अंतराष्ट्रीय

प्रयागराज की बेटी न्यूयॉर्क में बढ़ाएगी भारतीय संस्कृति का गौरव

प्रयागराज में पली-बढ़ी अनाहता गुप्ता न्यूयॉर्क के अल्फ्रेड यूनिवर्सिटी में भारतीय मृदभांड कला की विशिष्टता को विश्व मंच पर उजागर करेंगी. उनका चयन स्कॉलरशिप के साथ बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स के लिए किया गया है. वह वहां पर सिरेमिक का अध्ययन करेंगी.

भारतीय संस्कृति की गौरवशाली गूंज आज विदेशों तक सुनाई देती है तो इसके पीछे प्रतिभाशाली भारतीयों का भी हाथ है जो विदेशों में जाकर, वहां रहकर अपने देश के गौरवपूर्ण इतिहास और विकसित होते वर्तमान से लोगों को रूबरू कराते हैं. इसी क्रम में संगम नगरी की अनाहिता गुप्ता ने भी अपना कदम बढ़ाया है. जी हां.. अनाहिता गुप्ता न्यूयॉर्क में जाकर सिरामिक्स पर अध्ययन कर प्राचीन भारतीय मृदभांड कला की विशिष्टताओं को उजागर करेंगी. उनका चयन सिरामिक के अध्ययन के लिए विश्व की नंबर 1 यूनिवर्सिटी,अल्फ्रेड विश्वविद्यालय में हुआ है. वह वहां पर बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री लेंगी. वह युवाओं को प्रेरित करती हैं कि संस्कृति ही हमारी पहचान है.
अनाहिता गुप्ता बचपन से ही संगम नगरी से जुड़ी हैं. वह बताती हैं कि यहां का माहौल ही मुझे हमेशा मृदभांड कला की तरफ आकर्षित करता रहा. पिता का भी इलाहाबाद संग्रहालय से पुराना नाता रहा. उन्होंने हाल में ही सेंट मेरिज से 12वीं की कक्षा उत्तीर्ण की है. इसके अलावा प्रयागराज संगीत समिति से वायलन और बांसुरी बजाने में भी कौशल प्राप्त किया है. अनाहिता अपने मां बाप और एक भाई के साथ प्रयागराज में ही रह रही हैं.
अनाहिता ने हमें बताया है कि बहुत कम लोग सेरेमिक के बारे में जानते हैं, जिससे प्राचीन कलाएं लोगों तक नहीं पहुंच पाती. उन्होंने बताया कि विदेशों में मौजूद आधुनिक तकनीकी के माध्यम से भारतीय मृदभांड कला को पुनर्जीवित तथा विकसित करना चाहती हूं, ताकि यहां की हजारों साल पुरानी सभ्यताओं को विश्व मंच पर रखा जा सके.

मृदभांड का मूल अर्थ है- बर्तन.भारतवर्ष में समय-समय पर भिन्न भिन्न संस्कृतियों का विकास हुआ जो वक्त के साथ लुप्त भी होती गई, परंतु उनके बचे हुए अवशेष जो खुदाई के दौरान निकाले गए, उनसे उस लुप्त हुई सभ्यताओं का पता चला. इन अवशेषों में शिलाखंड, प्रतिमाएं, सिक्के और दैनिक इस्तेमाल की वस्तुएं भी शामिल हैं. जिनमें बर्तनों का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल है यह अलग-अलग प्रकार के होते हैं जो अलग-अलग सभ्यताओं से जुड़े हैं. भारत में जितनी भी सभ्यताएं हुई है, सबका अपना अलग तरीका था. कोई मिट्टी तो कोई पत्थरों से बने बर्तन इस्तेमाल करता था. इन भांडो में विशेष चित्रकारी भी की जाती थी, जिन्हें अगर हम आज देखें तो उसकी सुंदरता देखते ही बनती है. बर्तन बनाने की कला अर्थात भारतीय मृदभाण्ड कला को और अधिक समझने योग्य तथा आगे भी विकसित करने के लिए आज बड़े पैमाने इस पर पठन-पाठन हो रहा है.

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