माता-पिता के बीच वैवाहिक विवाद में फंसे बच्चे की, जाने कस्टडी से जुड़ी जानकारी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सवाल किया कि माता-पिता के बीच वैवाहिक विवाद में फंसे बच्चे की कस्टडी से जुड़े विभिन्न कानूनी पहलुओं को विधायिका एक कानून के तहत लाने का प्रयास क्यों नहीं करती। शीर्ष अदालत ने बच्चे की कस्टडी से जुड़े विभिन्न कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि उनसे याचिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा, सवाल यह है कि पहले से ही पर्याप्त कानून हैं।
एक कानून के तहत लाए जाएं बच्चे की कस्टडी से जुड़े विभिन्न पहलू: सुप्रीम कोर्ट
इसके लिए मेंटीनेंस एक्ट, द गार्जियन एंड वार्घ्ड्स एक्ट, प्रोटेक्शन आफ वूमेन फ्राम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट हैं। चार-पांच एक्ट हैं और वे एक अदालत से दूसरी अदालत के चक्कर लगा रहे हैं। यह समय है जब विधायिका इन सब चीजों को देखे। पीठ ने कहा, विधायिका इसको इस दृष्टिकोण से क्यों नहीं देखती.. आप एक बार में ही इन सभी को एक छतरी के नीचे क्यों नहीं लाते।
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अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस मुद्दे पर लिखित जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय देने की मांग की, इस पर पीठ ने उन्हें इसकी अनुमति प्रदान कर दी। शीर्ष अदालत वर्ष 2017 के गुजरात हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल हेमंत बाबूराव वसंते द्वारा दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी। सरकार ने 14 फरवरी से देश में आने वाले अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए नए कोविड-19 दिशानिर्देश जारी किए हैं।
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नाबालिग लड़की से बने संबंध से पैदा हुए बच्चे को उसकी मां की सहमति से दिल्ली हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपों का सामना कर रहे जैविक वैवाहिक पिता को सौंपने की अनुमति दी। न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की पीठ ने कहा कि किशोरी अभी नाबालिग है और उसे बालिग होने तक आश्रय गृह में रखा जाएगा। इसके बाद कहीं भी रहने के लिए स्वतंत्र है। पीठ ने यह आदेश पीडि़ता का बयान सुनने के बाद दिया।