तो तेंदुए के पीछे भटकता वन विभाग!

लखनऊ। तीन रातें और इतने ही दिन गुजर गये, अभी तक तेंदुए के सही लोकेशन को लेकर न तो वन विभाग की टीम पूरी तरह आश्वस्त हो पायी है और न ही राजधानी वासी। अब तो लखनऊ ट्रांस गोमती एरिया में निवास कर रही अधिकांश आबादी के बीच बच्चों से लेकर बुजुर्ग और महिलाओं के बीच यह चर्चा चल रही है कि आखिर तेंदुए व वन विभाग के इस चूहे-बिल्ली के दौड़ में अब तो यह नहीं समझ आ रहा है कि कौन किसके पीछे भाग रहा है। इंदिरानगर, तकरोही, खुर्रमनगर, पिकनिक स्पॉट व चांदन के आसपास रह रहें तमाम लोगों का तो यह भी कहना रहा कि लगता है कि अब तेंदुआ अपने रास्ते से नहीं भटका बल्कि वन विभाग की टीम उसके पीछे-पीछे जहां-तहां भटकती दिख रही।
अफवाहें कैसे करें दरकिनार, लोकेशन तो पक्की हो
सोमवार की ही बात करें तो अचानक सुबह यह अफवाह तेजी से उड़ी कि इंदिरानगर सेक्टर 14 के आसपास तेंदुआ देखा गया है। ऐसे में इस घनी आबादी वाले इलाके में निवास कर रहे लोगों के बीच दहशत पैदा हो गई और तमाम लोग घरों में दुबक गये। वहीं वन विभाग ने अफवाहों पर ध्यान नहीं देने की अपील की है। जबकि कुछ स्थानीय नागरिकों की मानें तो यदि वन विभाग की टीम को तेंदुए की सही लोकेशन मिल जाये और उसका पगचिन्ह पक्का हो तो वो पूरे आत्मविश्वास के साथ इस अहम तथ्य को सार्वजनिक रूप से शेयर करे जिससे आधारहीन अफवाहों पर विराम लगे। मगर जब वन विभाग टीम भी कहीं न कहीं अफवाहों, लोगों से मिलने वाले फीडबैक व अन्य बाह्य श्रोतों पर ही निर्भर है तो इसमें किसी का क्या दोष। हालांकि डीएफओ डॉ. रवि कुमार सिंह के अनुसार उनकी टीम जीपीएस के जरिये तेंदुए का लोकेशन ले रही है जिससे यही लग रहा है कि अब तेंदुआ राजधानी की सीमा से बाहर निकलकर अपने वन क्षेत्र (हैबिटेट) को चला गया है। मगर यह तथ्य कितना पक्का और सही है, इसको लेकर वन विभाग टीम भी कहीं न कहीं सशंकित ही है।
रहमानखेड़ा में बाघ की कॉम्बिंग से नहीं ली सीख
वैसे बता दें कि कुछ समय पहले ऐसे ही शहरी आबादी के निकट रहमानखेड़ा में एक खंूखार बाघ ने काफी दिनों तक आतंक मचा रखा था। जिसके बाद वन विभाग ने उसे पकड़ने के लिये अपना जाल बिछाया। लेकिन तब यह सवाल उठा था कि जब बाघ को पकड़ने के लिये पिंजड़ा लगाया गया और उसके अंदर मीट के टुकडेÞ रखे तो दरवाजा बंद रखा गया। फिर जब इस प्वाइंट को मीडिया ने उठाया तो वन विभाग हरकत में आया फिर वहीं पेड़ के ऊपर एक वन कर्मी को पिंजडेÞ का दरवाजा खोलने को बिठाया। बहरहाल, कुछ समय बाद वो बाघ पकड़ा जा सका।
फटे जाल से चलाया जा रहा काम
रहमानखेड़ा में बाघ की कॉम्बिंग के दौरान टीम से जुडेÞ वन कर्मियों ने दबे जुबां यही बताया कि ऐसा ही टैप तेंदुए को पकड़ने के लिये बिछाना चाहिये। उनके अनुसार तीन दिनों से तेंदुआ भाग रहा है, उसे भूख भी लगी होगी। ऐसे में टीम को अविलंब लोकेशन वाली जगहों पर पिंजडेÞ लगाने चाहिये, मीट के टुकड़ों को बिछाना चाहिये और साथ ही सधे जाल और टैÑंक्यूलाइजर आदि का इंतजाम करके रखना चाहिये। मगर यहां तो कल्याणपुर इलाके में जिस जाल के सहारे तेंदुए की धरपकड़ की जा रही थी, वो फटेहाल था। ऐसे में तेंदुआ बड़ी ही आसानी से वहां से निकल गया और अभी तक पकड़ में नहीं आ सका।
जितना तेंदुआ भगायेगा, उतना बजट बढेगा!
कुछ विभागीय सूत्रों की मानें तो तेंदुए के आतंक से भले ही राजधानी की आधी आबादी डरी हुई हो ,मगर वन विभाग टीम के लिये यह कोई बड़ी बात नहीं है। उनके मुताबिक दरअसल, जितने दिनों तक तेंदुए भागेगा या फिर भगायेगा, उतना ही बड़ा विभागीय बजट प्रभागीय वन अधिकारी के जरिये आवंटित होगा। वहीं ऐसे कुछ कॉम्बिंग एक्सपर्ट की मानें तो इस प्रकार की यदि कोई भी गतिविधि होती है तो बकायदा संबंधित जानवर के पीछे जितने दिन परिवहन साधन लगा, उसके कॉम्बिंग में जो भी अतिरिक्त संसाधन और चीजें लगीं, उसका पूरा खर्च जोड़कर विभाग द्वारा आवंटित किया जाता है।