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रायबरेली सदर विधानसभा सीट पर परिवार का कब्जा !!

उत्तर प्रदेश की रायबरेली सदर विधानसभा सीट पर पिछले करीब तीन दशक से एक ही परिवार का कब्जा रहा है, भले ही वह कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में हो, या पीस पार्टी, भाजपा के टिकट पर हो या निर्दलीय उम्मीवार के तौर पर। यह विधानसभा सीट कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। यह परिवार है पांच बार के विधायक, दिवंगत अखिलेश सिंह और उनकी बेटी अदिति सिंह। इन दोनों का कांग्रेस और गांधी परिवार से बेहतर रिश्ता रहा है।

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कांग्रेस के हाईप्रोफाइल गढ़ की यह सीट अंतिम बार इस परिवार के बाहर 1991 में गई थी, जब जनता दल और जनता पार्टी शीर्ष दावेदार थे और भारत में अधिक उदार अर्थव्यवस्था शुरू नहीं हुई थी। 23 फरवरी को इस विधानसभा सीट के लिए होने वाले चुनाव से एक हफ्ते पहले ही अदिति सिंह (34) ने सोशल मीडिया पर अपने पिता का एक छोटा वृत्तचित्र जारी करते हुए मतदाताओं से भावनात्मक अपील की थी। उन्होंने रायबरेली में अपने पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए एक बार फिर विजयश्री दिलाने की अपील की।

कांग्रेस पर हमले करते हुए भाजपा

अदिति सिंह 2017 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर निर्वाचित हुई थीं, लेकिन 2021 में कांग्रेस पर हमले करते हुए भाजपा में शामिल हो गयी थीं। दोनों परिवारों के बीच इंदिरा गांधी के जमाने से ही पारिवारिक रिश्ते थे। वह इस बार विधानसभा चुनाव में अपने पिता की ‘समृद्ध विरासत’ को केंद्र बिंदु में रखकर चुनाव प्रचार कर रही हैं। अदिति के पिता अखिलेश सिंह की मृत्यु 2019 में कैंसर के कारण हो गई थी। समाजवादी पार्टी ने इस सीट से जमीनी कार्यकर्ता आर पी यादव को चुनाव मैदान में उतारा है। सपा ने अखिलेश सिंह के कार्यकाल को दागी और अपराध में लिप्त विरासत करार दिया और दावा किया कि वह मौजूदा चुनाव में रायबरेली सदर सीट को इस परिवार के चंगुल से छीन लेगी।

अदिति सिंह को धोखेबाज करार देते हुए

कांग्रेस ने भी अदिति सिंह को धोखेबाज करार देते हुए उनके खिलाफ चौतरफा अभियान शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने शहर के सुपरिचित चिकित्सक मनीष चौहान को चुनावी अखाड़े में उतारा है। अखिलेश सिंह पर जारी वृत्तचित्र में कहा गया है कि 1993 में रायबरेली सदर से चुनाव लड़ रहे अखिलेश सिंह को लेकर चर्चा हुई थी। लेकिन किसी को भी इसका भान नहीं था कि अपना पहला चुनाव लड़ रहे अखिलेश सिंह आने वाले समय में रायबरेली की राजनीति की आधारशिला बन जाएंगे। लोगों से उनका ऐसा संबंध था कि किसी भी प्रकार का राजनीतिक समीकरण उन्हें आम जनता से अलग नहीं कर सका। चाहे जिस पार्टी की लहर उत्तर प्रदेश में हो, लेकिन रायबरेली (की जनता ने) हमेशा अखिलेश सिंह को ही चुना।

टिकट पर पहली बार चुनाव

सपा की रायबरेली इकाई के अध्यक्ष वीरेन्द्र यादव ने दावा किया कि रायबरेली सदर जिला मुख्यालय होने के बावजूद इतने वर्षों में विकास की धारा से नहीं जुड़ सका। तीन लाख 64 हजार मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में बुधवार को मतदान होना है।

अखिलेश सिंह ने 1993 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा था और विजयी रहे थे और 1996 और 2002 में भी विजयश्री उनके गले लगी थी, लेकिन उसके बाद कांग्रेस से उनके संबंध खराब हो गये थे। अखिलेश सिंह को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया था, लेकिन 2007 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में यह सीट अपनी झोली में डाल ली थी। तब उन्होंने 76,603 मतों से कांग्रेस उम्मीदवार रुद्र प्रताप सिंह को हराया था। अगले (2012 के) विधनसभा चुनावों में उन्होंने पीस पार्टी के टिकट पर 75,588 मतों से अपना परचम लहराया था और सपा के राम प्रताप यादव को हराया था।

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