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तीनों सेनाओं को 15 दिन के प्रचंड युद्ध के लिए हथियार खरीदने की छूट…..

चीन की चालबाजी से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक बहुत बड़ा कदम उठाया है. सरकार ने एक अहम फैसला लेते हुए दुश्मन की कमर तोड़ने के लिए तीनों सेनाओं को बड़ी छूट दी है. नए फैसले के तहत तीनों सेनाओं को 15 दिनों के युद्ध के लिए हथियार और गोलाबारूद स्टॉक करने के लिए कहा गया है. पहले तीनों सेनाएं सिर्फ 10 दिनों के युद्ध के लिए गोलाबारूद स्टॉक करती थीं. देश के अलावा विदेश से भी 50 हजार करोड़ रुपये के हथियार खरीदने की बड़ी योजना है.

चीन के अड़ियल रवैये –  आशंका जताई जा रही थी कि भारत और चीन की सैन्य अदावत युद्ध की राह पर बढ़ सकती है और चीन के अड़ियल रवैये के बाद अब वैसा ही होता दिख रहा है. मुमकिन है कि इसीलिए तीनों सेनाओं को सरकार ने ये छूट दी है. खास बात ये है कि कल ही विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बात के संकेत दिए थे कि चीन के साथ विवाद कोई भी रुख ले सकता है. विदेश मंत्री ने कहा था कि विवाद लंबा खिंच सकता है क्योंकि चीन पीछे हटने को तैयार नहीं है.

इस जंग में पाकिस्तान भी जिनपिंग की तरफ से कूदेगा – चीन से जंग छिड़ी तो निश्चित है कि इस जंग में पाकिस्तान भी जिनपिंग की तरफ से कूदेगा. लद्दाख विवाद जब शुरू हुआ था तब भी खबर आई थी कि चीनी के लड़ाकू विमान पाकिस्तानी वायुसेना के हवाई अड्डे इस्तेमाल करने का अभ्यास कर रहे हैं. इसलिए भी भारत ज्यादा से ज्यादा हथियार जुटा रहा है ताकि दोनों मोर्चों पर एक साथ युद्ध लड़ा जा सके. देश के पास पहले 40 दिनों के युद्ध के लिए गोला-बारूद का इंतजाम रहता था लेकिन स्टोरेज और युद्धों के स्वरूप में होने वाले बदलाव की वजह से 1999 में इसे घटाकर 20 दिन कर दिया गया था. एक और समीक्षा के बाद हथियारों के स्टॉक को 10 दिनों तक सीमित कर दिया गया था. साल 2015 में CAG ने अपनी रिपोर्ट में टू फ्रंट वॉर के लिए 10 दिन के स्टॉक को कम बताया था. उरी हमले के बाद भी ये बात आई थी कि सेना के पास युद्ध के लिए रिजर्व स्टॉक बहुत कम है. तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने तीनों सेनाओं के उप प्रमुखों के खरीद के अधिकार को 100 करोड़ से बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये कर दिया था. साथ ही हथियारों की खरीद के लिए तीनों सेनाओं के इमरजेंसी फंड को बढ़ाकर 300 करोड़ किया था ताकि युद्ध की सूरत में हथियारों की कमी ना हो. अब उसी फैसले को केंद्र सरकार ने एक कदम और आगे बढ़ाया है.

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