बिहार

दिल जीत ले गए नवीन बाबू और जाति-जाति रट रहे नीतीश-लालू…!

पटना. बिहार क्यों पिछड़ा है? यह सवाल प्रदेश के किसी भी व्यक्ति को पूछेंगे तो एक कॉमन जवाब जरूर आएगा- बिहार को जाति की राजनीति ने पीछे कर दिया. यहां से कास्ट पॉलिटिक्स हट जाए तो राज्य फिर से तेज तरक्की करेगा. दरअसल ये बातें फिर से इसलिए विमर्श में हैं क्योंकि आजकल सूबे की सियासत में जाति फिर से बड़ा मुद्दा उभरकर सामने आ गया है. इसका राजनीति के पैरोकार भी वही तथाकथित समाजवादी नेता हैं जो जातिवाद को जड़ से समाप्त करने का सपना तो दिखाते हैं, लेकिन उनकी राजनीति घूम फिरकर जाति के इर्द-गिर्द ही रहती है. बिहार की जमीन से जुड़े संजीदा लोगों को ऐसी राजनीति तब ज्यादा परेशान करती है जब सामने नेताओं की बिरादरी में ही दूसरा बेहतर उदाहरण भी सामने आ जाता है. हाल में ही ओडिशा की नवीन पटनायक की सरकार ने ऐसा उदाहरण पेश किया है कि यह जातिवादी राजनीति करने वाले नेताओं को आईना दिखाने जैसा है.

दरअसल हाल में ही जब भारतीय महिला व पुरुष हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बनाई तो अचानक ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक चर्चा में आ गए. बात यह होने लगी कि कुछ लोग काम करते हैं और उनका काम बोलता भी है. वहीं, कोई दिखावा करता है और उन्हें अपने काम को लोगों को बताना पड़ता है. सोशल मीडिया पर नवीन पटनायक की बिहार के सीएम नीतीश कुमार से तुलना की जाने लगी. विमर्श में यह बात आने लगी कि जब भारतीय हॉकी टीम को कोई स्पॉन्सर नहीं मिल रहा था तब नवीन पटनायक के नेतृत्व में चल रही ओडिशा की सरकार आगे आई. नवीन पटनायक ने अपने राज्य की ओर से हॉकी को स्पॉन्सर करने का प्रस्ताव अपनी ओर से दिया. सुविधाएं उपलब्ध करायी और आज ओलंपिक सेमीफाइनल में प्रवेश के रूप में परिणाम सामने है.
जाहिर है हॉकी टीम की इस विजय गाथा के बड़े नायक नवीन पटनायक भी हैं जिन्होंने न सिर्फ देश के राष्ट्रीय खेल को मुफलिसी के दौर से निकाला बल्कि उसकी हौसला अफजाई के लिए भी हर तरह से (ट्रेनिंग व स्पॉन्सरशिप) साथ दिया. सबसे खास बात यह है कि उन्‍होंने इन सब का न तो प्रचार किया और न ही इसका श्रेय लेने की कभी कोशिश की. बस खामोशी के साथ अपना काम करते रहे. बता दें कि खराब माली हालत के कारण सहारा इंडिया के स्पॉन्सशिप छोड़ने के बाद ओडिशा की नवीन पटनायक की सरकार वर्ष 2018 से भारतीय हॉकी की दोनों टीमों (महिला-पुरुष) को स्पॉन्सर कर रही है बल्कि वर्ल्ड क्लास ट्रेनिंग, रिहैब फैसिलिटी, प्रैक्टिस पिच और टूर्नामेंट्स के जरिए उसका संरक्षण कर आगे बढ़ा रही है.

दूसरी तरफ कई ऐसे नेता हैं, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक समाज को जाति में विभाजित करने के लिए आपस में लड़ने में व्यस्त हैं. बिहार में जाति में संख्या बल के दंभ की लड़ाई 1990 के दशक (लालू यादव व राबड़ी देवी का शासनकाल) से लगातार सरकारी ताकत के साथ लड़ी जा रही है और अभी भी चिंता जातिगत जनगणना की ही है. जातिगत जनगणना बिहार में एक बड़ा मुद्दा बन गया है और यह सत्ता-समीकरण के बनने-बिगड़ने का बड़ा आधार भी. बिहार में तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर अड़े हुए हैं तो सीएम नीतीश कुमार भी इसकी मांग कई बार दोहरा चुके हैं. हालांकि हाल में ही जब जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर जदयू की यह मांग दोहराई तो उन्होंने कहा कि आपका एक तर्क है, लेकिन दूसरा तर्क भी है जिसपर विमर्श किया जाना बाकी है. बावजूद इसके बिहार के नेता इसपर सियासत जारी रखे हुए हैं.

बहरहाल नवीन पटनायक ने हाल में ही ऐसे नेताओं’को तब भी आईना दिखाया था जब मई के महीने में ‘यास’ चक्रवात तूफान से नुकसान हुआ था. ‘यास’ से राज्‍य में हुई तबाही के बावजूद ओडिशा ने केंद्र सरकार के समक्ष तत्‍काल किसी रिलीफ पैकेज की मांग नहीं करके देशवासियों का दिल जीत लिया था. ओडिशा के मुख्‍यमंत्री नवीन पटनायकने एक ट्वीट में लिखा, ‘इस समय देश में कोविड-19 महामारी चरम पर है, ऐसे में हमने केंद्र सरकार पर बोझ डालने के लिए तत्‍काल किसी वित्‍तीय सहायता की मांग नहीं की है. हम अपने संसाधनों के लिए जरिये इस संकट को मैनेज करना चाहते हैं.

दरअसल यह ऐसा उदाहरण है जो बिहार के नेताओं को भी आईना दिखाता है. हर छोटी-बड़ी बात पर केंद्र सरकार से अनुदान का मांग करने वाली सरकारों की सोच पर भी बड़ा सवाल है. क्योंकि बिहार में बाढ़ जैसी आपदा हर साल आती है, बावजूद इसके राज्य सरकार इसका स्थायी समाधान नहीं खोज पा रही है. उल्टा हर वर्ष राज्य सरकार राहत अनुदान के लिए केंद्र सरकार की ओर हमेशा मुंह तकती रहती है. इसी तरह बिहार को पिछड़े राज्य का दर्जा दिलाने की राजनीति परवान चढ़ती रही है. बार-बार केंद्र के इनकार के बाद भी बिहार में इस पर राजनीति की जाती रही है और इसका नेतृत्व सीएम नीतीश कुमार ही करते हैं.

एक ओर जहां बिहार के ‘जातिवादी नेता’ कास्ट पॉलिटिक्स के आसरे अपनी सियासत बढ़ा रहे हैं, दूसरी ओर नवीन पटनायक की सरकार भी है जो न सिर्फ हॉकी बल्किदूसरे खेलों जैसे फुटबॉल, एथलेटिक्स, रग्बी और टेबल टेनिस को भी प्रमोट कर रही है. राज्य के बजट में भी नवीन पटनायक खेलों का खास ख्याल रखते हैं. बजट 2021-22 में ओडिशा सरकार ने राज्य में खेल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए 400 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. यहां यह बता दें कि ओडिशा भी पिछड़े राज्यों की सूची में ही शामिल है, लेकिन बिहार और ओडिशा के नेताओं की सोच के फर्क को साफ बताता है.

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