भारत के वो ऋषि, जिन्होंने सूर्यग्रहण के बारे में सबसे पहले जाना

सूर्यग्रहण :उन ऋषि का नाम था अत्रि ऋषि. उन्हें प्राचीन भारत में बहुत बड़ा वैज्ञानिक भी माना जाता है. अत्रि ऋषि भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे. पुराणों के अनुसार, चन्द्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा ब्रह्मा जी के असल पुत्र थे. उन ऋषि का नाम था अत्रि ऋषि. उन्हें प्राचीन भारत में बहुत बड़ा वैज्ञानिक भी माना जाता है. अत्रि ऋषि भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र थे. पुराणों के अनुसार, चन्द्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा ब्रह्मा जी के असल पुत्र थे.
ऋषि अत्रि का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है. उनकी पत्नी पत्नी अनुसुइया थीं, जिन्होंने अपने सतीत्व के तपोबल से ब्रह्मा, विष्णु, महेश को छोटे बच्चों में रबदल दिया था. अनुसुइया की गिनती 16 सतियों में होती है.
महर्षि अत्रि ग्रहण के बारे में कहा जाता है कि उन्हें सबसे पहले ग्रहण संबंधी ज्ञान हुआ. ऋग्वेद के अनुसार ऋषि अत्रि और उनके परिवार को ग्रहण का बेहतर ज्ञान था. महर्षि अत्रि ने फिर ग्रहण का ज्ञान बाकी लोगों को दिया. उन्होंने खगोल शास्त्र के रहस्य खोले. आसमान में टिमटिमाते तारों से लेकर अज्ञात ग्रहों तक के अध्ययन में वो समय से बहुत आगे थे.
तब तीन ग्रहण पडे़ थे-वैसे महाभारत युद्ध की शुरुआत ग्रहण के समय हुई थी. इसी युद्ध में आखिरी दिन भी ग्रहण था. इसके साथ ही युद्ध के बीच में एक सूर्यग्रहण और हुआ था. तीन ग्रहण होने से महाभारत का भीषण युद्ध हुआ. जब कृष्ण ने जयद्रथ का वध किया था, तब भी सूर्यग्रहण ही पड़ा था.
तब शुभ नहीं होते सूर्यग्रहण – ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एक साल में तीन या उससे अधिक ग्रहण शुभ नहीं माने जाते हैं. ऐसा होने पर प्राकृतिक आपदाएं और सत्ता परिवर्तन देखने को मिलता है. ग्रहण से देश में रहने वाले लोगों को नुकसान होता है. बीमारियां बढ़ती हैं. देश की आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव आते हैं.
क्या है वैज्ञानिक पहलू – विज्ञान के अनुसार, सूर्यग्रहण एक खगोलीय घटना है. जब चंद्रमा घूमते-घूमते सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य की चमकती रोशनी चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ती. चंद्रमा के कारण सूर्य पूर्ण या आंशिक रूप से ढकने लगता है. इसी को सूर्यग्रहण कहा जाता है.