सरकार ने भेजा बातचीत का न्योता, संयुक्त किसान मोर्चा की आज की बैठक में होगा फैसला
सरकार ने फिर भेजा बातचीत का न्योता, संयुक्त किसान मोर्चा की आज की बैठक में होगा फैसला
नई दिल्ली आंदोलनकारी किसानों का लिखित जवाब मिलने के महज 24 घंटे के भीतर ही सरकार ने बृहस्पतिवार को वार्ता के लिए नया न्योता भेज दिया। क्रिसमस और अटल जयंती की पूर्व संध्या पर ‘कड़वाहट’ दूर करने की सरकारी पहल के बाद अब भी ‘डेडलॉक’ और ‘डॉयलॉग’ के बीच ‘जिच’ बरकरार है। आंदोलनकारी किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों की वापसी की मांग और जबकि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी वाली बात पर ‘अटल’ है।
1. कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव व पीएम-किसान के सीईओ विवेक अग्रवाल की ओर से बृहस्पतिवार को भेजे गए पत्र में लिखा है कि भारत सरकार अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए आंदोलनकारी किसान संगठनों के उठाए गए सभी मुद्दों पर तर्कपूर्ण समाधान के लिए तत्पर है। इसके जरिये सरकार ने संयुक्त मोर्चा के उस सवाल का जवाब दिया है कि बातचीत का एजेंडा साफ नहीं। सरकार ने साफ किया- बातचीत सभी मुद्दों पर हो सकती। इससे पहले भी सरकार ने साफ किया था कि बिंदुवार चर्चा को तैयार हैं।
2. इसी पत्र में सरकार ने संयुक्त मोर्चा के इन आरोपों को भी खारिज किया कि सरकार किसान संगठनों को तोड़ रही है। सरकारी पत्र में लिखा गया है कि किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों ने कई बार उल्लेखित किया कि आमंत्रण तथा संबोधन सभी संगठनों को पृथक-पृथक किया जाए। स्पष्टीकरण के लिए सरकार ने आभार जताया है कि डॉ. दर्शनपाल द्वारा लिखा गया पत्र संयुक्त किसान मोर्चे की ओर से लिखा गया है। सरकार की ओर से देश के सभी संगठनों के साथ वार्ता का रास्ता खुला रखना आवश्यक है। सरकार ने सम्मानजनक तरीके और खुले मन से आगे भी आपकी सुविधा से वार्ता की पेशकश की है। इसे किसान दिवस पर सरकार को भेजे गए संयुक्त मोर्चा के पत्र में ‘साफ नीयत’ को लेकर उठाए गए सवाल और किसान संगठनों में फूट का जवाब माना जा रहा है।
3. संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार को भेजे पत्र में पुराने संशोधनों के बजाये ठोस और नया प्रस्ताव मांगा था। सरकार ने इस बारे में लिखा है कि आपत्ति की गई कि आवश्यक वस्तु अधिनियम के संशोधन का कोई प्रस्ताव नहीं दिया गया। सरकार ने साफ किया कि 3 दिसंबर और 20 दिसंबर के पत्र में साफ किया गया है कि यदि कोई अन्य मुद्दा भी है तो उस पर बात के लिए तैयार हैं। सरकार ने नए मुद्दों पर भी चर्चा की ओर इशारा किया है।
4. किसान दिवस पर संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से सरकार को पत्र भेजने के साथ प्रेस कांफ्रेंस में दोहराया गया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी तीनों कानूनों को वापस लिए बगैर संभव नहीं है। इस पर सरकार ने इस नए पत्र में लिखा है कि कृषि सुधार से संबंधित तीनों कानूनों का न्यूनतम समर्थन मूल्य की खरीदी से कोई संबंध नहीं है। इन तीन कानूनों के आने से एमएसपी की पूर्व से जारी खरीदी व्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं है। इसी पत्र में सरकार ने पिछली सभी बातचीत का हवाला देते हुए फिर दोहराया है कि एमएसपी लागू रहने पर सरकार लिखित आश्वासन देने को तैयार है।
5. सरकार की ओर से आगे लिखा गया है कि विद्युत संशोधन अधिनियम तथा पराली जलाने से संबंधित प्रश्नों समेत चिन्हित मुद्दों समेत अन्य मुद्दों पर भी सरकार वार्ता के लिए तैयार है। हालांकि, इन दोनों मुद्दों पर राहत का प्रस्ताव पहले दिया जा चुका है। इससे पहले सरकार ने जो 10 प्रस्ताव दिए थे, उनमें ये दोनों शामिल थे। विद्युत संशोधन को फिलहाल निरस्त करने और पराली जलाने में जुर्माना व सजा के प्रावधान में राहत की बात की गई थी।
