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मौनपालकों को जिला स्तर पर भी सामयिक जानकारी सुलभ रहेगी: डा0 आर के तोमर

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में मधुमक्खी पालन कृषि उद्यम के रूप में किसानों और बागवानों द्वारा प्रमुखता से अपनाया जाने लगा है। किसान इस व्यवसाय को अपनाकर अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं। उद्यान विभाग मौनपालन व्यवसाय को अपनाने वाले किसानों और बागवानों को हर सम्भव सहयोग प्रदान कर रहा है।यह जानकारी सयुंक्त निदेशक उद्यान डा0 आर0 के0 तोमर ने आज यहां दी। उन्होंने बताया कि मौनपालकों को सम सामायिक जानकारी कराने की व्यवस्था जिला स्तर पर भी की गयी है। मधुमक्खी पालन अनुपूरक कृषि उद्यम के रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मधुमक्ख्यिों से शहद, पालन प्रपोलिस, मोम, मौन विष एवं रॉयल जैली आदि स्वास्थ्यकारक, गुणकारी पदार्थ प्राप्त होते है, जो बहुत लाभकारी है। इसके अतिरिक्त जहां मधुमक्खियों से फसलों में पर- परागण से पौधों की जीविता एवं उत्पादन में 2-3 गुना वृद्धि होती है, वही लोगों को स्वरोजगार के अवसर भी प्राप्त होते है। उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन से कम समय में अच्छी आय अर्जित की जा सकती है। इस हेतु मौनपालकों के मौसम के अनुसार सम-सामयिक रख-रखाव पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उ0प्र0 लखनऊ द्वारा मधुमक्खी पालकोध्कृषकों को आवश्यक सुझाव व सलाह देने की हर स्तर पर व्यवस्था की गई है। डा0 तोमर ने मौनपालकों को सलाह दी है कि बरसात का मौसम चल रहा है। माह-जुलाई, एवं अगस्त में मधुमक्खियों के मौनवंशों को ऊँचे स्थान पर रखकर मौन गृहों के स्टैण्ड के नीचे चीटीं आदि को रोकने के लिए प्यालियों में पानी भर दें तथा पानी को समय-समय पर बदलते रहें। इस मौसम में चींटों, बर्रे, मोमी पतिंगा, मेढक ड्रैगन फ्लाई आदि द्वारा भी मौनगृह में घुसकर मधुमक्खियों को क्षति पहुचायी जाती है। इन शत्रुओं से बचाब के लिए मौनगृहों के छिद्रोंध्दरारों में गीली मिट्टी भर दें, प्रवेश द्वार को छोटा अथवा क्वीन गेट लगा दें। डा0 तोमर ने मौनपालकों को यह भी सलाह दी है कि मौनवशों में माइट के प्रकोप दिखाई देने पर दो से तीन ग्राम तम्बाकूध्नीम की पत्ती का धुनीकरण सप्ताह में दो बार किया जायें तथा अधिक प्रकोप की दशा में 85 प्रतिशत फार्मिक एसिड का प्रयोग इन्जेक्शन की शीशी में रख कर सांयकाल के समय देते रहना चाहिए। बरसात के मौसम में प्राय: प्रदेश में बी-फ्लोरा की उपलब्धता भरपूर नहीं मिल पाती है। इसके लिए मौनपालक मौनवंश को कृत्रिम भोजन के रूप में चीनी एवं पानी का 60.40 के अनुपात में घोल बनाकर देते रहे। इसके साथ ही मक्का, बाजरा, ज्वार, लता वर्गीय सब्जिया आदि की फसलों के क्षेत्रों में माइग्रेशन किया जा सकता है।

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