धर्म - अध्यात्म

पौधा उखाड़ने की प्रथा आज भी बेहद ही रहस्यमयी 

सीहोर । दीपावली के बाद देशभर में परंपरा के अनुसार कई आयोजन किए जाते हैं, मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के धबोटी गांव में एक अनोखी पंरपरा 100 वर्ष बाद भी जारी है। यहां दीपालवी के एक दिन बाद पुवाड़‍िया नामक पौधे को उखाड़ने के लिए लोग जमा होते है, लेकिन 2 फीट के पौधे को आज तक कोई नहीं उखाड़ सका। पौधा उखाड़ने की प्रथा आज भी बेहद ही रहस्यमयी है। इसके रहस्य इतिहास के गर्त में छिपे हुए हैं, लेकिन आज भी करीब एक दर्जन से अधिक गांवों के लोग हजारों की संख्या में इस प्रथा के साक्षी बनते हैं और यहां पर स्थित खुटियादेव की आस्था और उत्साह के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। इस साल भी यहां पर आस्था के साथ मेले का आयोजन किया गया। इस मेले में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु शामिल थे। यहां पुवाडिया का दो फीट का पौधा की जड़े जमीन के अंदर करीब चार इंच तक गढ़ी होती हैं, लेकिन कई लोग मिलकर इसे उखाड़ नहीं पाते है। करीब 100 साल से चली आ रही इस परंपरा में कोई भी यह पौधा नहीं उखाड़ पाया है।
करीब 100 सालों से अधिक समय से धबोटी के समीपस्थ यहां पर हर साल दीपावली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजन के पावन अवसर पर हर साल हजारों की संख्या में मवेशियों के स्वास्थ्य सहित अन्य कामनाओं को लेकर यहां पर आते हैं और यहां पर मंदिर में मौजूद देवता की पूजा अर्चना पूरी आस्था और विश्वास के साथ करते है। शुक्रवार को भी अपनी मनोकामनाओं को लेकर श्रद्धालु पहुंचे थे। इस संबंध में जानकारी देते हुए ग्राम धबोटी के उप सरपंच ईश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि पौधा उखाड़ने की प्रथा 100 सालों से अधिक समय से चली आ रही है, लेकिन अभी तक किसी ने भी इस दुर्लभ पौधे को नहीं उखड़ सका है। उन्होंने बताया कि गांव का चौकीदार पटेल जगदीश प्रसाद के मार्गदर्शन में विशेष पूजा अर्चना के साथ ग्राम में स्थित खुटियादेव के मंदिर परिसर में पुवाडिया का दो फीट का पौधा जमीन के चार इंच के करीब गढ़ा होता और उसके बाद सुबह यहां पर आने वाले श्रद्धालु खुटियादेव के दर्शन करने के पश्चात उखाडऩे का प्रयास करते हैं, लेकिन यह चार इंच जमीन में गढ़ा हुआ पौधा चार-पांच लोगों के अथक प्रयास के बाद भी जमीन से टस से मस नहीं होता।

ग्राम के सरपंच देव सिंह और उप सरपंच ईश्वर सिंह ने बताया कि हमारे बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार दिवाली के दूसरे दिन ग्राम धबोटी में छोटा बारहखंबा से नाम से इस प्रसिद्ध मेले और पौधा उखाड़ने की इस अद्भुत घटना में करीब 15 हजार से अधिक श्रद्धालु हर साल साक्षी के रूप में मौजूद रहते हैं, लेकिन इस साल कोरोना संकट काल के कारण मेले में कुछ संख्या कम थी, जिसमें ग्राम धबोटी, धामनखेड़ा, शिकारपुर, काहरी, बामूलिया, बडनगऱ, कांकडख़ेड़ा, भाउखेड़ी, आमझिर, मोगरा, हसनाबाद, जहागीरपुरा, नयापुर और आल्हदाखेड़ी आदि के बड़ी संख्या में ग्रामीण और क्षेत्रवासी श्रद्धा और विश्वास के साथ उपस्थित होते हैं।

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