बसपा भी कर सकती है फेरबदल !

कैसरगंज – बहराइच जिले की इस सीट की बात की जाए तो यह 2008 में परिसीमन के बाद इस सीट का समीकरण बदल गया. यूं तो इस सीट पर किसी भी एक पार्टी का एकाधिकार नहीं कहा जा सकता लेकिन परिसीमन के बाद इस सीट का बड़ा हिस्सा पयागपुर में शामिल हो गया. साथ ही फखरपुर विधानसभा का आंशिक हिस्सा यहां से जुड़ गया. इस कारण 2012 और 2017 के चुनावों पर इसका असर पड़ा.
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इस सीट के इतिहास को देखें तो 1991 में राममंदिर लहर में इस सीट से भाजपा के उम्मीदवार रूदेन्द्र विक्रम सिंह ने जीत हासिल की थी. 1993 में यहां से समाजवादी पार्टी को जीत हासिल हुई थी. सपा के प्रत्याशी रामतेज यादव पर जनता ने भरोसा दिखाया था. 1996 में भी रामतेज यादव को ही जनता ने पसंद किया और दूसरी बार विधायक की कुर्सी पर बैठाया. दस साल बाद 2002 में फिर से भारतीय जनता पार्टी ने यहां से जीत दर्ज की. 2007 में यहां पर बहुजन समाज पार्टी सामने आई.
पार्टी के गुलाम मोहम्मद खान को लोगों ने यहां पर विधायक की कुर्सी पर बैठाया और बसपा पहली बार यहां पर खाता खोलने में कामयाब रही. 2012 में भाजपा के मुकुट बिहारी वर्मा दूसरी बार विधायक की कुर्सी पर बैठे. इसके बाद 2017 में भी मुकुट बिहारी को लोगों ने तीसरी बार विधायक बनाया. 2017 में उन्होंने बसपा के खालिद खान को शिकस्त दी. बिहारी ने खान को 27363 मतों से हराया. इस साल इस सीट का कुल मत प्रतिशत 40.67 रहा था.
जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. इसके अलावा दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाता भी चुनावी नतीजों को बदल देते हैं. दलित और पिछड़ा वर्ग के कारण यहां पर हमेशा बसपा और सपा को उम्मीद रहती है. यहां पर कुल मतदाता 323269 संख्या है. इसमें से महिला मतदाता 143336 हैं और पुरुष मतदाता 179933 हैं.