मणिपुर में भाजपा(BJP) ने रचा इतिहास, पहली बार मिला बहुमत
भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपने इतिहास में पहली बार बहुमत के साथ मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। इस टारगेट को हासिल करने में शांति-सुलह की राजनीति, सत्ता-संसाधनों की राजनीति और टारगेटेड स्टेट स्कीम ने काफी मदद की है। मणिपुर में भाजपा ने 60 सीटों में 32 सीटों पर जीत दर्ज की। विपक्षी दल कांग्रेस अपना अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन करते हुए सिर्फ पांच सीटों पर सिमट गई जबकि 2017 में वह सबसे बड़ी पार्टी थी। हालांकि, तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके ओ इबोबी सिंह ने थौबल सीट से जीत हासिल की।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) ने छह और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने सात सीटें जीती। नगा पीपुल्स फ्रंट को पांच सीटें मिली। जद(यू) को पिछले चुनाव में जीत नहीं मिली थी। दो सीटों पर कूकी पीपुल्स अलायंस को जीत मिली है। तीन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की।
भाजपा का लगातार होता विस्तार-
2017 में भाजपा सीटों के मामले में कांग्रेस के बाद दूसरे स्थान पर थी, लेकिन गठबंधन बनाने व सरकार बनाने में आगे रही। पूर्व कांग्रेसी नेता एन बीरेन सिंह को बीजेपी ने राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। पांच वर्षों में भाजपा ने राज्य में अपनी ताकत का विस्तार किया। भाजपा अब वास्तव में एक राष्ट्रीय पार्टी है जो उत्तर और पश्चिम भारत में अपने पारंपरिक गढ़ क्षेत्रों से बहुत आगे निकल गई है।
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सत्ता और संसाधनों की राजनीति काम आई-
इसमें पहला सत्ता और संसाधनों की राजनीति है। केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी के सत्ता में होने के लाभों को दिखाने के लिए भाजपा ने डबल-इंजन टर्म का इस्तेमाल किया। इससे पूर्वोत्तर के छोटे राज्यों में कहीं और की तुलना में अधिक लाभ हुआ। राष्ट्रीय और राज्य सरकार में तालमेल और विकास कार्यों में तेजी को लेकर अच्छा संदेश गया।
विद्रोह और असंतोष को भाजपा ने भुनाया-
मणिपुर और नागालैंड में चुनाव कराना खर्चीला होता है, प्रति व्यक्ति आधार पर देश के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक खर्च आता है। यह खुफिया एजेंसियों को सूचनाओं को फीड करने में भी मदद करता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां लंबे समय से विद्रोह और असंतोष देखा गया है। इस मामले में बीजेपी को फायदा हुआ। हालांकि, इस जीत का श्रेय केवल केंद्र में सत्ताधारी पार्टी को देना सही नहीं होगा।