main slideउत्तर प्रदेशलखनऊ

दक्षिण कोसल के मंदिरों की दीवारों और गर्भगृह तक में मिलते है रामायण के साक्ष्य

दक्षिण कोसल के डीपाडीह, खरौद, मल्हार, रतनपुर, जांजगीर चांपा, घटियारी से मिलते हैं रामायण के साक्ष्य
लखनऊ। दक्षिण कोसल में रामायण से संबंधित पुरातात्विक साक्ष्य विषय पर हुई वेब संगोष्ठी में विद्वानों ने कहा कि हमारी संस्कृति में राम रचे बसे हैं और इसके प्रमाण हमें लोक साहित्य, अभिलेखों, परम्पराओं, जनश्रुतियों के साथ पुरातत्व में भी प्राप्त होते हैं। मंदिरों के स्थापत्य, मूर्तिशिल्प से लेकर शैलचित्रों में सीता जी का कोहबर दिखाई देता है। तत्कालीन समय में मंदिरों की भित्तियों पर, मंदिरों के भीतर गर्भगृह तक में रामायण के प्रसंगो का अंकन हमको दिखाई देता है। जिससे मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को रामचरित का संदेश प्राप्त हो सके। ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण-उत्तर प्रदेश एवं सेंटर फॉर स्टडी ऑन होलिस्टिक डेवलपमेंट-छत्तीसगढ़ की ओर से अंतरराष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन रविवार 26 जुलाई को किया गया। अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक योगेंद्र प्रताप सिंह की परिकल्पना में हुए इस वेबिनार में मुख्य अतिथि डॉ राकेश तिवारी, पूर्व महानिदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा कि पुरातत्व में वही मिलता है जिसे प्रकृति ने बचा लिया, इसलिए बहुत सारी चीजें हमें पुरातत्व में प्राप्त नहीं होती, पुरातत्व की भी अपनी सीमाएं है, परन्तु लोक परम्परा में हमें वह चीजें प्राप्त हो जाती है। मंदिरों के स्थापत्य के अतिरिक्त हमें मिर्जापुर से लेकर सरगुजा तक शैल चित्रों में सीता जी का कोहबर मिलता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्याल) सागर के कुलपति प्रो आर पी तिवारी ने की।

वेब संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ शिवाकांत बाजपेयी हमें रामायण के प्रमाण के रुप में प्राचीन अभिलेख, उत्खननध्सर्वेक्षण रिपोर्ट, उपलब्ध साहित्य, ऐतिहासिक स्मारकों में उपलब्ध रामायण के कथानकों का अंकन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। जिसके क्रमबद्ध विश्लेषण एवं लेखन की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त प्लेनोटोरियम साफ्टवेयर एवं रामसेतु से उपलब्ध जानकारियों को इसी परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित करने की आवश्यकता है। दक्षिण कोसल में रामयण से संबंधित पुरातात्विक प्रमाण हमें छठवीं सातवीं शताब्दी से डीपाडीह, खरौद, मल्हार, रतनपुर, जांजगीर चांपा, घटियारी इत्यादि अनेक स्थानों से बाली वध, अशोक वाटिका, रावणानुग्रह, रावण के शीश चढाने तथा अन्य स्थानों से भिन्न भिन्न संदर्भों में प्राप्त होते हैं। अतिथि वक्ता लिथुवानिया युरोप से स्वामी अनंत बोध चौतन्य ने कहा कि रोमुवा शब्द के मूल में राम है, राम से ही रोमुवा बना। यह लिथुआनिया में एक धार्मिक समुदाय है जिसकी जीवनचर्या वैदिक संस्कृति से मिलती जुलती है। इनके देवी देवता भी सनातन धर्म से आए हैं। लिथुआनिया में रामुस शब्द का अर्थ शांतचित्त होता है। रोमुवा का संबंध राजस्थान से माना जाता है। डॉ हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्याल) सागर के कुलपति प्रो आर पी तिवारी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि वक्ताओं ने सारगर्भित व्याख्यान के माध्यम से जनमानस में व्याप्त रामायण की जानकारी दी। राम एवं रामायण भारतीय संस्कृति के प्रमुख अंग है। ग्लोबल इनसायक्लोपीडिया ऑफ रामायण के छत्तीसगढ़ संयोजक ललित शर्मा ने वेब संगोष्ठी में उपस्थित सभी महानुभावों का आभार व्यक्त किया। इस वेब संगोष्ठी का प्रसारण दक्षिण कोसल के फेसबुक पेज एवं यूट्यूब चौनल पर किया गया जिसके माध्यम से हजारों लोगों ने इसे देखा। संगोष्ठी का संचालन डॉ आनंदमूर्ति मिश्र प्रोफेसर मानव विज्ञान, बस्तर विश्वविद्यालय ने किया।

Show More

यह भी जरुर पढ़ें !

Back to top button