नाभकीय संलयन जानिए क्या होता है ये

ऊर्जा संकट को हल करने के लिए वैज्ञानिक नाभकीय संलयन प्रक्रिया का उपयोग करने के लिए अनुसंधान में जुटे हैं. यह प्रचुर अक्षय ऊर्जा का स्थायी स्रोत हो सकता है.
जब जीवाश्म ऊर्जा की सीमाओं के साथ उससे जुड़े नुकसान बढ़ने लगे थे, उससे कहीं पहले दुनिया में अक्षय ऊर्जा के स्रोत बनाने पर पड़ताल शुरू हो गई थी. इस दिशा में सूर्य ने शोधकर्ताओं को बहुत आकर्षित किया, लेकिन नाभकीय ऊर्जा के ज्ञान के बाद पृथ्वी पर ही सूर्य जैसे नियंत्रित स्रोत बनाने की कवायद शुरू हो गई. सूर्य नाभकीय संलयन प्रक्रिया पर काम करता है. वैसे तो वैज्ञानिक लंबे समय से नाभकीय संलयन को नियत्रित हालात में चालने का प्रयास कर रहे हैं., लेकिन उन्हें सफलता धीरे धीरे मिल रही है. आइए जानते हैं कि नाभकीय संलयन क्या होता है.
भौतिकी में नाभकीय संलनय दो या दो से अधिक परमाणु केंद्रकों के मिलने की नाभकीय प्रकिया है जिससे बड़े तत्वों का निर्माण होता है. सूर्य इसकी सबसे बड़ी मिसाल है. इससे पैदा होने वाली ऊर्जा बहुत ही ज्यादा मात्रा में होती है यदि इस ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सके तो मानवता को प्रचुर और अक्षय ऊर्जा का स्थायी स्रोत मिल सकता है. फिलहाल इसी दिशा में कई तरह के शोध दुनिया भर में चल रहे हैं.
परमाणु में प्रोटोन और न्यूट्रोन शक्तिशाली नाभकीय बल से जुड़े होते हैं. इस आकर्षण बल से उनके तीन तरह के घटक कणों में अतंरक्रिया होती है जिन्हें क्वार्क कहा जाता है. यह कूलंब बल होता है जिससे कणों में लगने वाले आकर्षण और विकर्षण बल का कारण उनके विद्युत आवेश होते हैं. इस बल की वजह से प्रोटोन एक दूसरे से दूरी बनाए रखते हैं.
न्यूट्रॉन का अपना कोई आवेश नहीं होता इसलिए वे विकर्षित नहीं होते, एक दूसरे से दूर नहीं जाते. इस लिहाज से ये दूसरे कणों की तुलना में ज्यादा पास होते हैं. लेकिन स्पिन या घुमाव के गुणों में अंतर के कारण न्यूट्रॉन और प्रोटोन एक दूसरे के पास आ जाते हैं और एक परमाणु के केंद्रक का निर्माण करते हैं. सैद्धांतिक रूप से जुड़े हुए न्यूट्रॉन और प्रोटोन एक दूसरे प्रोटोन- न्यूट्रॉन जोड़े से जुड़ सकते हैं. जिसमें न्यूट्रॉन एक मध्यस्थ की भूमिका निभाता है. लेकिन ज्यादा प्रोटोन होने पर ज्यादा बल की जरूरत होती है. यहां तक कि दो ड्यूटेरिया, एक प्रोटोन और एक न्यूट्रोन वाले हाइड्रोजन, को विलय कर हीलियम-3 बनाने के लिए भी बहुत ज्यादा दबाव की जरूरत होती है जैस सूर्य के क्रोड़ में होता है.
वहीं बड़े तत्वों के बनाने के लिए, जैसे कार्बन, या उच्च दबाव वाली भट्टियों को कम से कम 10 करोड़ डिग्री केल्विन के तापमान की जरूरत होगी जो सूर्य की क्रोड़ से छह गुना ज्यादा गर्म होना चाहिए. उससे भी ज्यादा बड़े , सोने और यूरेनियम जैसे तत्वों के स्तर के केंद्रकों के संलयन के लिए और भी ज्यादा शक्ति की जरूरत होती है. इस तरह की शक्ति न्यूट्ऱॉन तारों के टकराव या सुपरनोवा में देखने को मिलती है.
नाभकीय ऊर्जा का उत्पादन नाभकीय कणों को साथ रखने वाली ऊर्जा की मात्रा के अंतर पर निर्भर करता है. अगर दो प्रोटोन और दो न्यूट्रॉन के जोड़ों यानि एल्फा कण को एक साथ जोड़ा जाए को हमें 4.00153 ईकाई का भार मिलेगा. इस तरह इसके एक परमाणु का भार 4.03188 ईकाई मिलेगा. अगर ऊर्जा = भार x प्रकाश की गति का वर्ग समीकरण के हिसाब से भार में अंतर का मतबल ऊर्जा में अंतर होगा. स्वतंत्र कणों की तुलना में एक साथ बंधे कणों के समूह में कम ऊर्जा होती है, इसलिए जब वे मिलते हैं और बची हुई ऊर्जा बाहर निकल जाती है.
सूर्य की गहराइयों में ऐसी ऊर्जा धीरे धीरे सतह तक आती है जहां से यह विद्युत चुंबकीय विकिरणों या सूर्य के प्रकाश के रूप में निकलती है. पृथ्वी पर बहुत से भैतिकविद और इंजीनियर ऐसे उपकरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिससे नाभकीय संलयन से निकली इस ऊर्जा को उपोयग में ला जा सके. हाल ही में एमआईटी के शोधकर्ताओं ने दुनिया की सबसे शक्तिशाली मैग्नेट बनाई है जो स्वच्छ संलयन ऊर्जा पैदा कर सकती है. जिससे एक बार फिर नाभकीय संलयन चर्चा में हैं. उम्मीद की जा रही है कि इससे वैज्ञानिक अब ज्यादा सस्ते और छोटे संलयन संयत्र बना सकेंगे.