
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आयोग कानूनों की वैधानिकता को चुनौती के मामले में केंद्र सरकार के जवाब दाखिल न करने पर सोमवार को गहरी नाराजगी जताई। कोर्ट ने केंद्र सरकार पर 7,500 रुपये जुर्माना लगाया और चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के लिए अंतिम मौका दिया है। भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून, 1992 और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आयोग कानून, 2004 की वैधानिकता को चुनौती दी है।
आम बजट: अब करदाता दो साल में कर सकेंगे भूल सुधार
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 28 अगस्त, 2020 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था, लेकिन केंद्र सरकार ने कई बार समय मांगने के बावजूद अभी तक मामले में जवाब दाखिल नहीं किया है। सोमवार को यह मामला जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंद्रेश की पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगा था।
आयोग कानूनों की वैधानिकता को चुनौती
केंद्र सरकार ने कोर्ट में आग्रह पत्र देकर जवाब दाखिल करने के लिए कुछ और समय दिए जाने की मांग की थी लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने केंद्र के आग्रह का विरोध किया। पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज से जब जवाब दाखिल करने के बारे मे पूछा तो उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने मामले में पत्र देकर समय मांगा है।
कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आप हर बार समय मांगते हैं। इस मामले में कोर्ट ने 28 अगस्त, 2020 को नोटिस जारी किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने कई बार समय लिया परन्तु अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया। गत सात जनवरी को मामला सुनवाई पर लगा था। तब कोर्ट ने सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए अंतिम मौका दिया था, लेकिन फिर भी जवाब दाखिल नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि आप जवाब दाखिल कर अपना स्टैंड तो बताइए।
मामले में हलफनामा दाखिल न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र पर लगाया जुर्माना
एएसजी ने कहा कि जवाब लगभग तैयार है, दो सप्ताह में दाखिल कर दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जुर्माने की राशि केंद्र सरकार एससीबीए कल्याण कोष में जमा कराएगी। कोर्ट ने मामले को 28 मार्च को फिर सुनवाई पर लगाने का निर्देश दिया है। साथ ही हाई कोर्ट से स्थानांतरित होकर आईं याचिकाओं पर भी सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा। याचिका में दोनों आयोगों के गठन के कानूनों को चुनौती देते हुए कहा गया है कि केंद्र सरकार धार्मिक आधार पर सरकारी धन खर्च नहीं कर सकती।