प्रयागराज

शंकराचार्य ब्रह्मानंद ने किया ज्योतिष्पीठ में ऊर्जा का संचार : शंकराचार्य वासुदेवानंद

प्रयागराज। लगभग 165 वर्षों तक ज्योतिष्पीठ पर कोई भी पीठाधीश्वर शंकराचार्य नहीं रहा। इसके बाद 1941 में संत महात्माओं ने मिलकर परम त्यागी, वेदज्ञ महात्मा स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी को श्रीमज्योतिष्पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य के नाम पद पर पीठासीन किया।
यह बातें जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने सोमवार को आदि शंकराचार्य मंदिर अलोपीबाग में आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण कथा में बताते हुए कहा कि भगवान आदि जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा सृजित चार पीठों में एक ‘ज्योतिषपीठ’ द्वारा किए जा रहे सनातन वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार कार्य शिथिल हो गया था। स्वामी जी ने पीठासीन होने के पश्चात् श्रीमद् ज्योतिष्पीठ के माध्यम से सनातन वैदिक धर्म के प्रचार प्रसार को ऊर्जा एवं गति प्रदान करके उसे विश्वव्यापी स्वरूप प्रदान किया।
जगतगुरु शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी शांतानंद सरस्वती सभागार अलोपीबाग में पूर्व शंकराचार्य गुरुओं की स्मृति में आयोजित नौ दिवसीय आराधना महोत्सव में आज भगवान श्री राधा माधव पाटो उत्सव एवं पीठोद्धारक शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद जी की जयंती के अवसर पर भगवान कृष्ण राधा, आदि शंकराचार्य, चंद्रमौलेश्वर भगवान एवं शंकराचार्य ब्रह्मानंद जी की प्रतिमा पर भागवत कथा व्यास स्वामी श्रवणनंद सरस्वती ने ब्रह्मानंद जी की माल्यार्पण एवं आरती किया। तत्पश्चात् भगवान कृष्ण के जन्म से उनके बाल लीला का रोचक मनमोहक एवं सारगर्मित वर्णन किया। दंडी स्वामी विनोदानंद ने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती द्वारा सनातन वैदिक धर्म के प्रचार प्रसार और उसमें आने वाली बाधाओं से संघर्ष करने का उल्लेख किया।
श्रीमज्योतिष्पीठ प्रवक्ता ओंकार नाथ त्रिपाठी ने बताया कि आराधना महोत्सव में 14 दिसम्बर को गीता जयंती एवं पूर्व श्रीमज्योतिष्पीठोद्धारक जगतगुरु शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी विष्णुदेवानंद सरस्वती जी महाराज का जयंती महोत्सव कार्यक्रम कथा अपराह्न 2 बजे से श्रीमद् भागवत कथा तथा सांय 7ः30 बजे से मैदानेश्वर बाबा के समक्ष यज्ञात्मक रुद्राभिषेक कार्यक्रम होगा। आज के कार्यक्रम में प्रमुख रूप से दंडी स्वामी विनोदानंद, पूर्व प्रधानाचार्य शिवार्चन उपाध्याय, स्वामी अदैतानंद, ब्रह्मचारी आत्मानंद, ब्रह्मचारी विशुद्धानंद, आचार्य विपिन मिश्र, अभिषेक, आचार्य जयराम शुक्ल, आचार्य रामनारायण, भगवान दास, मनीष मिश्रा आदि उपस्थित रहे।

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