सरकार के पत्र के आखिर में फिर ‘साफ नीयत’ और ‘खुले मन’ का जिक्र कर आंदोलन समाप्त करने की अपील करते हुए स्पष्ट किया गया है कि आप अपनी सुविधा से नई तारीख और समय बताएं। इन मुद्दों के अलावा जिन पर वार्ता करना चाहते है, उनका विवरण दें। यह वार्ता आपके द्वारा सुझाई गई तिथि एवं समय पर विज्ञान भवन, नई दिल्ली में मंत्री स्तरीय समिति के साथ आयोजित की जाएगी।
सरकार बातचीत के संदेश के साथ-साथ वार्ता के पक्षधर किसान संगठनों का समर्थन भी जुटा रही है। 25 दिसंबर को अटल जयंती पर पीएम नरेंद्र मोदी 9 करोड़ किसानों के खाते में 18 हजार करोड़ सम्मान निधि डालेंगे। मोदी किसानों से संवाद भी करेंगे। इस दौरान महरौली में किसानों के बीच अमित शाह, अमेठी में स्मृति ईरानी, हापुड़ में पीयूष गोयल, गाजियाबाद में वीके सिंह मोर्चा संभालेंगे। इससे पहले बृहस्पतिवार को पश्चिमी यूपी के बागपत इलाके के किसानों ने कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मिलकर सरकार के नए कृषि कानूनों का समर्थन किया। कृषि मंत्री तोमर ने इसे चौधरी चरण सिंह से जोड़कर उपलब्धि बताया।
आंदोलनकारी किसानों ने सरकार के नए पत्र पर मंथन के लिए शुक्रवार को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक बुलाई है। इसमें आगे की रणनीति तय होगी। इससे पहले पंजाब की जत्थेबंदियों में सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि इस बार सरकार को सीधे क्यों न ‘ना’ कह दिया जाए। एक किसान संगठन के नेता ने कहा कि आखिरी फैसला यूं तो संयुक्त मोर्चा की बैठक में होगा लेकिन इस पत्र में भी कुछ भी नया और ठोस नहीं है। एमएसपी पर सरकार लिखित गारंटी की बात तो करती लेकिन कानूनी गारंटी की हमारी मांग को तर्कसंगत नहीं बताती। तीनों कानूनों की वापसी और एमएसपी की कानूनी गारंटी को मुद्दा बनाते हुए अब संयुक्त किसान मोर्चा दो टूक ‘ना’ कहने का मन बना चुका है। सरकार के नए पत्र के कानूनी और रणनीतिक पहलुओं पर भी आंदोलनकारी किसान संगठनों के बीच मंथन जारी है। 25 दिसंबर को जब सरकार किसानों से संवाद व संपर्क अभियान में जुटेगी, तभी संयुक्त मोर्चा की ओर से भाजपा के विधायकों-सांसदों के आवास के घेराव के अलावा हरियाणा के सभी टोल फ्री कराने की भी रणनीति है।
इससे पहले राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति को किसानों का हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन सौंपा गया। तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की गई। कांग्रेस के अलावा सपा, गुपकार गठबंधन से जुड़े विपक्षी दलों ने किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरा। उधर, केरल सरकार ने कैबिनेट की बैठक कर 31 दिसंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है। पंजाब की तर्ज पर इस विशेष सत्र में नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव लाया जाएगा। इससे पहले किसान दिवस पर 23 दिसंबर को बुलाए गए विधानसभा के विशेष सत्र को राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मंजूरी नहीं दी थी।
जाहिर है कि फिलहाल बातचीत से मसले का हल निकलता नहीं दिख रहा है। ऐसे में आखिरी उम्मीद सुप्रीम कोर्ट से है। अभी दिल्ली जाम के मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वार्ता से हल की ओर इशारा किया था। अब नए कृषि कानूनों के खिलाफ दो-दो किसान संगठन भाकियू (भानू) और भाकियू (लोकशक्ति) सर्वोच्च अदालत की दहलीज पर हैं। ऐसे में बातचीत से बात नहीं बनी तो सुप्रीम कोर्ट पर निगाहें टिकेंगी।