हैं बल्कि उन्हे पढ़ा भी रहे है। उनके भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ में निवेश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 31 अक्टूबर 2021 तक कुल 29,12,632 खाते सुकन्या समृद्धि योजना के तहत पंजीकृत हो चुके हैं। इन खातों में कुल जमा रकम की बात की जाये तो वह 12,705.84 करोड़ रुपए हो गई है। मौजूदा प्रदेश सरकार के कार्यकाल में लगभग साढ़े अठारह लाख खाते इस योजना में पंजीकृत किये गये हैं। उत्तर प्रदेश के लिए यह भी गर्व का विषय है कि वह सुकन्या खाता खोलने के मामले में भारत के सभी राज्यों की सूची में शीर्ष पर है।
राष्ट्रीय बचत संस्थान के अनुसार एक वित्तीय वर्ष में इस खाते में न्यूनतम 250 रुपए और अधिकतम 1,50,000 रुपए जमा किये जा सकते हैं। खाता कन्या के नाम से उसके माता-पिता या अभिभावक द्वारा खोला जा सकता है। ये खाता डाकघर या अधिकृत बैंक में खोला जा सकता है। खाता खोलने की तिथि को कन्या की आयु 10 वर्ष से कम होनी चाहिए। एक बालिका के नाम से सिर्फ और सिर्फ एक ही खाता खोला जा सकता है। बालिका की उच्च शिक्षा में होने वाले खर्च के लिए खाते से रकम को निकाला जा सकता है। खाता खोलने की तिथि से 21 वर्ष पूरे होने पर खाता परिपक्व हेा जायेगा, लेकिन कन्या की आयु 18 वर्ष पूरी होने पर यदि उसकी शादी हो जाती है तो इसे तय समय सीमा से पहले भी बंद किया जा सकता है। लोगों को इस योजना की ओर आकर्षित करने के लिए खाते की जमा राशि पर आयकर अधिनियम की धारा 80-सी के तहत छूट प्रदान की जाती है। यही नहीं खाते में जमा राशि पर जो भी ब्याज लगेगा, वह भी आयकर अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत कर मुक्त होगा। अपनी इन्हीं सब विशेषताओं के कारण आम जनमानस में इस योजना को लेकर काफी उत्साह है। लोग अपनी कन्याओं को इसके माध्यम से समृद्धि की ओर ले जा रहे हैं।