‘वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा’, शायरों का है अंदाज़े-बयां कुछ और…

मैं सच कहूंगी मगर फिर भी हार जाऊंगी
वो झूट बोलेगा और लाजवाब कर देगा
परवीन शाकिरज़हर मीठा हो तो पीने में मज़ा आता है
बात सच कहिए मगर यूं कि हक़ीक़त न लगे
फ़ुज़ैल जाफ़री
एक इक बात में सच्चाई है उसकी लेकिन
अपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है
कफ़ील आज़र अमरोहवी
सादिक़ हूं अपने क़ौल का ‘ग़ालिब’ ख़ुदा गवाह
कहता हूं सच कि झूट की आदत नहीं मुझे
मिर्ज़ा ग़ालिब
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अंधेरा होगा
निदा फ़ाज़ली
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
बशीर बद्र
झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर ‘ज़फ़र’
आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए
ज़फ़र इक़बाल
इश्क़ में कौन बता सकता है
किस ने किस से सच बोला है
अहमद मुश्ताक़
रात को रात कह दिया मैंने
सुनते ही बौखला गई दुनिया
हफ़ीज़ मेरठी
वो कम-सुख़न था मगर ऐसा कम-सुख़न भी न था
कि सच ही बोलता था जब भी बोलता था बहुत
अख़्तर होशियारपुरी (साभार/रेख़्ता)