लालू के ‘समाजवाद’और तेजस्वी के ‘माफीनामे’ का क्या है राज?

पटना. बदलते वक्त के साथ ही बिहार की सियासत भी बदल रही है. सूबे में एक वर्ग ऐसा भी है जिनकी सियासी सोच बीते जमाने में नहीं भविष्य की ओर नजरें टिकाए है. इसमें जात-पात नहीं, बल्कि विकास की राजनीति को अधिक तवज्जो मिल रही है. ऐसे में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनता दल अपने पुराने नेता लालू प्रसाद यादव के दौरान वाली छवि से बाहर निकलने की कोशिश लगातार कर रहा है. इस कवायद में राजद के सामने दुविधा भी है. पिछले विधानसभा चुनाव में राजद ने लालू की तस्वीरों तक से पीछा छुड़ा लिया था, लेकिन अब लालू तो पोस्टरों में वापस लौट गए हैं. पर एक सुधार भी है. वह यह कि तेजस्वी ने उस दौर (लालू-राबड़ी राज) की गलतियों के फिर से माफी मांगी है और तेजस्वी यादव ने (मुस्लिम-यादव) समीकरण से पीछा छुड़ाने की कोशिश के तहत राजद को फिर ए-टू-जेड (सर्वसमाज) की पार्टी करार दिया है. यानी तेजस्वी भी अब सर्वसमाज की बात कहने लगे हैं और पहले की गलतियों के लिए माफी भी मांग रहे हैं.
दरअसल, तेजस्वी की इस माफी के पीछे का चुनावी नतीजा है जिसमें बीते 2020 विधानसभा चुनाव में वोटों के समीकरण को आंकड़ों में देखें तो साफ नजर आता है कि एनडीए के खाते में 1 करोड़ 57 लाख 01 हजार 226 वोट पड़े थे, जबकि महागठबंधन के खाते में 1 करोड़ 56 लाख 88 हजार 458 वोट पड़े. अगर इसे प्रतिशत के लिहाज से देखें तो एनडीए को 37.26% वोट मिले जबकि महागठबंधन को 37.23% वोट मिले. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि महागठबंधन और एनडीए की जीत में फैसला केवल लगभग 12000 वोट का था. राजद के कई विधायकों की हार का अंतर भी 1000 वोटों से कम का था.